मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

■ खाली गागर में ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

 

■ खाली गागर में 

(कविता)

माता - पिता ने संसार दिया
प्रीत जगत की निभाई है
खाली गागर में ज्ञानजल भर
ज्योति विहान की जलाई है।

आपके बिन संसार अधूरा
सब साथ में पर न होगा पूरा
उंगली थामे अक्षर गिनाए
गिर जाए तो दिल बहलाए
बचपन के नित खेल-मेल में 
गुरू आपने उड़ान भराई है।
खाली गागर में......

अज्ञानी से हम सज्ञानी बने
आपकी राहों पर चल जाते
तम से कभी राह जो भटके
आपके उजियाले में आते
हौसला और उत्साह बढ़ता
आगे राह गुरू ने दिखाई है
खाली गागर में.....

गुरू आपके कितने उपकार
सबके सपने होंगे साकार
खाद बन कभी पानी बन
दिया जीवन को आधार
फूल खिलें अब फल से लदे
गुरू आपने मिठास भराई है
खाली गागर में....
-०-
05 सितंबर 2021
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

संपर्क पता
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'  
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका
भिरडाचीवाडी, डाक- भुईंज,  
तहसील- वाई, जिला- सातारा महाराष्ट्र
पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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■ बदनाम किए जा रहे हो ■ (हिंदी गजल) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

 ■ बदनाम किए जा रहे हो 

(हिंदी गजल)

आप जो हमें बदनाम किए जा रहे हो
बिना इश्तहार मशहूर किए जा रहे हो।

खुश हैं हम आपकी इस जिंदादिली पर
अपना प्यार सरे-आम किए जा रहे हो।

आपकी इस अदा के कायल थे औ' हैं
नज़्र से हमपर अहसान किए जा रहे हो।

इस बदनामी का हमें ज़रा भी रंज नहीं
भूली दास्ताँ पर दस्तक किए जा रहे हो।

बेवफ़ाई में वफ़ादारी की हद हो गई
'मंजीते' दिल बाग-बाग किए जा रहे हो।
-०-
28 नवंबर 2021
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

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■ नन्हीं कली की पुकार ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे



■ नन्हीं कली की पुकार 

(त्रिवेणी काव्य)

कलियों ने खिल-खिलाना छोड़ दिया है
सबब यह थी कि
माली ने खुद, उन्हें चुनना छोड़ दिया है।

खिलने से पहले ही सब कत्ल होने लगी
खबर यह है कि
भौंरों की लूट से, महकना छोड़ दिया है।

चाहा कभी खिलना तो सौ नजरें गढ़ गईं
शोर यह था कि
आबरू ने नजरों में, बसना छोड़ दिया है।

पौध पे खिली फिर बिखर गई और कहीं
जुर्म यह था कि
खिलने से पहले, दम तोड़ना छोड़ दिया है।

हम बिन आँगन सूना-सा, सूनी तेरी पूजा
यही माँगू दुहाई कि
खिलने दो, हमने स्वयं लूटाने छोड़ दिया है।
-०-
25 नवंबर 2021
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
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■ कौन है वह? ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे


■ कौन है वह? 

(कविता)

अपनी राहें चल रे बंदे,
कौन तूझे है रोक पाएगा,
मीटने की ही ठानी तूने,
कौन तूझे है मिटाएगा।

न अपने पग को विराम हो,
बस चलने का पैगाम हो,
चूभें काँटे वे फूल भी होंगे,
कौन पथ तेरा रोक पाएगा।

अपनी मंजील नेकी हो
चाहे जहान विरोधी हो
था जो अँधेरा होगा उजाला
कौन रवी को रोक पाएगा।

आसमान पर परवान हो
आपनी नजरें जमीं में हो
निस्वार्थ से जो कर्म करोगे
कौन स्वार्थ तुझे हरा पाएगा।

जिंदगी कर-गुजरने का नाम हो
जीते जी कभी बदनाम न हो
नाम लिखना आसमानों पर
कौन तेरी हस्ती मिटाएगा।
-०-
25 नवंबर 2021
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
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■ औरों के लिए ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'



■ औरों के लिए 

(कविता)

भूल जाता हूँ मैं
अपने वजूद को
और जी लेता हूँ
हमेशा औरों के लिए।

ऐसा रहूँ, वैसा जिऊँ
ये कहूँ वो सुनूँ
सुनती रही जिंदगी
ख़ामोश है औरों के लिए।

दिल शोर करता बारंबार
गर्दीश में खो जाते स्वर
चिल्ला उठता है पुन:
धड़के क्यों औरों के लिए।

तोड़ना चाहूँ यह बंध
और बहता ही रहूँ
बाँधें रिश्तों की डोर
फिर औरों के लिए!

समझ गया मैं
मेरा वजूद ही मेरा नहीं
निमित मात्र मैं हूँ
उपजना बस! औरों के लिए।
-०-
25 नवंबर 2021
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
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■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती ■

  ■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती  ■ (पत्रलेखन) मेरे देशवासियों, सभी का अभिनंदन! सभी को अभिवादन!       आप सभी को मैं-  तू, तुम या आप कहूँ?...

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