मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

'व्यर्थ स्वर्ग' (सजल/ग़ज़ल) - मच्छिंद्र भिसे




'व्यर्थ स्वर्ग'
(सजल/ग़ज़ल)
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फरेबी, तू मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकता,
पानी की धार हूँ मैं मुझको रोक नहीं सकता।

हर शक्ल की यहाँ कई सूरतें है,
मेरी छवि सूरज है चाहकर भी ढक नहीं सकता।

शौक से जिए यह दुनिया तुम्हारी है,
ग़म दीजिए साहब! सुख का दान ले नहीं सकता।

मंजिलें राह काँटे अक्सर यहाँ चुभते हैं
डरकर भूल से फूल की चाह कर नहीं सकता।

मुस्कुराहट लिए यहाँ हर चेहरा बोलता है,
आग सीने में है किसी को दिखा नहीं सकता।

जन्म और मृत्यु भी कितने बेगाने हैं,
जैसे तुम और मैं इनसे बेवफाई कर नहीं सकता।

सुन बात 'मछिंदर' यह सब पराया है,
बाँट दे सबकुछ यहाँ व्यर्थ स्वर्ग जा नहीं सकता।
-०-
🌹------------🙏---------🌹
23 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
(अध्यापक-कवि-संपादक)
पता: भिरडाचीवाडी (भुईंज), तह. वाई, जिला सातारा (महाराष्ट्र) 415515
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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-0-

बिटिया मोरी (हाइकु) - मच्छिंद्र भिसे


'बिटिया मोरी'
विधा: हाइकु
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धरा हर्षायी
घर बिटिया जन्मी
खुशियाँ लायी।
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बिटिया पायी
जन्म - जन्म के पुण्य
जन्मी है धन्य।
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श्रृती है नाम
बोली मिठास भरे 
क्लेश को हरे।
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बिटिया मोरी
प्रीत - प्यारी सहेली
जान की डोरी।
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ओझल हुई
जिस दिन आँख से
नीर है बही।
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कल्पित इसे
तन सिहर उठा
हीय भी टूटा।
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कैसे समझूँ
बेटी पराया धन
माने न मन।
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बैठेगी डोली
छोड़ हम सबको
फटेगी झोली।
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दोऊँ सजाती
दहलीजें अपनी
रीत निभाती।
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एक ही बेटी
दो परिवार बुने
आप ही भुने।
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बेटी न बोझ
जिसने समझा हो
पाएगा ओज।
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बेटा न बेटी
करें न भेद कभी
समझे सभी।
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ज्योति बन के
आलोक है फैलाती
आप जलती।
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बेटी न होगी
धरा धरे रहेगी
मृता कहेगी।
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18 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
(अध्यापक-कवि-संपादक)
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'शब्दांचा जागर' (गझल) - मच्छिंद्र भिसे

'शब्दांचा जागर'
(गझल)
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शब्दांचे मोती घडण्यास अवधी आहे,
कविता लिहीत आहे कवी बनण्यास अवधी आहे.

सूर्योदय शब्द पहाट होत आहे,
शब्द आरवतो आहे भूपाळी बनण्यास अवधी आहे.

शब्दांची घालमेल नुसतीच करतो आहे,
अभंग लिहित आहे ओवी बनण्यास अवधी आहे.

छंदांचा गंध शब्दांना लावतो आहे,
गाणं लिहीत आहे गीत बनण्यास अवधी आहे.

अक्षरांना ओळीत आरूढ करतो आहे,
भैरवी लिहीत आहे भारुड बनण्यास अवधी आहे.

कृष्णाची राधा शब्दांमध्ये पहातो आहे,
माठ भरला आहे गवळण बनण्यास अवधी आहे.

शाहिरी साज शब्दांना चढवतो आहे,
डफावर थाप आहे पोवाडा बनण्यास अवधी आहे.

शब्दांना नख शिखांत सजवतो आहे,
सुंदरा सजली आहे लावणी बनण्यास अवधी आहे.

मायेचा शब्दांवर हात फिरवतो आहे,
शब्द बोलका आहे शब्दधुंद बनण्यास अवधी आहे.
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17 ऑगस्ट 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
(अध्यापक-कवी-संपादक)
भिरडाचीवाडी (भुईंज), तह. वाई, जिला सातारा (महाराष्ट्र) 415515
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'वाट पहातो आहे' (कविता) - मच्छिंद्र भिसे


'वाट पहातो आहे'
(कविता)
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स्वतःच्या जगण्याचा अर्थ
उशिरा का होईना उमगतो आहे
मावळलेल्या क्षितिजावर
सूर्योदयाची वाट पाहतो आहे.

सुख दुःखाचे क्षण ते क्षणात
मुठीतून सरकले किती
सावलीत क्षणिक सुखाच्या
अक्षय तृप्तीची वाट पाहतो आहे.

भटकंती आता पुरे झाली
संसार माझा भटकतो आहे
कधी संपेल नियतीचा खेळ हा
थांबण्याची वाट पाहतो आहे

पुरे झाले इतरांसाठीचे जगणे
स्वतःचे जगणे विसरलो आहे
अंधारात गडप झालेल्या त्या
प्रकाशाची वाट पाहतो आहे

वाट काट्याची बिकट तरीही
थांबलो न कधी पुढे-पुढे चालतो आहे
आशा उरी ही पोहचेल त्या क्षितिजावर
सुकाळाची वाट पाहतो आहे.   
🌹------------🙏---------🌹
24 जुलै 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
(अध्यापक-कवी-संपादक)
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हँसी-मुस्कान (हाइकु)


'हँसी मुस्कान'
विधा: हाइकु
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हँसी-मुस्कान
चेहरे के श्रृंगार 
दे पहचान।
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अपनी हँसी
देखकर सभी की
मिटे उदासी।
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हँसेंगे कब
जीए न हँसे कभी
चिता हो जब।
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हँसी का मौका
मिले तो न छोड़िए
मारे ठहाका।
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हँसी है दवा
जी भर पी लीजिए
किसी ने कहा।
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हँसी को जाने
रोने के होते यहाँ
सौ-सौ बहाने।
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रोके न हँसी
न ही आँसू रोकिए
राह दीजिए।
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हँसे जो नहीं
जानवर कहिए
मानव नहीं।
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हँसते जाना
आँसू गम हो चाहे
लक्ष्य को पाना।
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16 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
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●आजादी जश्न● (गीत) - मच्छिंद्र भिसे



'आजादी जश्न'
(गीत)
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आजादी जश्न मनाओ, भैया!
आज ईद-दिवाली है
जन मन में तिरंगा फहरें
खुशियाँ बहारें लायी है!

