मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

पत्र - पत्रिका अभिमत

आदरणीय
संपादक महोदय/ महोदया
साहित्य समीर दस्तक - पत्रिका
अभिमत -
प्रति माह की तरह ही पहले सप्ताह में ही 'साहित्य समीर दस्तक' पत्रिका का मार्च २०१८ का अंक इस बार जल्द ही पहुंचा। बहुत-बहुत धन्यवाद। साहित्यिक विधाओं की सुमधुर थाली सजाकर जब पत्रिका का अंक पहुंचता हैं, तो बिना समय गवाए आस्वाद लेने का आदि हो चूका हूँ। इस माह में भी फागुन जैसे साहित्य के नौरंग से भरी पत्रिका का आकर्षक मुखपृष्ठ ही मन में उल्हास उत्पन्न करता हैं। 'अपनी बात' में विश्व महिला दिवस के उपलक्ष्य में सोचनीय विचार एवं 'मन की बात' में संघर्ष का जीवन में महत्त्व दर्शाने वाले राजकुमार जैन'राजन' एवं 'कीर्ति श्रीवास्तव' जी के संपादकीय आलेख पठनीय एवं आत्मीय हैं। अंतरंग में कहानी, लघुकथा, काव्य कुंज (गजल, नयी कविता, क्षणिकाएँ आदि), यादों के झरोखे से, जिए तो ऐसे जियें, पूर्वांचल की साहित्य आभा, जीना इसी का नाम हैं और बाल जगत जैसे शीर्षकों में हर साहित्य अपना अनूठापन लिए हैं और इसमें चार चाँद लगाए हैं राजन जी द्वारा स्व-आरेखित मानवी भाव-भावनाओं के सजीव चित्रों ने। पत्रिका में सतीश कुमार जी की 'फिर वहीं शुरआत' आज के युवा वर्ग को लक्ष्य से विचलित न होने का मार्मिक संदेश देनेवाली समर्पक कहानी हैं। विनोद कुमार जी की 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' लघुकथा गरीबी में 'शिक्षा' पेट पालने का साधन दिखाकर देश की गरीबी को दर्शाने की सफल कोशिश है। ज्योति प्रकाश खरे जी का होली का आलेख ब्रज के होली पर्व का दर्शन करता हैं। बाल जगत की कहानी 'मास्टर प्लान' एवं 'पुरस्कार' तथा काव्य बच्चों को बोधप्रद और शिक्षाप्रद हैं। आधुनिकता के कारन पडोसी, दोस्त एवं रिश्तों के में आईं दरारे अंजली खेर जी ने अपने आलेख में सहज व्यक्त की हैं। काव्य कुंज में 'मैं जो हूँ , थोड़ा-सा आकाश, कभी इश्क में जलकर देखो-ग़ज़ल, ढलती जा रही- ग़ज़ल और मौत तू आजा' यह काव्य रचना विशेष पसंद आईं। समूची पत्रिका पठनीय, शिक्षाप्रद, बोधप्रद, प्रेरणादायी और सभी वर्ग के पाठकों के अनुकूल हैं। साहित्यिक गतिविधियों के परिचय के साथ विभिन्न पुस्तकों का एवं साहित्यिक पत्रिकाओं का परिचय देकर पठनीय साहित्य घर-घर पहुँचाने का निस्वार्थ कार्य प्रशंसनीय हैं। छठवें साल में उच्च श्रेणी का हर माह 'साहित्य समीर दस्तक' पत्रिका के सफल अंक प्रकाशित करने हेतु राजकुमार जैन 'राजन' जी और कीर्ति श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाइयाँ एवं मंगलकामनाएँ।  
पाठक गण 
मच्छिंद्र भिसे सातारा 
०८ मार्च २०१८ 


