अपने निरामय जीवन में आनंद फैलाने की जब-जब बात उठती है, प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की पंक्तियाँ याद आती है कि –
जड़ जग इतना सुंदर जब
चेतन जग में क्या कारण
रहता अहरह जो
विषण्ण जीवन मन का संघर्षण?
हमारे प्राकृतिक जगत में सौंदर्य आनंद की इतना वैभव भरा है कि उसे अपनी आँखों से ही चुराया जा सकता है लेकिन बताया या दिखाया नहीं जा सकता; बस उसे महसूस किया जा सकता है। भारतवर्ष की प्राकृतिक आबोहवा को संसार के ब्रह्मा ने अपार स्नेह और असीम अलौकिकता से विविधता के साथ गौरवान्वित किया है। इन्हीं में एक गौरव पुष्प है हमारी ऋतुएँ! छह ऋतुओं का अपना-अपना परिवार मानो अपनी अनूठी छवि लिए जगत को कहते हैं-
आओ न कभी आँगन में हमारे
अपने आँगन-द्वार लाँघकर
चित पावन हो जाएगा यहाँ
क्या रखा है चारदीवारी के अंदर!
प्रकृति की सर्वोच्च आनंद प्रदायिनी ऋतु ऋतुराज बसंत के बसंती दिनों में प्रकृति का अद्भुत दर्शन तो देखने से ऐसा लगता है कि थकान से आए बुढ़ापे में जवानी फिर से उमड़ पड़ी है। बसंत ऋतु प्रकृति के पुनरुज्जीवन का प्रतिक है। बसंत ऋतु के आने पर उसकी उम्र बढ़ती जाती है; इसी हेतु बसंत ऋतु सभी ऋतुओं में अपने अनूठे प्राकृतिक श्रृंगार के कारण विशेष है। वह प्राकृतिक अंतस्थ समाधान देने वाला ऋतुराज बसंत दानी-सा प्रतीत होता है।
हाड़ काँपती ठंड और चिलपिलाती गर्मी के मध्य बसंत ऋतु का आगमन ठंडर्मी की अनुभूति कराने वाला होता है। मध्य फागुन से शुरू होने वाला बसंतोत्सव वैशाख माह तक चलता है। यह ऋतु विशेषकर प्राकृतिक, सामाजिक, अध्यात्मिक, सृजनात्मक एवं शैक्षिक महात्म्य है।
ठंड के कारण शीत लहर की रजाई ओढ़े सिकुड़ी प्रकृति धीरे-धीरे अंगड़ाई लिए, नए रूप में प्रकट होती है; मानो लार्वा से तितली तक-सी सुंदर सुखद यात्रा हो। शीत में पतझड़ से नीरस बनें पेड़ बसंत के आगमन से नई-नई फुनगियों को लाकर मानों कोंपल रूपी दीये जलाकर बसंत के आगमन का अभिनंदन करते हैं। धीरे-धीरे पेड़ हरे बन जाते हैं और बसंत ऋतु वनराई में मरकत से प्राकृतिक जीवंतता को दर्शाता है।
आम्र वृक्ष हराभरा हो जाता है। उसपर पीली बासंती बौर आते ही आम्रबाग महकने लगता है। उस आम्रबौर की पहली महक मन में वो सुकून पैदा करती हैं जो दीर्घ तपती मिट्टी पर गिरने वाली बरसाती पहली बूँदे सौंधी सुगंध की तरह महसूस होती है। पूरा जीव-जगत आम्रबौर की महक को अतंस्थ संजोए रखता है पुरे साल भर के लिए। फिर उसपर लगी कच्ची अंबिया को चखना अपने आप में अद्भुत आनंद यात्रा होती है। इन्हीं दिनों आम्र संसार से कोयल बसंत गीत गाता सुनाई पड़ता है, तो कहीं मयुरराज आम के बागान में बसंती हवा का आनंद लेते घुमते दिखाई देते हैं।
बसंत में कई पेड़ पौधों पर फूलों की बसंत बहार ऐसे खिल उठती है मानों बीते बसंत के बाद इसी इंतज़ार में थी कि कब इस ऋतुराज का आगमन होता है। इंद्रधनू रंग के बसंती फूल अपने रंगीन और खिली मुस्कान से हर दृष्टा की आँखों में समाकर अपना दानत्व धर्म निभाता दिखते हैं। सरसों, अपना पीताभोत्सव मनाते हुए धरती को पीतांबर पहनाता है। किसान पिली खिली सरसों को देखकर धरती माँ के प्रति कृत-कृत होकर धन्यवाद ज्ञापित करता है। कमलदल बसंत में प्रचुर मात्रा में खिलकर अपनी पत्तियों से जलराशी को ढककर जलपरत पर अधिकार दर्शाते हैं। जो विभिन्न रंगों में सबको आकर्षित करते हैं।