केसरिया गगन है चमके
सूरज ने ली अंगड़ाई है
वीरों के लहू अर्पण से
एकता सुबह आयी है!

आजादी की पवन बहे
शील-विनय गीत गाती है
मन हो सच्चा तन हो अच्छा
शांति की रीत निभायी है!

विश्वास-ख़ुशी पाए धरा
हर चेहरे आज छलकायी है
मजदूर हो या किसान भैया
मन हरियाली छायी है!

चौबीस घंटे सीमा पर
वीरों की पहरेदारी है
देश को सँवारे रखना
अपनी ही जिम्मेदारी है!

हराभरा हो देश अपना
कसम ये सबने खायी है
आजादी भी आजादी का
जश्न मनाने आयी !
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14 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
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'फूल बताए' (हाइकु) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'


'फूल बताए'
विधा: हाइकु
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अपनी गंध
चारों दिशा फैलाए
फूल बताए।
(अच्छाई गंध)
🌹------------🙏---------🌹
काँटों की राहे
खिलना न छोडूँगा
लक्ष्य को पाए।
(मंजिल पाए)
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सहता रहूँ
शीत-घाम औ' मेह
रखने नेह।
(चुनौतियों का सामना)
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रंगीन तन
भौरें-तितली चाहे
आप भी पाए।
(अभिलाषा पूर्ति)
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माली का प्यार
फूल खिलने तक
बेचे बाजार।
(अपनी उपयोगिता)
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खिलता रहूँ
यही अपना गीत
गाता ही रहूँ।
(कर्मरती)
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मिट जाऊँ मैं
औरों के हित नित
बाग की रीत।
(फूल का कर्म)
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फूल के शूल
चुभते न पौध को
खिलाते फूल।
(सद्भावना)
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मिट्टी से उगे
उठ धरा सँवरे
शीश है सजे।
(फूल जीवन यात्रा)
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14 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
(अध्यापक-कवि-संपादक)
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● आजाद उड़ान● (व्यंग्य रचना) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

● आजाद उड़ान●
(व्यंग्य रचना)
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आजादी के आजाद परिंदे
उड़ने आज चले हैं
घात लगाए बैठे शिकारी
न जाने क्या चाल चले हैं?

उड़ान में खौंफ, चाल में न ताल है
मंजिल चाह की बोझिल थकान है
राह निकले तो यहाँ पथराव है
घर का न ठौर कहाँ ठहराव है
कैसी आजादी किस राह चले हैं
घात लगाए बैठे शिकारी
न जाने क्या चाल चले हैं?

सोचा आजादी में उड़ना मना है
कुछ भी हो हर हाल में जीना है
खाने न दाना पीने न पानी
बदन है नंगा छत यहाँ आसमानी
इन्साफ माँगने अब हम चले हैं
घात लगाए बैठे शिकारी
न जाने क्या चाल चले हैं?

आजादी यहाँ लूट-पाट की
अनाचार और अत्याचार की
कहाँ करें गुहार जीने की
यहाँ चिंता दाना पाने की
फिर भी उड़ाने भरने चले हैं
घात लगाए बैठे शिकारी
न जाने क्या चाल चले हैं?
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13 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
(अध्यापक-कवि-संपादक)
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बन दर्पण (हाइकु) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'


'बन दर्पण'
विधा: हाइकु
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दर्पण सच्चा
खोल रंग दिखाए
झूठ न कहे।
(चाम की शक्ल)
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झूठ न कहूँ
मन दर्प न दिखे
दर्पण देखे।
(अहंकारी शक्ल)
🌹------------🙏---------🌹
दर्पण देखूँ
खुशी रंग देखने
गम सहने।
(सुख-दुख दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
गम को सहूँ
दर्पण-सा निर्मल
चरित्र बुनूँ।
(चारित्र्यवान दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
चरित्र बुने
लौ-अंगारे लपटे
शक्ल न भूने।
(अमिट दर्पण)
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शक्ल न भूने
सत आरसी साथ 
शालीन बने।
(सच्चाई दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
शालीन बन
शक्ल पानी में देखे
नभ का तन।
(विशाल दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
नभ-सा तन
क्यों न होवे अपना?
बने दर्पण।
(आदर्श दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
बन दर्पण
बिखरूँ जगत में
होऊँ अर्पण।
(परहितार्थ दर्पण)
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13 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
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'हे दर्पण!' (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'



'हे दर्पण!'
(कविता)
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कहते हैं आईना सबको
सच्चाई शक्ल दिखाता है,
ग़लतफ़हमी है सारी हमारी
फरेबी सोच भला
कहाँ दिखा पाता है?

आईना अपना हो कर्म भला
सूरत सबमें छोड़ जाता है
नकाबपोश कर्म होते जगत में
बेनकाब दर्शन
कहाँ करा पाता है?

सूरत का भोला दिल का काला
कैसे-कैसे रंग आदमी भर जाता है
हर डगर पर रंग है बदले
असली चेहरा
कहाँ दिखा पाता है?