मा.संपादक महोदय,
                   सादर नमन,
                  उदय सर्वोदय की पूरी टीम द्वारा प्रकाशित फरवरी २०१८ के इ-पत्रिका का अंक कुछ दिन पूर्व ही प्राप्त हुआ। बहुत-बहुत ध्यानवाद। इस अंक में प्रेम दिवस के उपलक्ष्य में लिखे सभी आलेख एवं छोटे-छोटे खाने में ऐतिहासिक तथा आधुनिक विशेष व्यक्तियों के उनके जीवन से जुड़े अपरचित रोचक प्रेम प्रसंग पाठकों के लिए प्रस्तुत किए है जो रोचक हैं। फ़िल्मी दुनिया के आलेख भी अच्छे लगे। साथ ही राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक आलेख पठनीय हैं। 'दिलचस्प', 'इतिहास के आईने में' और साहित्य में 'दूधनाथ सिंह जी' का परिचय,' राजकुमार जैन 'राजन' जी की 'कविताएँ, अपरचित कहानी 'सरहपाद का निर्गमन', अमरीश सरकानगो द्वारा लिखित हास्यव्यंग 'कटाक्ष' और 'इश्क के मराहिल' विशेष पठनीय एवं प्रशंसनीय है। समूची पत्रिका ही पठनीय हैं। एक निवेदन है कि साहित्य के ३-४ पन्ने और बढ़ाएँ जाए तो पत्रिका में चार-चाँद लग जाएँगे। उदय सर्वोदय के संपादक एवं पूरी टीम को आप सभी के योगदान के लिए बधाईयाँ एवं मंगल कामनाएँ। 
       
आपका 
मच्छिंद्र भिसे 
१८ फरवरी २०१८ 


आदरणीय राजकुमार जैन 'राजन' बंधुवर,
               सादर नमन।
               'उदय सर्वोदय' के फरवरी २०१८ के अंक में प्रकाशित रचनाओं हेतु आपको बहुत-बहुत बधाइयाँ।                
                आपका साहित्य पाठकों के प्रेरणादायी होता हैं। आप बालसाहित्य में सिद्धहस्त तो है ही और प्रौढ़ साहित्य में भी आपकी कलम जीवन अभिव्यक्ति को साकार कर देती हैं।  हाल ही में 'उदय सर्वोदय' के फरवरी २०१८ अंक में  प्रकाशित आपकी 'प्रतीक्षा सूर्योदय की', 'मन के कैनवास' और 'जिजीविषा' शीर्षक में प्रकाशित कविताएँ पढ़ने को मिली। तीनों भी कविताएँ अंतर्मन की कश्मकश और वेदना को व्यक्त करती हैं, जो किसी न किसी प्रकार से हर एक मन से जुडी हैं।
                  'प्रतीक्षा सूर्योदय की' नामक काव्यकृति द्वारा टूटे हुए मन की दुविधा, पूर्व मधुर पलों का एहसास तथा अपने मन के अंतर्द्वंद्व अपने प्रियतम / प्रियतमा के सम्मुख रखते हुए, हारे मन में फिर नई उम्मीद के साथ नए विहान के लिए नए सूर्योदय की प्रतीक्षा में वह आत्मा आज भी है। वह सूर्योदय अनहोनी लेकर आएगा ऐसी आशाओं की किरण देनेवाली सृजनीय काव्यकृति  हैं। आपकी दूसरी रचना 'मन के कैनवास' ऐसी कविता है जो आशावादी सपने तो बुनने की चाह रखती है, परंतु बढ़ते उपभोक्तावाद की संस्कृति में निष्ठुर कर से कैसे सपनों को कुचला जाता है और वे सपने कल्पना में भी न उभरे ऐसी व्यवस्था को दर्शाने वाली और पाठक को अंतर्मुख सोचने  के लिए मजबूर करनेवाली रचना बहुत कुछ कह जाती हैं। 'जिजीविषा' काव्य हर व्यक्ति के जीवन के निकट है। हर मनुष्य अपना जीवन खुशहाल बीत जाए इसके लिए निरंतर कोशिश में रहता हैं, बहुत-सी आपत्तियाँ आती रहती हैं उन्हें पार करने के बाद आगे बढ़ता है तो पता चलता है जीवन में कसौटी का महत्त्व क्या हैं। फिर भी जीने की चाह कभी पराजित नहीं होनी चाहिए, ऐसी सिखावन दे जाती है। आपकी 'जिजीविषा' काव्यकृति पढ़ते वक्त कविवर्य रविंद्रनाथ ठाकुर जी की 'विपत्तियों से रक्षा कर' काव्यकृति  की स्मृतियाँ उभर गई।
               समग्र इतना ही कहना चाहूंगा कि आपकी समुचित रचनाएँ जीवन को अभिव्यक्ति देती हैं। आपकी इन प्रकाशित रचनाओं हेतु आपको बहुत-बहुत बधाइयाँ एवं आपके द्वारा साहित्य की सेवा बरक़रार रहे यहीं ईश्वर से और आपसे अनुनय। 
              'उदय सर्वोदय' की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाइयाँ एवं मंगल कामनाएँ । पत्रिका के माध्यम से उत्कृष्ट साहित्य पाठकों तक पहुँचाने के लिए सहृदय आभार।

