मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

शिक्षा के नए प्रवाह (सह संपादकीय आलेख)

एक पहल - सह संपादकीय आलेख 
शिक्षा के नए प्रवाह
मच्छिंद्र भिसे 
          हम अध्यापक होने के नाते अपने छात्र एवं अपने परिवार के बच्चों को हमेशा एक संदेश देते आए हैं और देते रहेंगे – ‘ज्ञान और सही शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती।’ इस बात से मैं शतप्रतिशत सहमत हूँ। अध्यापक भाइयो और बहनो, कई बार शिक्षा विभाग की ओर से समय के अनुसार शिक्षा पद्धति में बदलते प्रवाह को लेकर अपने ज्ञान को अद्यावत करने के लिए कहा जाता है। कुछ अध्यापकगण इन बातों को स्वीकृति देकर अपनी ज्ञान की परिधि बढ़ाते भी हैं; परंतु कुछ अध्यापक नई बात स्वीकार करने से ही डर जाते हैं। वह यह सोचते हैं कि यदि हम यह सीखेंगे तो हमारी जिम्मेदारियाँ बढ़ेगी, हमें अधिक काम करना पड़ेगा। इस गलतफहमी की वजह से वे जहाँ हैं वहाँ पर ही रहते हैं। और जब सचमुच उस ज्ञान की उपयोगिता की अनिवार्यता हो जाती हैं तो फिर पछताने अथवा किसी से सहायता लेने की आवश्यकता महसूस होती है। ऐसे समय में वे ग्लानि महसूस करते हैं।

          देखिए ना! वर्ष 2010 के बाद शिक्षा विभाग की ओर से अध्यापक मित्रों को तंत्रस्नेही और ज्ञान रचानावादी बनने के लिए कहा गया। जिसके लिए शासन की ओर से प्रशिक्षण वर्ग भी चलाएँ। बहुत से अध्यापक तंत्रस्नेही और ज्ञान रचानावादी बने। अध्यापकों को प्रोत्साहित करने के लिए बालेवाड़ी, पुणे में ‘शिक्षणाची वारी’ जैसे उपक्रम भी चलाएँ, जिसका फायदा भी बहुत हुआ। आज इस शिक्षा की अनिवार्यता आई है। भले ही वह कुछ अवधि के लिए ही क्यों न हो परंतु उसे हमें अपनाना होगा; परंतु एक वर्ग ऐसा भी है जिन्होंने सोचा कि यह सबकुछ करके कुछ फायदा नहीं हैं; उन लोगों के सामने अब ऐसी परिस्थिति आई हैं कि अब हर हाल में जिन लोगों ने तंत्रस्नेही और ज्ञान रचानावादी को अपनाकर अपने अपनी ज्ञान सीमा को बढ़ाया है उन लोगों के साथ एवं समान रूप में काम करने का समय आ गया है।

          आजकल पूरा विश्व कोरोना जैसी संक्रामक महामारी से प्रभावित है, जिसके चलते सभी गतिविधियों में अवरोध उत्पन्न हुआ है। सबसे अधिक अपना शिक्षा विभाग प्रभावित हुआ है। यह बिमारी ही कुछ ऐसी है। महाराष्ट्र राज्य में लगभग मार्च के तीसरे सप्ताह से पाठशालाएँ नहीं लगी हैं। ऐसे में प्रतिदिन अपने छात्रों को भेट करने वाले छात्रप्रिय अध्यापन करने वाले अध्यापक अपने छात्रों से दूर तो हैं, परंतु अपनी ओर से उनके साथ आज के तकनीकी साधनों के माध्यम से जुड़े रहने की कोशिश कर रहे हैं। दुनिया जानती है कि ‘शिक्षा’ और ‘अध्यापक’ के लिए दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता और इसी लिए हमारे अध्यापक मित्रगण अपने घर से बच्चों तक शिक्षा पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। जो सरहानीय सेवा है। हम सभी को इस बात का सभी को खयाल रखना आवश्यक है कि शिक्षा, छात्र और अध्यापक गण एक-दूसरे के पूरक है। 

          एक अध्यापक और अभिभावक होने के नाते हमारी जिम्मेदारियाँ और बढ़ी है। आजकल मोबाईल और संगणक के माध्यम से ऑनलाइन तथा ऑफ़लाइन शिक्षा देना समय की आवश्यकता हो गई है, परंतु यह स्थायी होना या करना नई पीढ़ी के लिए हानिकारक ही सिद्ध होगा। अपने देश की परिस्थिति और उपलब्ध तकनीकी सामग्री को देखकर इस प्राविधि का लाभ कितना? किसे? और कब होगा? यह सब प्रश्न असमंजस में डालने वाले हैं क्योंकि अपने देश की ७० फीसदी आबादी तो देहात में रहती है और इनमें से ७५ फीसदी लोगों के पास पूरी क्षमता के साथ आज तकनीकी सुविधाएँ नहीं हैं। ऐसे में आज हम कितनी ही विकास की बातें करें और इस प्रकार की ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा देने का प्रयास करे; तो भी सभी बच्चों तक पहुँचना बहुत ही मुश्किल है। और जिनके पास यह सुविधाएँ हैं उनमें से कितने अभिभावक अपने बच्चों को यह तकनीकी सुविधाएँ नियमित रूप से दे पाएँगे और उनपर देखरेख कौन करेगा? क्या बच्चों के हाथ में मोबाईल और संगणक अथवा लैपटॉप आनेपर उसका गलत प्रयोग नहीं होगा इसका खयाल कौन करेगा। क्योंकि मैंने अनुभव किया है कि ऑनलाइन मीटिंग का अनुभव पाते ही कुछ छात्र अपने मित्रों के साथ ऑनलाइन मीटिंग बुलाकर अपना समय, स्वास्थ्य और धन का भी नुकसान कर रहे हैं। ऐसी बुरी पहल की रोकथाम भी करना बहुत आवश्यक है। 