दर्पण से सपने लिए कोई
भला इन्सान बढ़ जाता है
दुराचार रोड़ा बन सपने तोड़े
परदा हटा उसका
कहाँ सच दिखा पाता है?

हे दर्पण! पर सच कहूँ...
जब तू इनको दिखाएगा
उस दिन तू भी मिट जाएगा।
जानता है दुनिया के सारे भेद
इसलिए इन्हें कहाँ दिखा पाता है?
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12 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
(अध्यापक-कवि-संपादक)
पता: भिरडाचीवाडी (भुईंज), तह. वाई, जिला सातारा (महाराष्ट्र) 415515
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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कंकड़ी मोती (हाइकु) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'


'कंकड़ी मोती'
विधा: हाइकु
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कंकड़ी नींव
जगत खड़ा होय
क्यों रहा रोय।
(छोटी शुरुआत)
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कंकड़ी कहे
छोटा काज नहीं
आँखन गई।
(दिखता वैसा)
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पर्वत बड़ा
कंकड़ जोड़ जोड़ी
हुआ जो खड़ा।
(छोटा समूह)
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मोल क्या बड़ा
कंकड़ सब हम
मिटे क्या तम?
(अंधकार ही बड़ा)
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कंकड़ी प्रीत
जग अपना लेत
गाओ रे गीत।
(थोड़ा-सा प्यार)
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राहत कैसे?
कंकड़ ही कंकड़
राह में फँसे।
(छोटी बाधाएँ)
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फूल पाएँगे
कंकड़ पर चले
काँटे खिलेंगे।
(बाधा पार करें)
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मन कंकड़
हाथ न कुछ आए
मिट भी जाए।
(बड़प्पन के भाव)
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कंकड़ी मोती
परीधि में ही गाता
आकार देता।
(कर्मवादीता)
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12 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
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एक गलती (हाइकु) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'


'एक गलती'
विधा: हाइकु
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एक गलती
छिपाने चला चोरी
दूसरी करी।
(गलती पर गलती)
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गलती होवे
बड़ा दिल स्वीकारे
फिर न करे।
(गलती का स्वीकार)
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गलत बात
फैलाने जो जाएगा
लाथ पाएगा।
(गलत बात अटकाव)
------------🙏----------
गलती करे
सच साथ जो देने
कभी न डरे।
(सच्चाई हेतु गलती)
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गलत लोग
न सच को स्वीकारे
पीड़ा ही भरे।
(पीर बढ़ाए गलती)
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सही-गलत
आँखों देखा मान लो
सच जान लो।
(सही-गलत की पहचान)
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अंधा न कोई
जग गलती देखे
सही को ढके।
(लोगों की गलत सोच)
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हर गलत
सब सही होगा भी
मन भीगा भी।
(गलती की ग्लानि)
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गलत राह
मंजिल पाने दौड़े
कैसे पकड़े?
(गलत राह)
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गलती छिपे
छत हो आसमानी
बरसे घनी।
(गलत न छिपेगी)
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गलत जहाँ
तू पीड़ा ही पाएगा
रूके न वहाँ।
(गलती से सावधान)
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11 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
-0-

मेरा देश - मेरी राष्ट्रभाषा (आलेख) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'



