मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

भारी कौन? (व्यंग्य निबंध) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'


भारी कौन?
(व्यंग्य निबंध)
आज आप मुझे आस्तिक कहे या नास्तिक! मेरी अल्प श्रद्धा तो बस आप पाठक और आँखों के सामने होने वाले इन्सान के व्यवहार पर निर्भर है। संभवतः ऊपर से दिखने वाले अंदर से वैसे ही हो, इसकी उम्मीद मैं क्या आप भी नहीं कर सकते। एक ख़ास बात! अंदर-बाहर समान पाने के लिए मुझे हर एक के साथ रहना होगा; लेकिन हमें क्षमा करें एक के साथ रहकर पहले से ही बहुत परेशान है यथा हर के साथ रहना इस बेचारे जीव को असंभव है, इसलिए भगवान पर नहीं, आपपर मेरी अल्प श्रद्धा और इंसानियत का प्रचंड विश्वास है। शायद इसी विश्वास के कारण आज यह दिल के पट रहा हूँ।
साहब देखिए न, उस अजीबों-गरीब शक्ति याने भगवान ने इन्सान बनाया; लेकिन स्त्री और पुरुष बनाकर हममें झगड़ा करवाया और हम अंधविश्वासी यह कहते आ रहे हैं कि भगवान की लीला न्यारी है। वैसे तो उनकी लीला से अधिक उनकी ‘नारी’ वाह री है। बेचारे पुरुष चाहते हैं कि अपनी नारी पर भारी हो जाए; लेकिन जहाँ पार्वती शिव जी पर, लक्ष्मी विष्णु जी पर और सरस्वती ब्रह्मा जी पर भारी पाठी थीं तो तीनों को देवलोक छोड़कर धरती पर आना पड़ा था। वहाँ हम जैसे तिनके-से पुरुष नारी पर भारी होने के सपने देखना छोड़ दें। अपनी नारी की पूजा करें और तुम ही मेरी सपना, चंद्रमुखी, पारो सोहनी और डार्लिंग कहे, तो हो सकता है कि अपनी नारी भारी नहीं, पर बराबरी ज़रूर करेगी। वरना घर की तरकारी की तरह और सरकारी मुलाजिम की तरह अपनी खासगी शासक के गुलाम बनते रहना पड़ेगा। यह तो घर-घर की नेक इन्सान की अनेकी की कहानी है।
अब आप ही बताईए, यह देख ऊपरवाला कितना खुश होता होगा कि कैसे दोनों का सुख-चैन खा गया। जैसे दो बिल्लियों की मिठाई खाकर डकार मारने वाले उस कहानी के बंदर की तरह। जो अपने ही दोस्तों को नचाता है। तो हम कैसे कहे कि भगवान जो करता है वह सही होता है। यह सब मिथक भरम है। ऐसी कई बातें हैं जिन्हें कागज पर उतारने हेतु उस भगवन के हाथों दुबारा जनम लेना होगा। और ऐसा असंभव काम भगवान भी संभव नहीं कर सकते क्योंकि इसमें उनकी हार है। इसी लिए किसी भरम और संभावनाओं पर नहीं तो अपने श्रम पर विश्वास करें, शायद हम इन्सान बने रहें। जिस दिन यह भरम टूटेगा, उस दिन यह गाना ज़रूर गुनगुनाओगे – 
'कहता है जोकर सारा ज़माना
आधी हकीकत आधा फ़साना।'
जहाँ कुछ ऐसे आधे फ़साने-अफ़साने हैं वहीं दूसरी ओर कुछ इन्सानी स्त्री और पुरुष निस्वार्थ भाव से अपने एक-दूसरे की, परिवार, देश और समाज की सेवा कर रहे हैं। यह शोभायमानता देखकर शायद भगवान भी जलते होंगे कि ‘काश! मेरे परिवार में ऐसा होता।’
लेकिन एक राज की बात बताऊँ – स्त्री का अधिकार सिर्फ चारदीवारी के अंदर ही होता है। आज कितने भी नारी सशक्तिकरण के आंदोलन चलाए, कानून बनाए और सम्मान की बातें करें तदोपरांत भी नारी कभी समाज और देश के लिए नारी सशक्त हो ही नहीं सकती। यहाँ हर कोई यह चाहता है कि ‘पूरे विश्व में नारी सशक्त बनें पर दूसरे के घर की; अपने घर की नहीं’। इससे बात स्पष्ट है कि पुरुषों का वर्चस्व कितना है। इसी लिए तो अपनी नारी आपपर भारी हैं।
दूसरी ख़ास बात – ‘हर पुरुष की सफ़लता के पीछे स्त्री का हाथ होता है’, इस बात की सत्यता भी वर्तमान स्थिति में परखनी होगी। खासकर जो पति अपनी सफ़लता का श्रेय अपनी पत्नी को देते हैं। कितना सफ़ेद व्यंग्य अपने-आपपर कसते हैं, नेक पति कहने वाले अनेक बंदे! यहाँ प्रश्न उठता है कि जो पति दिन धूप में, भादो की बरसात में, पूस की शीत लहर में मेहनत करता है, समय-असमय लगन से लक्ष्य प्राप्ति हेतु ईमानदारी से खटता रहता है परिणामस्वरूप सफ़लता मिलती है। उसका श्रेय वह अपनी पत्नी को देते हुए कहता है कि वह सुबह जल्दी उठकर वह खाना बनाती है, देर रात तक इंतज़ार करती है, अनुपस्थिति में बच्चों का खयाल रखती है। अब आप ही बताए- चाहे मजदूर हो या मालिक हर घर की स्त्रियाएँ यह काम तो करती ही है, इसमें श्रेय नहीं ज़िम्मेदारी होती यह बेचारे पुरुष जानकर भी मुस्कुराते हुए अपनी स्त्री को खुश रखने के लिए अपनी गधा मेहनत भूलकर प्राप्त सफ़लता का श्रेय अपनी स्त्री को दे देता है। अपने स्वाभिमान बलि चढ़ाकर औरों को खुश रखने हेतु कितना त्याग करता है। अब बताओ भारी कौन है? यह तो हुई पतियों के बड़प्पन की बात!
एक और व्यंग्य की बात - जिस अमीर घर में नौकरानियाँ यही सब काम करती है, वहाँ सफ़लता पाने वाला पुरुष भी अपनी सफ़लता का श्रेय नौकरानी को कभी नहीं देता; वजह तो आप जानते ही होंगे, है न! कुल मिलाकर समानता की बात करने वाले पुरुष प्रधान समाज में स्त्री प्रधानता को प्रकटता से न स्वीकारने वाला समाज आधुनिक काल में स्त्री प्रधानत्व में जी तो रहा है, मगर दिखा नहीं सकता क्योंकि न दिखाने में जो आनंद है वह दिखाने में कहाँ! आशा करता हूँ कि आपके परिवार में प्रधानत्व न होकर अपनत्व पनपता होगा। खुशहाल पारिवारिक समाज हेतु अनंत मंगल कामनाएँ!
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25 मार्च 2021
मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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