भवदीय,
मच्छिंद्र बापू भिसे
१७ फरवरी २०१८ 


आदरणीय संपादक महोदय / महोदया,
          हर माह की तरह ‘दिसंबर २०१७’ का ‘साहित्य समीर दस्तक’ का अंक समय पर प्राप्त हुआ. यह अंक दिनोदिन निखर रहा है. आकर्षक मुखपृष्ठ एवं जिल्द के साथ इस अंक में प्रकाशित समूचा साहित्य प्रभावशाली साजसजा के साथ एवं उपयुक्त प्रस्तुत है. प्रारंभ में ही ‘अपनी बात’ में राजकुमार जैन ‘राजन’ जी ने रिश्तों को बेजोड़ बनाने एवं कीर्ति श्रीवास्तव द्वारा संपादकीय में ‘मन की बात’ आलेख में जीवन में बदलाव के स्वीकार की महत्ता की बात दिल को छू जाती है. रजनी गोसाई जी की कहानी ने संवेदनशीलता के साथ अजनबियों से रिश्तों की बात रोचकता से रखी है . सावित्री चौधरी जी की इंसानियत को नमन कहानी आज की नारी को सबल बनाने की प्रेरणा देती है तो अब बस अजनबियों को अतिथि के रूप में स्वीकार कर मन का अंतर्द्वंद्व दर्शाने वाली पूनम पाण्डे जी की कहानी रोचक है. बाल जगत में आईं प्रयास की तकाद और भय से मुक्ति कहानियाँ छात्रों के लिए प्रेरणादायी है. यादों के झरोखे से में प्रकाशित ‘अनुकूल’ कहानी रिश्तों का खोखलापन दर्शानेवाली वास्तविकता का चित्र उभारती है.
        काव्य कुंज, पूर्वोत्तर काव्य, बाल जगत आदि की कवितायेँ रोचक एवं ज्ञानवर्धक है. आकर्षण का केंद्र बनी है वाणी बरठाकुर जी की कविता ‘तड़प’, अन्य कवितायेँ भी जीवन के कई रंगों को बिखेर रही हैं. एक दृष्टि में कहे तो समूचा पत्रिका ही आदर्श एवं हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि हैं. इसके अभिनंदन के पात्र साहित्य समीर दस्तक पत्रिका के संपादक मंडल एवं हिंदी साहित्य को हमारे जैसे पाठकों तक पहुँचाने वाले रचनाकार एवं पत्रिका से जुड़े सदस्य. यह अंक मेरे लिए विशेष रहा क्योंकि प्रथम बार मेरी साहित्यिक कृति काव्य ‘विद्वान की सलाह’ ‘साहित्य समीर दस्तक’ के अंक में प्रकाशित हो गई इस हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद. सभी का मन:पूर्वक धन्यवाद और साहित्य समीर दस्तक की दस्तक आंतर्राष्ट्रीय साहित्य तक पहुचे इसलिए इश्वर को मेरी ओर से निवेदन की दस्तक.
बहुत-बहुत आभार !!!!
आपका
मच्छिंद्र भिसे
१२ जनवरी २०१८ 


सेवा में,
मा. संपादक / सहसंपादक 
साहित्य समीर दस्तक 
(मासिक पत्रिका)