मेरा देश - मेरी राष्ट्रभाषा
(आलेख)
         आजादी के बाद अपने देश में बहुत से महत्त्वपूर्ण बदलाव आए हैं, आ भी रहे हैं। आर्थिक, सामाजिक, राजकीय, संरक्षण, सांस्कृतिक हो या धार्मिक, समयानुसार संरक्षण एवं संवर्धन हेतु हर क्षेत्र में प्रयास किए जा रहे हैं। विविधता से सुसंपन्न अपने देश में जाती, धर्म, भाषा, तीज-त्यौहार, परिधान, परिवेश, रहन-सहन आदि में विविधता होने के बावजूद दक्षिण के लक्षद्वीप से लेकर कश्मीर की उत्तर सीमा और अरुणाचल प्रदेश के पूर्व से लेकर गुजरात कच्छ के पश्चिम सीमा तक भारतीयों ने आपसी सार्वभौमत्व और भाईचारे को सँवारा है संजोया है। पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल अपने देश ने कायम की है। यह भारतीयता की जीत है। विविधता में एकता के दर्शन कराने वाले अपने देश के लोगों ने अपनी-अपनी काबिलियत के अनुसार अपना विकास भी किया है, परंतु यदि संपूर्ण देश के बारे में सोचा जाए तो अपना देश विकसनशील राष्ट्रों की गिनती में आता है। अपने देश के विकसित न होने के कारणों में से जटिल परंतु सहज कारण है देश की राष्ट्रभाषा का न होना।
         विश्व में रूस, अमरीका, चीन, जापान, इस्त्राइल जैसे देशों ने अपने देश के राजकाज और संपर्क के लिए राष्ट्रभाषा दी है। राष्ट्रभाषा के माध्यम से अपने-अपने देश को विकसित किया है। उन राष्ट्रों ने भी ज्ञान भाषाओं की उपयोगिता देखकर अपने देश की राजकीय एवं शैक्षिक निति में परिवर्तन कर अन्य भाषाओं को भी अपनाया है। अपने देश की हिंदी भाषा की अंतर्राष्ट्रीय उपयोगिता देखकर कई देशों के अपनाकर तथा अभ्यासक्रमों में हिंदी को शामिल कर लाभ उठा रहे हैं; तो फिर अपने देश हितार्थ राष्ट्रभाषा को लेकर वाद-विवाद क्यों? क्या हम भारतीय अपने देश को विकसित नहीं देखना चाहते? क्या किसी एक भारतीय भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करना इतना कठिन है? क्या हम राष्ट्रभाषा का महत्त्व ही नहीं जानते? सवाल कई है, जवाब भी है पर ढूंढे कौन? आगे आए कौन? फिर भी एक भारतीय होने के नाते यह धाड़स कर रहा हूँ। इन सवालों के जवाब और समाधान की कोशिश सामने रख रहा हूँ। शायद पूरा पढ़ने पर लगेगा कि अरे! देश को अपनी राष्ट्रभाषा मिल सकती है। आप भी चिंतन करीए।
         अपने देश को आजादी प्राप्त होने के पूर्व संविधान निर्माण हेतु संविधान समिति का गठन हुआ। लगभग दो साल, ग्यारह महीने और अठारह दिनों की मेहनत के बाद संविधान बना। जिसे २६ जनवरी १९५० के दिन भारतवर्ष के हर नागरिक के लिए लागू किया। सभी ने ससम्मान से अपनाया भी। इसी संविधान में भाषाओं को लेकर भी कानून बने। जिसमें राजभाषा (कार्यालयीन, कार्यकारी भाषा), राज्य राजभाषा, मातृभाषा, संपर्क भाषा आदि। आजादी के पूर्व देश के कई समाजसेवी, राजकीय एवं धार्मिक जननायकों ने देश की आजादी के वक्त हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया उसे अपनाया। कईयों ने तो अपनी मातृभाषा की जगह देश के जन-जन की भाषा हिंदी को अपनाया। इतना ही नहीं, मैं तो कहूँगा कि अपने देश की आजादी में हिंदी की अहम भूमिका रही है। चाहे वह व्यवहार हो, पत्र-पत्रिकाएँ हो या समाचार पत्र या दुभाषी के रूप में भारतीय भाषा हिंदी ही का ही सर्वाधिक प्रयोग किया गया। वह अपने देश की जन-जन की भाषा मानी जाती थी और आज भी संपर्क भाषा के स्तर पर कार्य कर रही है। परंतु आजादी के बाद संविधान में एक देश एक भाषा का उल्लेख नहीं मिलता। हो सकता है, बहुभाषी राष्ट्र होने के कारण ही राष्ट्रभाषा निर्माण को लेकर उसे जनता की पसंद याने चयनित लोगों के द्वारा मताधिकार का आधार लेकर राष्ट्रभाषा स्थापित करने का प्रावधान किया होगा. जिसकी वजह से आज तक देश को राष्ट्रभाषा नहीं मिली। हर कोई चाहेगा कि अपनी ही भाषा राष्ट्रभाषा बने। परंतु वास्तव में वैसा कर पाना हो सकता है मुश्किल है परंतु नामुमकिन नहीं। जहाँ चाह, वहाँ राह। खैर, हम इसका समाधान ढूंढने की कोशिश करते हैं।
         वर्तमान संविधान की आठवीं सूची में २२ भाषाओं को भारत की राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में स्वीकार किया है। अक्सर मन में प्रश्न उठता है कि आठवीं सूची में जिन भाषाओं का उल्लेख मिलता है, उसमें अंग्रेजी कहाँ है? मतलब वह भारतीय भाषा नहीं है, यह पूरे देश ने स्वीकार किया है। आजादी के वक्त देश में अंग्रेजी भाषा को अंग्रेजों का शासन और भारतीयों के शासन प्रणाली में समतोल रखने हेतु प्रशासनिक उपयोगिता जानकर पंद्रह वर्षों के लिए हिंदी के साथ राजभाषा के रूप में स्वीकारा। परंतु, आजादी के बाद और पंद्रह वर्षों की सहूलियत के बाद भी लगभग ५५ वर्ष याने आज तक अंग्रेजी संघ की राजभाषा याने कार्यालयीन, कार्यकारी भाषा के रूप में काम कर रही है। ‘ इसके अतिरिक्त अंग्रेजी का अपने संविधान में क्या स्थान है?’ क्या अपनी संवैधानिक २२ राष्ट्रीय भाषाएँ और लगभग अन्य ४० भाषाएँ जो राष्ट्रीय भाषाओं में स्थान पाना चाहती हैं उनमें से एक भी ऐसी भाषा नहीं है कि वह अंग्रेजी का स्थान लेकर राजभाषा बन गौरवान्वित हो सके?
         ना ही मैं अंग्रेजी भाषा का विरोधी हूँ और न ही पूरी तरह से किसी एक भारतीय भाषा के पक्ष को लेकर विधान कर रहा हूँ। मैं सिर्फ अपनी भाषाओं के सम्मान के साथ किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में देश की आवाज बनाने का प्रयास करने की कोशिश कर रहा हूँ। अंग्रेजी की तरह विश्व की तमाम भाषाएँ ज्ञान भाषा के रूप में स्वीकारना ही उचित होगा, न कि माँ, मौसी को छोड़कर किसी और को जिससे न खून का रिश्ता हो, न दूरतक का रिश्ता हो उसे माँ, मौसी मानकर चलें। मौसी तो कम से कम खून का रिश्ता तो रखती है और भारतीय धरोहर ने मौसी को भी माँ का दर्जा दिया है। उसी प्रकार से अपनी भाषाओं को आगे ले जाना भारतीय होने के नाते हर एक का कर्तव्य है, ऐसा मैं मनाता हूँ।
         आप सभी जानते है कि अपने संविधान में विशेष परिस्थिति में देश हितार्थ संविधान में भी परिवर्तन करके अथवा अतिरिक्त कानून पारित करके संविधान परिवर्तन एवं संवर्धन का उल्लेख मिलता है। हम सभी भारतीय जानते है कि आज तक लगभग १२६ बार संशोधन हुआ है. कईं परिवर्तन स्वीकार किए गए हैं. मतलब भाषा संबंधी संविधान में परिवर्तन लाया जा सकता है। माना कि लंबी प्रक्रिया है, पर संभव है।
         कई बार राष्ट्रभाषा को लेकर वाद-विवाद होते रहे और समाधान किए बिना सब शांत होते रहे। कई बार दक्षिण के कुछ राज्यों के विरोध से हिंदी को राष्ट्रभाषा के स्तर पर स्थान नहीं मिला है। विरोध होना जायज भी हैं, परंतु मध्य निकालकर आगे बढ़ने के बजाए वहीं अटके रहे। देखा जाए तो अपने देश में सबसे अधिक और विश्व में दूसरे स्थान पर बोली एवं समझी जाने वाली भाषा है हिंदी। फिर भी अपने ही देश में हिंदी को लेकर विवाद खड़े हैं, कारण है भाषाधारित प्रांत रचना। फिलहाल उसे अलग रखना बेहतर है। हम राष्ट्रीयता को ध्यान में रखकर सोचे। मैं और बहुत से भारतीय कोई भी एक भारतीय भाषा को राष्ट्रभाषा के स्थान पर  देखना चाहते है. यदि थोड़ी राजकीय इच्छाशक्ति हो तो संभव है। कैसे? आइए इसके बारे में चिंतन करें।