          हाँ, सच है कि आज की समसामयिक परिस्थिति के अनुसार इन सभी चीजों की आवश्यकता है; परंतु सुविधाओं का होना ही सबकुछ नहीं हैं। उनका सही प्रयोग करना भी आना चाहिए। कुछ छात्र, अभिभावक और अध्यापक इनके प्रयोग से भी अवगत नहीं हैं, इन परिस्थितियों में शिक्षा के उद्देश्यों को कैसे सफल कर पाएँगे? ग्रामीण क्षेत्र में कुछ अभिभावकों से ऑनलाइन शिक्षा के बारे जाँच की, तो एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने कहा कि यह ‘आनलाइन पाठशाला (स्कूल)’ कहाँ है? अब यह बताइए, यहाँ से यदि शुरआत हो तो सोचिए शिक्षा पर परवान कब चढ़ेगा। इसका मतलब यह है कि भौतिक दृष्टि से पाठशालाओं का सुचारू ढंग से शुरू होना आवश्यक है; परंतु यह अब के समय में तुरंत संभव नहीं है। अध्यापक और विद्यार्थी जब आमने-सामने होते हैं तो उनका अनूठा रिश्ता बनता है। अब ऑनलाइन / ऑफलाइन शिक्षा से आपसी लगाव कैसे निर्माण होगा? बस! बच्चों को किसी अन्य गलत चीज से लगाव न हो, इसकी चिंता है। 

          आज हमारे अध्यापक भाई-बहन इस ऑनलाइन/ऑफलाइन शिक्षा की अनिवार्यता से परेशान है और होंगे भी क्यों नहीं! जब अचानक पारंपरिक शिक्षा गतिविधियों को छोड़कर इस प्रकार की पद्धति को अपनाना बहुत कठिन प्रतीत हो रहा है, फिर भी हमारे अध्यापक भाई-बहन इस प्रवाह में आने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। किसी मोबाईल अथवा संगणक एप्लीकेशन के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं तो कुछ अध्यापक मित्र पाठ्य घटकों के चलचित्र (विडियो) बनाकर भेज रहे हैं। मात्र एक पाठ का आधे घंटे का चलचित्र बनाने के लिए पूर्ण तीन से चार दिन लगते हैं, फिर इसमें तकनिकी साधनों के माध्यम से छात्रों तक पहुँचाने का काम करते हैं। परीक्षाएँ भी इसी प्रकार से ली जा रही हैं। इतनी सब मेहनत करने के बावजूद भी क्या शिक्षा के उद्देश्य सफल हो पाएँगे, यह देखना भी बहुत आवश्यक है। हम सभी के लिए सभी छात्र एक समान है, यदि शिक्षा समान रूप में पहुँचाना चाहते हैं तो उनके पास भी सभी तकनीकी सुविधाएँ समान रूप में उपलब्ध होना निहायत आवश्यक है। इतना करने के बाद भी इनटर्नेट सर्वर, मोबाईल सिग्नल कव्हरेज, आदि तकनीकी बाधाओं के कारण यह सब प्रयास विफल हो जाते हैं।

          समस्याएँ है, तो उसपर समाधान भी होता है। आज इसके लिए देश में दूरदर्शन (टेलिव्हिजन) एवं आकाशवाणी (रेडियो) जैसे प्रभावी माध्यम का उपयोग शिक्षा के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। जिस प्रकार दूरदर्शन पर बाल चित्रवाणी जैसे शिक्षाप्रद कार्यक्रम चलाए जाते थे उसी प्रकार एखाद दूरदर्शन और रेडियो चैनल शिक्षा के लिए उपलब्ध कराया जाए तो हमेशा के लिए शिक्षा के प्रचार-प्रसार का पूरक प्रभावी माध्यम बनेगा। आज प्रत्येक घर में दूरदर्शन नहीं तो रेडियो उपलब्ध है। और यह सहजता के साथ उपलब्ध भी हो जाएगा। यदि आर्थिक स्थिति कमजोर हो तो भी नजदीकी परिवारों में उपलब्ध इन सुविधाओं का लाभ आज की परिस्थिति विशिष्ट अंतर रखकर एवं सावधानी के साथ उठाया जा सकता है। अब सभी को इसकी एक पहल करना आवश्यक है। 

          चाहे कुछ भी हो, अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए हम शिक्षक सक्षम है और रहेंगे यह प्रण करें। चाहे कोई भी परिस्थिति क्यों न हो। हम नहीं हारेंगे। समय एक-सा नहीं रहता इस उक्ति के अनुसार यह भी समय बदलेगा और फिर से घंटी बजेगी, पाठशालाएँ लगेगी, फिर से बच्चों की बगिया चहचहाएगी और फिर हम अपने बच्चों के साथ समरस हो जाएँगे। इसी विश्वास के साथ आज की इस विपत्ति की समाप्ति की मंगलकामना करते हुए आपके इस शिक्षा कार्य के लिए बधाई देता हूँ।

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७ अप्रैल २०२०
लेखक 
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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