बसंत ऋतु में खिले फूलों पर मंडराते हुए भौरें और रंगबिरंगी तितलियाँ अपने अत्यल्प जीवन के सर्वोत्तम पल जीने की सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हुई नजर आतीं हैं। बरसात और ठंड के कारण तितलियाँ और मधुकर दल का जीवन बड़ी पीड़ा में व्यथित होता है। बसंत में पुनः ये फूलों पर बैठकर ऐसे पुष्पाधर को चुमते हैं जैसे अखंड तृप्ति का आनंद लेते हो। मधुकर दल आनेवाले दिनों में बसंत के बाद अपनी उपजीविका हेतु मधु अपने छाते में जमा करते हैं; वे इन्सान को यही तो बताना चाहते हैं कि अच्छे समय में भविष्य के लिए संचय की आवश्यकता होती है।
बसंत महोत्सव में आसमान पूरी तरह से साफ रहता है, शायद वह इन्सान को बताना चाहता है कि देखो मेरी तरह तुम्हारे जीवन में भी अंधकार के बादल छट जाएँगे और खुशियों का अंबर लग जाएगा। रात में शीतल चाँद और चाँदनी के प्रकाश से बसंती रातें सफेद चादर ओढ़े पूरी धरा के जड़ और जीव जगत की दिन की थकान मिटाती है। शीत ऋतु के कारण अपने घोंसलों में बैठे खग जगत बसंत में पेड़-पौधों में गुंजनकर विचरण एवं हर्ष मनाते दिखते हैं। बसंत में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पंछी जगत देखते ही बनता है। पंछियों के झुंड के झुंड आसमान में घुमते और चहचहाते हुए नजर आते हैं।
बसंत ऋतु सिर्फ प्राकृतिक महोत्सव ही मानव जीवन में हर्षोल्लास और त्योहारों की सौगात भी लेकर आता है। बसंत ऋतु में ही बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि, होली तथा बैसाखी जैसे प्रमुख पारंपरिक एवं अध्यात्मिक त्यौहार को परंपरागत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
प्रकृति हमारी गुरु है। बसंत के नवपल्ल्व से हमें जीवन में अपने उत्कर्ष की नवचेतना देता है। खिले फूल जीवन में हमेशा मुस्कुराते रहने की प्रेरणा देते हैं। महकती हुई फूलों की खुशबू हमें जीवन में खिलकर दूसरों के जीवन महकाने की ऊर्जा देती है। वनप्रिया गाकर हमें अपने जीवन में ख़ुशी से गुनगुनाते हुए जीने की उम्मीद देकर जाती है। ऐसे कई संदेश बसंत ऋतु चेतन जगत को देकर जाता है। बसंत ऋतु तो कवियों और लेखकों के अंतस्त बैठे सृजन संवेदनाओं को जागृत कर अपने श्रृंगार का वर्णन कराता है। कवियों के लिए वसंत ऋतु सृजन-लेखन का सर्वोच्च स्त्रोत है। वसंत ऋतु चेतन जगत को जड़ जगत से अनुबंधित रखने का प्रयास अनवरत करते आ रहा है। जो निश्चित ही मानव जगत के लिए प्रेरणास्त्रोत, मंगलमय जीवन द्योतक और हर्षित कार्यप्रेरणा देकर जाता है। बसंत के सौंदर्य का वर्णन करने के लिए मेरी विकसित चेतना असमृद्ध है। बसंत ऋतु के बारे में बस इतना ही कह सकता हूँ-
बस जाना तू मेरे घट में
पट तेरा खोल न पा सका
तू जितना दिखा उतना लिख सका
करा दे हे मित्र! संपूर्ण दर्शन अपने
मेरी कलम को शायद तूने ही रोक रखा!
यह प्यारा बसंत सभी के जीवन में आनंद भरता है और हर्ष भरता रहे। सभी को इस आने वाले पवन बसंत ऋतु पर्व की हार्दिक बधाइयाँ!
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09 जनवरी 2022