         लगभग २५० वर्ष अंग्रेजों ने शासन किया और पीछे अंग्रेजी छोड़ गए, लेकिन उनके पूर्व कई सालों से आर्य भाषाएँ और द्रविड़ भाषाएँ जो प्राचीन एवं प्रचलित है, उनका प्रभाव वर्तमान में कम क्यों हुआ है? सोचने वाली बात है। क्या हम अपने देश की भाषाओं के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए कुछ नहीं करेंगे? क्या आनेवाली पीढियाँ सिर्फ किताबों में ही अपनी भाषाओं को पढ़ेगी? अपनी भाषाओं को मध्य रखते हुए यदि सबसे बड़ा परिवर्तन देश की राजभाषा के रूप में काम कर रही भाषाओं में और अन्य कुछ स्थानों पर करेंगे तो निश्चित है, अपने देश को राष्ट्रभाषा मिलेगी। आप सुज्ञ पाठक इन संभावनाओं को परखें, जाँचे –
         राष्ट्रभाषा का नया कानून पारित किया जाए। इसके लिए चौबिस वर्षों का एक कार्यक्रम चलाया जाए। यह कानून पारित एवं लागू करने के बाद शासन में राजकीय परिवर्तन के बावजूद भी किसी भी प्रकार की परिस्थिति में कार्यक्रम अवधि समाप्ति तक संशोधन नहीं किया जाए। राष्ट्रभाषा निर्माण कार्यक्रम समयावधि समाप्ति के बाद शुरआती संशोधन, कार्यक्रम दौरान स्थिति और वर्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए देश राष्ट्रभाषा का स्थान निश्चित हो सकता है। फिर संशोधन के अनुसार लागू करने की अनिवार्यता करेंगे तो सबकुछ संभव है।
राष्ट्रभाषा की ओर ले जाने वाला कार्यक्रम -
         अपने देश के विकास को सामने रखते हुए अगले चौबीस सालों के लिए देश की सांस्कृतिक समूह की सर्वाधिक बोली एवं समझी जानेवाली दो भाषाओं को (आर्य और द्रविड़) गुट राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए। इसके लिए जनमत का आधार लेकर दोनों ओर से एक-एक भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर चयन किया जाए।
इन्हीं भाषाओं को सोलह वर्षों के लिए राजभाषा अर्थात संघ की कार्यालयीन भाषा के रूप में स्वीकार किया जाए। इनमें से प्रथम किसी एक भाषा को पहले आठ वर्षों के लिए प्रमुख राजभाषा और अन्य भाषा को सह राजभाषा के स्तर पर प्रयुक्त किया जाए। अगले आठ वर्ष के लिए इनमें से सह राजभाषा के स्थान पर प्रयुक्त भाषा को प्रमुख राजभाषा के स्थान पर लेकर पहले प्रथम स्थान की भाषा को सह राजभाषा के रूप में प्रयोग में लाया जाए।
         किसी अत्यावश्यक परिस्थिति में तथा इन दो भाषाओं के व्यवहार में कठिनाई उपस्थित हो तो मात्र पहले १६ वर्षों के लिए दुभाषी के रूप में ऐश्चिक ज्ञानभाषा अथवा किसी अन्य भारतीय भाषा का प्रयोग करें जो सरल एवं सुलभ हो। जब इसे लागू किया जाएगा उस वर्ष से ही संपूर्ण देश में इन दोनों भाषाओं को शिक्षा क्षेत्र में शुरआत से ही लाना होगा. इसमें भी पहले वर्ष पहली, दूसरे वर्ष दूसरी, तीसरे वर्ष तीसरी, इस क्रम से यह लागू किया जाए।पहले सोलह सोलह सालों बाद इस प्रकार से भाषा शिक्षा निती को अपनाया जाए। फिर अनिवार्यता के साथ कक्षा पहली से पाँचवीं तक मातृभाषा के साथ ऐश्चिक भाषा के रूप में इन दो में से एक भाषा का सीखना अनिवार्य हो, लेकिन स्तर आयु एवं बौद्धिक क्षमतानुसार हो। कक्षा छठी से दसवीं तक मातृभाषा, गुट राष्ट्रभाषा एवं ज्ञान भाषा के रूप में अंग्रेजी अथवा अन्य ऐश्चिक भाषाओं का अध्ययन अनिवार्य हो। अन्य विषय हमेशा की तरह हो। कक्षा दसवी के बाद राष्ट्रभाषा की अनिवार्यता के साथ मातृभाषा एवं ज्ञान भाषाएँ ऐश्चिकता के तौर पर हो। अध्ययन अध्यापन में दुभाषी के लिए मातृभाषा का प्रयोग हो।
जो भारतीय शिक्षा गतिविधियों से बाहर हैं, उनके लिए नई राजभाषा को अवगत करने हेतु गाँव से लेकर शहर के हर मुहल्ले तक पहले सोलह वर्षों के लिए प्रौढ़ शिक्षा अभियान की तरह राष्ट्रभाषा शिक्षा अभियान चलाया जाए। इसकी उपयोगिता शिक्षा पूरक भी हो जाएगी। पूरा देश अगले सोलह सालों में अपनी राजभाषाओं से अवगत हो जाएगा।
         परिणाम अगले सोलह वर्षों में पूरे भारत वर्ष में गुट राष्ट्रभाषा (दोनों भी भाषाओं) का प्रचार प्रसार संपूर्ण भारत देश में होगा। देश का कोना-कोना इनसे परिचित हो जाएगा। भाषा अध्ययन भविष्य में क्रमशः जारी रहे। 
         साथ ही अन्य क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं के संवर्धन के लिए नियमित विशेष क्षेत्र में और एक वार्षिक सभी भारतीय भाषाओं का भाषाई सांस्कृतिक महोत्सव कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए। समान शिक्षा, व्यवहार, समान सुअवसर, समान राजभाषा की निति पर आधारित प्राविधि हो।
         सोलह वर्ष बाद अगले आठ वर्षों के लिए समान रूप में गुट राष्ट्रभाषाओं को प्रथम स्थान पर राजभाषा का दर्जा दिया जाए। सहभाषा का स्तर हटाया जाए। यहाँ पर भी समान स्थान दोनों भाषाओं को मिलेगा।
         इसी दौरान राष्ट्रभाषा समिति स्थापना करके उनके द्वारा चौबिस वर्षों की गतिविधियाँ पक्ष-विपक्ष को ध्यान में रखते हुए अहवाल तैयार किया जाए। अंत में दो भाषाओं पर पूर्व चौबीस वर्ष की गतिविधियों देखते हुए तथा आरंभिक दोनों भाषाओं की जनमत संख्या और वर्तमान जनमत का मध्य साधते हुए मतदान किया जाए। सर्वाधिक मतांक पाने वाली एक भाषा को देश की राष्ट्रभाषा स्थापित की जाए। साथ में दोनों भाषाओं का स्थान राजभाषाओं के स्थान पर कायम किया जाए। तथा दोनों भाषाओं के विकास हेतु विशेष कार्यक्रम का नियोजन किया जाए।
         इन चौबीस वर्षों के दौरान क्रमशः प्रत्येक क्षेत्र जैसे व्यवसाय, सेवा, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक आदि क्षेत्र तक इन भाषाओं के प्रयोग की अनिवार्यता लायी जाए। इस प्रकार से समान अवसर, समान प्रचार-प्रसार, समान शिक्षा, समान कार्यकारी स्तर देकर अंतिम निकष पर अपने ही देश की कोई भी एक भाषा राष्ट्रभाषा का स्थान ग्रहण कर सकती है।
         ‘निज भाषा उन्नति अहै’ इस उक्ति के अनुसार अपने देश की विकसनशील गंगा विकसित राष्ट्रों के समूह में जाकर समाएगी। इस प्रकार से लोकाभिमुख राष्ट्रभाषा अपने देश को मिल सकती है। बस! सकारात्मक सोच और पहल की आवश्यकता है।
         हाँ! एक वास्तव यह भी है कि यह कहना जितना सरल है, उसे अमल में लाना उतना ही दुरूह है। इसमें राजकीय इच्छाशक्ति की भूमिका अहम है क्योंकि यह मात्र विशिष्ट क्षेत्र की बात न होकर एकसंघ राष्ट्र की है। यदि अपने देश को किसी भी प्रकार से राष्ट्रभाषा मिलती है तो जीत अपने देश की भारतीय भाषाओं की है। कहते है न! नेता की जीत याने मतदाता की जीत। उसी प्रकार से यह जीत होगी भारतीय और भारतीय भाषाओं की।
         मित्रो! सुज्ञ भारतीय नागरिक होने के नाते लोकाभिमुख परिवर्तन की अपेक्षा रखता हूँ, ताकि आनेवाली हर पीढ़ी सम्मान के साथ सिर उठाकर अपने देश को वाणी दे सके न कि दुनिया के सामने झुके।
         राष्ट्रभाषा को लेकर मेरी यह व्यक्तिगत भूमिका देश का अभिमान बढ़ाने हेतु रखी है। यह किसी प्रकार से वाद-विवाद के परिप्रेक्ष्य में नहीं है। यह मेरे निजी विचार है। सहमति-असहमति पाठक पर छोड़ देता हूँ। कृपया इसे अन्यथा न ले।
वंदे मातरम! 
-०-
१० अगस्त २०२०
मच्छिंद्र भिसे ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
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सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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सोच-विचार (हाइकु) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'


