मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

लघुकथाएँ बोलती हैं

(3)
दुर्लभ योग
(लघुकथा)
            सदानंद और प्रकाश अच्छे मित्र के साथ-साथ अच्छे पड़ोसी भी हैं। सदानंद पुस्तकों की दूकान पर सेल्समन, तो प्रकाश किसी आयटी कंपनी में मैनेजर है। सुबह के वक्त चाय की प्याली की खनक से ही हमेशा की तरह प्रकाश जी सदानंद के घर आकर चाय की चुस्की के साथ पेपर पढ़ने लगे। उसी समय सदानंद की प्यारी लड़की सुमी पाठशाला का गणवेश पहने– ‘नमस्ते अंकल!’ कहकर पाठशाला जाने की तैयारी में जुट गई। प्रकाश की बेटी नीनी भी आकर सुमी के साथ जुड़ गई।
            सुमी को देखते हुए प्रकाश ने सदानंद कहा- “और थोड़े पैसे जुटाते तो मेरी बेटी के साथ बड़ी पाठशाला में आज पढ़ा करती तुम्हारी सुमी!”
            “हाँ, कहा तो सही है, पर .....पर ..... छोड़ दो। ” बात को काटते हुए नीनी और सुमी को सदानंद ने आवाज लगाई। दोनों बिटियाँ पास आकर बैठ गईं। प्रकाश के मन में अधकटी बात का ज्वार उठ रहा था, वो जानना चाहता था कि आखिर सदानंद के मन में क्या चल रहा है।
            प्रकाश ने उसकी बात जानने के लिए सदानंद से कहा- “क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारी बिटिया अच्छे स्कूल में पढ़े?”
            “चाहता तो मैं भी हूँ, लेकिन पैसा देकर नहीं। मैं बिटिया को लक्ष्मी मंदिर में नहीं भेजना चाहता, वो तो सरस्वती मंदिर में पढ़े ऐसी में मेरी इच्छा है। और तुम तो जानते हो कि सरस्वती और लक्ष्मी कभी एक नहीं हो सकती। जहाँ लक्ष्मी है वहाँ सरस्वती नहीं; मगर जहाँ सरस्वती है वहाँ लक्ष्मी ज़रूर आएगी।” कहकर सदानंद शांत हो गया।
            सदानंद की चुप्पी तोड़ते हुए नीनी ने कहा- “सही कहा अंकल! हमारी टीचर हमेशा बताती है कि ज्ञान याने सरस्वती पैसों से खरीदी नहीं जाती। अभी पता चला कि हमारी टीचर क्यों कहती थीं।” उसी समय सुमी तैयार होकर पाठशाला चली जाती है। प्रकाश भी सदानंद की ओर देखकर हँसते हुए अपनी बेटी नीनी को लेकर पाठशाला छोड़ने चला गया।
            दूसरे दिन सुबह प्रकाश के पीछे छिपकर नीनी सुमी के घर आई। उसे देखकर सदानंद दंग रह गया। नीनी बिल्कुल सुमी की तरह तैयार होकर आई थी। सदानंद ने पूछा- “यह क्या है प्रकाश?”
            “कल बच्ची ने जवाब दे दिया, ज़िद कर बैठी- मुझे सरस्वती मंदिर जाना है। उसे मैं ‘ना’ कहने में असमर्थ रहा। बस! लक्ष्मी को सरस्वती मंदिर ले जा रहा हूँ।” कहते-कहते प्रसन्नता से प्रकाश ने सदानंद को गले लगाया। आज दुर्लभ योग था- लक्ष्मी ने सरस्वती को गले लगाया था और उधर सुमी और नीनी एक-सी गणवेश देख ख़ुशी से उछल रही थीं।
-०-
21 अगस्त 2021, उत्तर रात्रि 9.45
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