विषय : आपके द्वारा प्रकाशित साहित्य समीर दस्तक का अक्तूबर २०१७ का मासिक अंक। 

महोदय,
सादर प्रणाम !
            आपके द्वारा भेजा गया अक्तूबर २०१७ का साहित्य समीर दस्तक मासिक पत्रिका का अंक मिला बहुत-बहुत धन्यवाद !
            हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं नवसहित्य रचनाकारों की रचनाएँ प्रकाशित करने वाली यह पत्रिका हिंदी पत्रिकाओं में अपना अनूठापन लिए प्रसिद्ध है। मुझे माह अक्तूबर २०१७ का मासिक अंक पढ़ने को मिला। यह अंक दीपावली पर्व के पहले प्रकाशित होने के कारण दीपावली के साहित्यिक पर्व का आगाज कर चूका है। प्रस्तुत अंक का मुखपृष्ठ दीपोत्सव पर्व के अनुसार समर्पक है साथ-ही-साथ अंतरंग में राजन जी द्वारा जलते दीप की विभिन्न भाव-गुण से परिचित करने वाली प्रतिमाएँ साहित्यिक छटाएँ एवं मानवी संवेदनाओं को अंकित करती हैं। मासिक पत्रिका के अंतरंग की विभिन्न विधाओं की सभी रचनाएँ अपने - आप में अनुपम हैं। विशेष रूप में मासिक पत्रिका के आकर्षण केंद्र में रही रचनाओं में संपादकीय में कीर्ति श्रीवास्तव जी द्वारा दीपावली पर्व पर लिखी मन की बात रोचक लगी।  डॉ. भगवती प्रसाद द्विवेदी जी की 'बाट जोहते हुए' कहानी में चाची के माध्यम से आपसी रिश्तों में हो रहें बॅटवारे के विषय को चिंतनशील बनाया है। पारिवारिक जीवन में सभी होने के बावजूद भी अकेली रहने वाली नारियों की वेदनाओं को प्रेषित करने वाली डॉ. सारिका कॉलरा जी के संवेदनशील कहानी है। 'नए आकाश की तलाश में' नारायण से नाथिया और नथिया की पारिवारिक तथा वृद्धावस्था के कारन सामने हो रहे अन्याय का सामना न करने की दुर्बलता का दर्शन कराने वाली ग्राम्य कथा अद्भुत है। अहंकार की जड़ हिलाने वाली सक्षिप्त परंतु हर एक को सजग करने वाली 'आत्मघाती अहंकार' और 'अपना देश' आत्मबोधक लघु बालकहानियाँ मुझे अच्छी लगी साथ ही छात्रों ने भी पसंद की। 'जीना इसी का नाम है' शीर्षक में लिखा स्तंभ 'अनुशासन' बेहद जरुरी विषय बहुत अच्छा एवं उपयोगी है। 
       पद्य विधाओं में एक से बढ़कर एक रचनाओं को प्रकाशित किया गया हैं। एक आँसू न कर बेकार, अपनी गंध नहीं बेचूँगा, पथरीले पथ आदि रचनाएँ श्रेष्ठ स्तर की जान पड़ती हैं। 'हिंदी हमारी भाषा है' मिझोराम में हिंदी के प्रचार-प्रसार को अंकित करने वाली एवं हिंदी को बढ़ावा देने वाली आदर्श कविता हैं। 'स्वच्छता और बापू' विषय को लेकर बापू के कार्य एवं व्यक्तित्व को पद्य रूप में अंकित करने का सफल प्रयास है। साथ ही नई प्रकाशित साहित्यिक रचनाएँ और पत्रिकाओं का परिचय कराने उपक्रम बहुत अच्छा लगा।  
      देश-विदेश से प्राप्त हिंदी रचनाओं ने पत्रिका में आंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचने-पहुँचाने का सफल कार्य हैं।अक्तूबर २०१७ में प्रकाशित सभी रचानाएँ सरस, सलिल, प्रेरणादायी, मानवी भाव-भावनाओं को अंकित करने वाली और समाज के प्रति हमारा उत्तरदायित्व का एहसास दिलानेवाली यह साहित्यिक पत्रिका का निर्माण हुआ है। 
इस पूरी कामयाबी का श्रेय साहित्य समीर दस्तक पत्रिका से जुड़े सभी सदस्य, देश-विदेश से जुड़े साहित्यकार एवं पाठकगण को जाता है। सभी का विशेष अभिनंदन। आपके द्वारा ऐसी ही साहित्यिक कृतियों की देन से साहित्यिक संसार फलता-फूलता रहे यही मंगलकामनाएँ। 

आपका पाठक मित्र 
मच्छिंद्र भिसे 
३ अक्टूबर २०१७ 

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