'सोच-विचार'
विधा: हाइकु
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सोच के सोच
मैंने सही-गलत
पाई है सोच।
(सोच का स्वरूप)
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सोच अभ्यासी
ज्ञानवृद्धि को पाए
समृद्धि लाए।
(सोच का फल)
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पाने को प्यार
सही सोच अपना
ना न कहना।
(सोच का प्रभाव)
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पीर में सोच
सारगर्भित रखे
जग भी देखे।
(चिंतनीय सोच)
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सार्थक सोच
लक्ष्य पाने सोचिए
हो नि:संकोच।
(सार्थ सोच)
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आगे क्या होगा?
भूल जाए वो सोच
होगा सो होगा।
(चिंतार्थ सोच)
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ईश की देन
मनुज पाई सोच
मत दबोच।
(सोच की मुखरता)
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भूल अपनी
जब सोच स्वीकारे
आनंद भरें ।
(पश्चाताप की सोच)
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सोच विचार
कर ले व्यवहार
लाने बाहर।
(सोच की व्यवहारिकता)
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10 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
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मंगल 'वाणी' (हाइकु) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'



मंगल 'वाणी'
विधा: हाइकु
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मन चंदन
शत वाणी नमन
होऊँ पावन।
(सरस्वती स्वरूप वाणी)
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सगुण वाणी
जगत को समेटे
धरा को पानी।
(मधुर वाणी)
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लगे अंकुश
बेचाल वाणी पर
रहेंगे खुश।
(चंचल वाणी)
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गुरु की वाणी
अमृत-सी सुहाए
भाग जगाए।
(ज्ञान वाणी)
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वाणी प्रकोप
जीवन भार बने
जीवन भुने।
(क्रोधिष्ठ वाणी)
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दीजिए वाणी
मर मिटे निभाने
विश्वास पाने।
(वचन वाणी)
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वाणी को आँके
कहा सिर्फ न माने
आँख से देखे।
(भ्रमोत्पादक वाणी)
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मंगल वाणी
दादी के मुख सुने
कही कहानी।
(अनुभव वाणी)
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वाणी अपनी
नित अमृत घोलें
लगे सुहानी।
(मोहक वाणी)
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फिसले वाणी
वापस न आएगी
पीर लाएगी।
(असंयमी वाणी)
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9‌ अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
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मन की 'माया' (हाइकु)


