मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

● वाचन प्रेरणा दिन से कलाम जयंती तक ●

   

वाचन प्रेरणा दिन से कलाम जयंती तक
(व्यंग्य आलेख)
अपने देश में तीज-त्यौहार, जयंती एवं पुण्यस्मरण दिन बड़े जोर-शोरों से मनाए जाते हैं. खासकर जब कोई विशेष दिन/दिवस मनाने की बात आती है तो अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों पर उसी दिन की चर्चा, संगोष्ठी, सभाएँ आदि का आयोजन करके वह एक दिन पूरी तरह से उस विशेष दिन को समर्पित किया जाता है. जैसे बालिका दिन, युवक दिन, पर्यावरण दिन, गांधी जयंती आदि. इन विशेष दिनों की विशेष भीष्म प्रतिज्ञाएँ ली जाती हैं लेकिन अल्पावधि में ही फुर्र हो जाती है. कभी पूछे तो ‘याद नहीं आ रहा’ ऐसे जवाब देकर कलियुग के भीष्म और समाज के व्यक्तिनिष्ठ पितामह अपनी ली हुई प्रतिज्ञा अपने पैरों तले रौंदते हैं और किसी नए विशेष दिन की प्रतिज्ञा की तैयारी में जुट हैं. परंतु इनमें से भी कुछ सच्चे अपनी प्रतिज्ञा के संवाहक हरिश्चंद्र भी मिलते हैं; परंतु अपनी प्रतिज्ञा को ऐसे-तैसे समयानुसार और यथासंभव निभाने की कोशिश भी करते हैं. उनका मैं अभिनंदन करता हूँ. पूरी निष्ठा के साथ अपनी प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा साबित करने वाले बिरले मोती भी कभी-कभी हाथ लग जाते हैं लेकिन अन्यों से सताए भी होते हैं यह वास्तव के पुण्यात्मा! आज आपके सामने अपने मन की व्यथा रख रहा हूँ, व्यंग्य तो है पर समाज मानसिकता का व्यंग भी है. 