(2)
आजादी का झंडा
(लघुकथा)
             पंद्रह साल का भोलू चौदह साल की मुफ्त शिक्षा के बाद अगली पढ़ाई हेतु सुबह-शाम छोटे-छोटे काम किया करता था। सुबह अखबार बाँटना तो कभी शाम के वक्त स्टेशन पर छोले-भटूरे बेचना। 
             आज स्वाधिनता दिवस की खुशी में सड़क के किनारे फूटपाथ पर सुबह झंडे बेच रहा था। बच्चे-बूढ़े आकर भोलू से झंडे लेकर जाते थे। 
             कुछ समय बाद सब झंडे बिक गए, सिवाए एक छोटे झंडे और झंडे रखने की टोकरी के। वह उस झंडे को टोकरी पर गाड़े, टोकरी को सिर पर उठाए जा ही रहा था कि यकायक एक आलिशान गाड़ी आकर उसके पास रूक गई। 
             उसमें से उतरकर एक सफेद टोपी और पोशाक पहने आदमी ने आकर कहा- "ऐ छोरे! झंडा कैसे दिया?"
             "साहब जी, यह झंडा बिकाऊ नहीं है।" -भोलू ने 'ना' के स्वर में कहा। 
             "मैं तुम्हें इसकी दूगनी कीमत दूँगा, जल्दी कर मुझे नगर परिषद के मैदान पर झंडा फहराने जाना है।" -साहब ने जेब में हाथ डालते हुए कहा।
             भोलू ने कहा- "माँ ने कहा कि सब झंडे बिकने पर आखिरी झंडा वापस ले आना।"
             "अच्छा! फिर मैं तिगुना दाम देता हूँ। माँ से कहना कि इस नगर के सफेद पोशाकवाले मेयर ने आखिरी झंडा खरीद लिया।"
             यह सुनकर भोलू ने टोकरी में गड़े झंडे को निकालकर अपनी फटी कमीज़ में छिपाया और निड़र होकर कहा- "अब तो मैं यह झंडा बिल्कुल नहीं दूँगा। माँ ने यह भी कहा कि कोई गरीब आए तो उसे झंडा मुफ्त में देना लेकिन कोई तुझे उसके अधिक दाम दे, तो उसे कतई मत‌ देना क्योंकि यह ऐसे लोग हैं जो आजादी का झंडा दुगनी कीमत में लेंगे और चौगुनी कीमत लेकर अपने ही झंडे के साथ देश को भी बेच देंगे।" 
             भोलू की बात सुनकर मेयर झल्लाते हुए चले गए।
             उसी समय नजदीक बाँकड़े पर बैठे रिटायर मेजर यह सब देख रहे थे। उन्होंने भोलू के पास आकर झंडा फिर से टोकरी में गाड़ते हुए कहा- "शाबाश मेरे शेर! सही मायने में तुम ही आजादी का जश्न मना रहे हो बाकि के तो बस दिन मना रहे हैं।"
             उस अनजान बूढ़े की बात भोलू के पल्ले नहीं पड़ी। भोलू शाबासी की खुशी में 'नन्हा मुन्ना राही हूँ' गुनगुनाते हुए जा रहा था। रिटायर मेजर भोलू में आजादी के बाद का सुभाष बाबू देख रहे थे।
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19 अगस्त 2021, पूर्व रात्रि 12:23
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)
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(1)
बालदीन
(लघुकथा)
          अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय प्रांगण में बालदिन धूमधाम से मनाया जा रहा था। बच्चों में बड़ा उत्साह था। प्रांगण में ‘बच्चे मन के सच्चे’ गाना बजने लगा। बच्चे नाचने-गाने लगे, एक-दूसरे को बधाई देने लगे। प्रार्थना परिषद में बच्चों द्वारा बाल दिन विषय पर भाषण हुए, अध्यापकों ने बालकविताएँ सुनाईं तथा प्रधानाचार्य जी ने इस अवसर पर बधाई देते हुए बालदिन का महात्म्य सुनाते हुए कहा- “यहाँ के हर बच्चे को पढ़ने का अधिकार है, आप यहाँ पढेंगे और देश का भविष्य बनेंगे।”
          यह बात सुनकर उस पाठशाला के गेट के बाहरी अहाते में अपने बापू के साथ रोटी के लिए भंगार जुटाने वाले आठ साल के बच्चे ने अपने बापू से प्रश्न किया- “बापू, इस पाठशाला के बच्चे देश का भविष्य बनेंगे, तो मैं क्या बनूँगा?”
          बापू ने सिर खुजलाया और कहा- “मेरे प्यारे बच्चे! तू चिंता मत कर, तू बहुत कुछ बनेगा।”
          “पर बहुत कुछ, मतलब उनसे ज्यादा या कम?”
          बापू ने जवाब दिया- “तू उनसे ज्यादा ही कुछ बनेगा। देख! वे मात्र भविष्य बनेंगे, जो कभी आता नहीं; और तू, इस देश का गुमनाम वर्तमान है, जो भविष्य में भूतकाल में तब्दील हो जाएगा; तू चल, अपना काम कर!”
          अपने लिए वर्तमान-भविष्य और भूतकाल की बात सुन बच्चे ने बहुत कुछ बनने के उत्साह में फिर भंगार जुटाना शुरू किया। शायद उसकी तकदीर बालदिन के अवसर पर उसे बालदीन बनाने पर तुली थी।
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6 अगस्त 2021, पूर्व रात्रि 1.37
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

संपर्क पता
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'  
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका
भिरडाचीवाडी, डाक- भुईंज,  
तहसील- वाई, जिला- सातारा महाराष्ट्र
पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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