मन की 'माया'
विधा: हाइकु
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जगत माया
जानिए सुधिजन
साफ हो मन।
(माया - मोहजाल)
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माया के पिछे
मनुज जब भागे
जाए न आगे।
(माया - दौलत)
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लोग न जाने
माया चाल निराली
बचेंगे खाली।
(माया - जादू)
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पागल मन
माया जाल में फँसे
निकले कैसे?
(माया - मोह)
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मन की माया
जाने कैसे बताए!
नित सताए।
(माया - कपट)
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भरोसा मिटे
माया बनी दीवार
मन न जुटे।
(माया - धोखा)
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माया के बिन
नहीं सृष्टि निर्माण
दे दो सम्मान।
(माया - नारी)
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8 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
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●राष्ट्रभाषा बिन गूँगा है मेरा देश● (आलेख) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

●राष्ट्रभाषा बिन गूँगा है मेरा देश●
हिंदी दिन विशेष
           मित्रो! हर साल की तरह १४ सितंबर २०२० के दिन ‘मैं’ ‘राष्ट्रभाषा हिंदी दिन’ मनाने जा रहा हूँ। मैं हिंदी को अपने देश की राष्ट्रभाषा ही मानता हूँ क्योंकि यह मेरे देश के हर नागरिक तक मेरी बात पहुँचाती है। भारतवर्ष में मैं कहीं पर भी चला जाऊँ, मेरे व्यवहार नहीं रुकते। उसका पूरा श्रेय हिंदी को ही जाता है।
        और ‘हम’ सभी संविधान के तहत ‘हिंदी राजभाषा दिन’ मनाने जा रहे है और मनाएँगे। ‘मैं और हम’ को यहाँ पर विशेष अंकित करना चाहता हूँ। इसका कारण यह है कि अपने देश में आजकल भाषा स्वातंत्र्य पर जाने-अनजाने पाबंदी आ गई है। इसके जिम्मेदार ‘हम’ है क्योंकि जब मैं/मेरी की बात आती है तो लोग धाडस के साथ ‘हिंदी मेरी राष्ट्रभाषा है’ कहने के लिए कतराते हैं और जब हम की बात आती है, तो हिंदी ही हमारी राष्ट्रभाषा है कहते तो है परंतु जब इस बात पर बवाल खड़ा होने पर मैं नहीं कोई और की ओर निर्देश करके खुद को बचाकर आराम से बचकर निकलते हैं। यह वास्तव मैं देख, अनुभव कर रहा हूँ। इसका मतलब कहीं न कहीं हमारे मन में देश को एकसूत्र में पिरोने वाली भरतीय भाषा 'हिंदी' के प्रति भारतीयता की कमी और स्वायत्त नागरिकता बढ़ती हुई नजर आती है। इसी का परिणाम आज हिंदी बहुभाषी मेरे भारत देश को अपनी आवाज नहीं मिली है, अर्थात गूंगा है मेरा देश। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी ने कहा भी था, राष्ट्रभाषा बिना देश गूंगा हैं।
            संविधान ने राजकाज/कार्यालयीन भाषा के तौर पर हिंदी को स्थान दिया लेकिन अंग्रेजी के विकल्प के साथ! इसी विकल्प के कारण आज अपने देश की अपनी कोई भाषा नहीं है। महज लगभग ढाई सौ वर्ष देश पर अधिकार जताकर हार मानकर वापस चलें गए अंग्रेजों की अंग्रेजी भाषा को संविधान में हिंदी के साथ मात्र पंद्रह वर्षों के लिए स्थापित किया। लेकिन, सन १९६५ से लेकर आज तक वह राजभाषा के रूप में हिंदी के साथ अधिकारीक भाषा के रुप में चलाई जा रही है। यह सबसे बड़ा आघात भारतीय भाषाओं पर हुआ है, परिणामतः किसी एक भाषाछत्र के निचे अपना देश नहीं आ रहा है। यह अपने देश के लिए लगा सबसे बड़ा ग्रहण है।
        विश्व में जिन देशों ने अपने देश की ही राष्ट्रभाषा और राजभाषा को स्वीकार किया है, वे देश दुनिया विकास की गति में अपने देश से कई गुना आगे है। जिसमें रशिया, अमेरिका, चीन, जापान, आदि  देश हैं।
        मैं तो इतना विद्वान नहीं हूँ, पर हमेशा मेरे मन में आशंका उभरती रही है। अंग्रेजों ने शासन करते वक्त शासन और लोगों के बीच संपर्क करने के लिए दुभाषी को अपनाया। वह दूसरी भाषा भारतीय ही थी, न की अन्य। और अंग्रेजों ने देश चलाया। जब देश आजाद हुआ, अंग्रेज चले गए, अपना शासन आया तो फिर अपना देश चलाने के लिए अन्य भाषा का प्रावधान क्यों? भारतीय किसी एक भाषा को देश की राष्ट्रभाषा और राजभाषा घोषित करके उसके साथ अन्य एक भारतीय भाषा को ही सहभाषा के रूप में स्थापित कर दिया जाता तो शायद अपने देश को एक वाणी मिल जाती और जहाँ आवश्यकता हो वहाँ दुभाषी का प्रयोग करके काम चल सकता था। परंतु राजकीय षड्यंत्र में फँसी हमारी भाषाएँ न उभर पाती हैं न देश की आवाज बनती है, विपरीत कुछ भाषाएँ लुप्त होने के कगार पर है। हमें इन्हें बचाना होगा।
            हम सभी जानते हैं, सन १९४९ में संविधान समिति ने हिंदी को संविधान के अनुच्छेद ३४३ के तहत हिंदी को राजभाषा का दर्जा देकर हिंदी को गौरवान्वित किया साथ ही हिंदी के प्रचार-प्रसार करने का प्रावधान भी किया। उद्देश्य था अपने देश को अपनी भाषा देने का! कारण आजादी के वक्त और आज भी अपने देश को एकसूत्र में बाँधे रखने का सामर्थ्य यदि कोई भाषा रखती है तो वह है 'हिंदी'। आज विश्व में सर्वाधिक बोली और समझी जाने वाली भाषाओं में हिंदी दूसरे स्थान पर और इंटरनेट पर जानकारी संकलन में हिंदी प्रथम स्थान पर है। हम सभी यह जानते है कि यदि देश की राष्ट्रभाषा बन सकती है तो हिंदी ही, पर मानते नहीं, लेकिन भविष्य में एक दिन इसे स्वीकारना ही होगा। आज विदेशों में हिंदी भाषा को शिक्षा में विषय के तहत पढ़ाया जा रहा है और अपने देश में हिंदी सीखने, बोलने और व्यवहार में लाने में कमी महसूस करने वाले ‘खुद’ भारतीय होकर देशपरस्त है या विदेशिपरस्त खुद तय करें।
        हमें अपने देश की हर भाषा के प्रति आत्मीयता और अभिमान होना चाहिए, क्योंकि हम सबसे पहले भारतीय है और बाद में प्रांतिक। मातृभाषा मेरी साँस है, तो राष्ट्रभाषा मेरा प्राणवायु है। बगैर दोनों के मेरा होना, न होने के बराबर है। हमारी कोशिश यही हो कि भारतीय भाषाओं का सम्मान हो, अपने देश को राष्ट्रभाषा देने हेतु प्रयास हो। महत्वपूर्ण - अपने देश को गूंगे से मुखर होने हेतु सहायता करें। जय भारत! जय राष्ट्रभाषा हिंदी! 
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08 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
(अध्यापक-कवि-संपादक)
पता: भिरडाचीवाडी (भुईंज), तह. वाई, जिला सातारा (महाराष्ट्र) 415515
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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हाथ की बात (हाइकु)