समूचे भारत देश में १५ अक्तूबर के दिन भारतरत्न स्वर्गीय भूतपूर्व राष्ट्रपति एवं महान वैज्ञानिक ए.पी.जे.अब्दुल कलाम जी का जन्म दिवस ‘वाचन प्रेरणा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. कलाम जी का सहृदय स्मरण करते हुए उन्हें आदरांजलि अर्पित करता हूँ. सच में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का हक़दार मानता हूँ और आप? स्वयं प्रतिदिन कुछ-न-कुछ अच्छी सामग्री पढ़कर तथा औरों को अच्छी सामग्री एवं साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करता हूँ. मैं पाठकों से सवाल करता हूँ, जिसका जवाब देने की आवश्यकता नहीं, बस! उसपर चिंतन करें. क्या आप वाचन प्रेरणा दिन मनाने एवं कलाम जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के कितने प्रतिशत हकदार हैं?
गत कुछ वर्षों में वाचन संस्कृति एवं परंपरा धीरे–धीरे लुप्त होती जा रही है, उसी का परिणाम हमें ‘वाचन प्रेरणा दिवस’ मनाना पड़ रहा है. वाचिक परंपरा के ह्रास का प्रमुख कारण हैं प्रौद्योगिकी और मल्टीमीडिया का विकास. नई तकनीक समयानुसार जरुरी है परंतु आदर्श संस्कार, संस्कृति एवं परंपराओं को नुकसान पहुँचाने वाली यह तकनीक भविष्य में सबको यंत्रमानव न बना दे, इसका भय सताया जा रहा है. उसकी वर्तमान उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए उसे ज्ञान, संस्कार एवं मानव चरित्र विकास के साथ जोड़ना मूर्खता ही कही जाएगी. ऐसे में आभासी जगत के वाचन से प्राप्त ज्ञान, आभासी जगत की तरह पढ़ते ही गायब हो जाता है, वहाँ शाश्वत अभिधा कैसे प्राप्त हो? जहाँ परिणाम अल्प और समय का व्यय अधिक हो वहाँ बौद्धिक एवं मानसिक विकास की कल्पना मात्र कल्पना ही कही जाएगी. ‘किताबें’ पठन से प्राप्त ज्ञान की तुलना कभी आभासी जगत से प्राप्त ज्ञान से हो ही नहीं सकती. किताबें पढ़ने और पढ़ाने से अपनी संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण एवं संवर्धन होना निश्चित है. माना कि मोबाईल और इंटरनेट पर किताबें पढ़ी जाती हैं लेकिन उन्हें याद रखने के लिए कागज़ पर कुछ बातें उतारनी ही पढ़ती हैं. ऐसे में भौतिक किताबें आवश्यकता के अनुसार कभी भी और कहीं भी उसे पढ़कर आवश्यक बातों को देखा और पढ़ा जा सकता है.
दुनिया में संस्कारक्षम, चरित्र निर्माण एवं भौतिक सुविधाओं के विकास की किताबें कहीं मिलती हैं, तो वह अपने देश में! आदि ग्रंथों के लेखन, पठन-पाठन और आधुनिक तकनिकी तक लाने का सबसे अधिक श्रेय जाता है अपनी वाचन संस्कृति को. किताबों के लेखन एवं पठन-पाठन की आद्य धरा पर पठन की वर्तमान अवस्था क्षीण होती जा रही है, यह अपनी जननी-जन्मभूमि के सपूत कहने वाले भारतीयों के लिए शर्म की बात है.
वर्तमान समय में बाल्यावस्था काल में बच्चों को वाचन विधि से अवगत कराया जाता है. समय के अनुसार बच्चे बड़े होते ही परीक्षाई पठन शुरू होता है. ऐसे में सिर्फ ज्ञानवृद्धि हेतु पठन करना एकांगी बनता जा रहा है. जहाँ शिक्षा में सर्वांगीण विकास की बात होती है वहाँ परीक्षांगीण विकास की ओर अधिक बल दिया जाता है. संस्कारक्षम शिक्षा में वाचन का बहुत महत्त्व है इसी लिए तो गाँवों, शहरों एवं पाठशालाओं में पुस्तकालय होते हैं परंतु क्या इन पुस्तकालयों में बच्चों की उम्र, रूचि, ज्ञान की स्तरीयता के साथ विविधताओं से युक्त पुस्तकें उपलब्ध हैं? यह देखना भी आवश्यक है. कई स्थानों पर पुस्तकालय हैं परंतु किताबें पढ़ने को नहीं मिलती या दी ही नहीं जातीं और जहाँ पाठक हैं वहाँ किताबें उपलब्ध नहीं होतीं. ऐसे में संस्कृति और परंपरा के जतन के लिए पूरक वातावरण कैसे तैयार होगा? ऐसे में वाचन प्रेरणा दिवस मनाना एक ही पर्याय है. कम से कम एक दिन ही सही कुछ अच्छा देखने और अल्प पढ़ने का मन भी होता है और पढ़ते भी है. इससे बड़ा व्यंग्य तो यह है कि कुछ पाठशालाओं में ऐसे विशेष दिन मात्र शासन परिपत्रकों की फाइलें तैयार करने हेतु मानाए जाते हैं.
हम जानते है कि बच्चे अभिभावक और गुरुजनों का अनुकरण करते हैं, तो क्या गुरुजन और अभिभावक अपने बच्चों का वाचन के प्रति रुझान बढ़ाने हेतु स्वयं किताबें और पत्र-पत्रिकाओं का वाचन करते हैं? क्या आपके घर में अच्छी किताबें उपलब्ध है? अपने घर में कितनी पत्र-पत्रिकाएँ मातृभाषा एवं भारतीय भाषाओं की मँगवाते हैं? इनके उत्तर खोजने पर पता चलेगा कि प्रधान संस्कार परिवार केंद्र में पठन का क्या स्तर कितना गिरा हुआ है. आज एक वर्ग ऐसा भी है जो किताबें खरीदना व्यर्थ का व्यय मानते हैं. ऐसे लोगों को तो शिक्षित होकर भी ‘ढपोरशंक’ की उपाधि देना ही उचित है, जो खुद किताबों के बलबूते पर उछल-कूद करते हैं. 
आज हमें वाचन प्रेरणा दिवस मनाने की नौबत आयी है, मतलब अपनी आदर्श संस्कृति एवं परंपराएँ खतरें में हैं. इसे बचाने के लिए हमें ही आगे आना होगा. स्वयं पठन करके औरों के सामने आदर्श निर्माण कर उन्हें भी प्रेरित करना होगा. जब आप भौतिक सुविधाओं की वस्तुएँ खरीदते हो तो कभी-कभी अच्छी किताबें ख़रीदना भी न भूलें. भौतिक वस्तुएँ क्षणिक आनंद प्रदान करती हैं, तो किताबें शाश्वत आनंद का निर्झर होती हैं. जिस घर में किताबों का निवास और उनके पाठक हो उस घर में सरस्वती एवं लक्ष्मी का सदा निवास होगा. जब प्रत्येक दिन हर घर में ऐसा होगा उस दिन हम सब अदब से आदरणीय कलाम जी का जन्मदिवस कलाम जयंती के रूप में मनाएँगे न कि वाचन प्रेरणा दिवस! तो फिर चलो, अपने घर और पाठशालाओं को किताबों का आश्रय बनाते हैं. किताबों को अपना मित बनाते हैं.
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15 अक्तूबर 2020
मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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