हाथ की बात
विधा: हाइकु
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अपने हाथ
भरोसा कर प्यारे
निभाते साथ।
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आए जो हाथ
कंकड़-हीरे-मोती
ले चलें साथ।
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हाथ लकीर
निर्माण करे खुद
बन फकीर।
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हाथ से हाथ
हृदय मिलाइए
राहत पाए।
------🙏-----
हाथ मिलाने
हाथ कोई पसारें
भेद भी जाने।
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हाथ हो नत
जहाँ ईश चरण
होने पावन।
------🙏-----
हाथ भी उठे
अन्याय अनाचार
जहाँ हो डटे।
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हाथ पसारे
औरों के हीत काज
दुःख बटोरें।
------🙏-----
जिन्हें न हाथ
करने को प्रयाण
ईश है साथ।
------🙏-----
हो जगन्नाथ
तुम भी जानो अब
हाथ की बात।
------🙏-----
हाथ झंकार
हम रहे न रहे
हो बारंबार।
------🙏-----
7 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
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मन पखेरू (हाइकु)


🌞 मन पखेरू 🌝
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विधा: हाइकु
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चंचल मन
चारों दिशा विचरै
जस पवन।
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पावन मन
चाहे सबकी खैर
चाहे हो बैर।
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मन पखेरू
सुख-दुख औ' प्यार
ले हैं सवार।
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मन न माने
किसी को भी पराया
हो सबै साया।
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चल रे मन
रूक न पथ पर
धीरज धर।
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5 अगस्त 2020
*मच्छिंद्र भिसे*©®
सातारा (महाराष्ट्र)

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सत की नाव (हाइकु)

🌞 *सत की नाव* 🌝

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विधा: हाइकु
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सत के पंथी
राह जो जहाँ चलें
पथ न भूलें।
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सत ना मरे
लाख चाहे असत
कोशिश करे।
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मिलेगा ठाँव
रहे सवार नित
सत की नाव।
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सत सद्गुरू
शरण जो भी जाए
मुक्ति वे पाए।
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सत ही सत
जीवन अपनाया
सत को पाया।
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6 अगस्त 2020
*मच्छिंद्र भिसे*©®
सातारा (महाराष्ट्र)
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■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती ■

  ■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती  ■ (पत्रलेखन) मेरे देशवासियों, सभी का अभिनंदन! सभी को अभिवादन!       आप सभी को मैं-  तू, तुम या आप कहूँ?...

आपकी भेट संख्या