मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

●समय चूक की हूक●

●समय चूक की हूक●
(आलेख)
‘समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक। चतुरण चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।’ रहीम जी समय के लाभ-हानि के बारे में बताते हुए कहते हैं कि समय के लाभ जैसा लाभ नहीं और व्यर्थ गवाए समय जैसी कोई हानि नहीं, जो होशियार लोग होते हैं वे समय का सही फेर देखकर उसका लाभ उठाते हैं, समय की बर्बादी उन्हें अखरती है। ‘समय जैसा कोई गुरु नहीं’, ‘बीता समय वापस नहीं आता’, ‘कल करें सो आज कर, आज करें सो अब’ आदि समय के महात्म्य पर कहावतें, सुविचार, कहानियाँ, निबंध और भाषण सभी सुनते हैं। ऐसी बातें सुन-पढ़कर बहुत आनंद उठाते हैं। समय के साथ चलने का प्रण किए जाते हैं, कुछ पल के लिए तो समय के महत्त्व के स्टार प्रचारक-प्रसारक बन जाते हैं। इसका प्रभाव अधिक समय तक कहाँ रहता है, चुनावी हवा की तरह! जैसे सुबह के भजन का आनंद मात्र दिन चढ़ने तक ही सिमित रहता है। बाद में जैसे था वैसे! इसी लिए शाम होते ही घर में पुनः भजन गाए अथवा सुनाए जाते हैं ताकि उसका प्रभाव बराबर में होता रहे। इसी छोटे उद्देश्य को लेकर समय के बारे में सार्वभौमिक सोच के लाभ एवं हानियाँ संक्षेप में लेकर आपके सामने प्रस्तुत हूँ।  
वर्तमान में मनुष्य के पास समय कहाँ? वह यही हमेशा रोना रोता रहता है। समय ही नहीं मिलता, बहुत व्यस्त हूँ। हम सभी और वह भी यह जानता है कि समय और जीवन बराबर चलते हैं। उन्हें न ही अग्रिम जी सकते हैं और न ही वापस ला सकते हैं। बावजूद इसके मनुष्य समय का लाभ न उठाने की चूक करते हैं और अपने पैरों खुद कुल्हाड़ी मारते हैं। मित्रता या स्नेहवश सलाह दे तो यह पुण्यात्मा बताएँगे कि हम सबकुछ जानते हैं मानो कि वह बातें सिवाए उनके दुनियाभर के लिए हैं। लेकिन जब यही महाशय समय की चपेट में आ जाए तो, माथा पीटने के अलावा दूसरा चारा नहीं होता हैं। खैर...
साथियों हरिवंशराय बच्चन जी की आत्मकथा में उन्होंने गाँधी जी का एक प्रसंग लिखा है। जिसमें गांधी जी को नहाने के समय पर गरम पानी न मिलने के कारण बगैर हैंडिल वाली गरम पानी की बाल्टी अपने दोनों हाथों से उठाकर हमाम की ओर चले गए और जाते वक्त कहा – ‘जो काम जिस वक्त करना है करना, न करना वक्त के साथ दगाबाजी हैं।’ समय का महत्त्व प्रत्यक्ष कार्य के माध्यम से दर्शाते वक्त गरम पानी के उछालने से उनके दोनों हाथ जलें थे। आज हमारी सोच बिलकुल इसके विपरीत बनती जा रही है, जिसके कारण बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। इस लघु प्रसंग से क्या हम कुछ नहीं सीख सकते! क्या आज सोच इतनी टुच्ची बनी है कि समय पर काम करने वाले को मूर्ख माना जाता है? बहुत-से दफ्तर और संस्थाओं में समय पर काम करने वाले को रोका जाता है अथवा उसे अपना निजी दुश्मन माना जाता है। वह समय पर काम करेगा तो हमें भी करना पढ़ेगा। उनका मानना है कि समय पर काम करना मतलब अधिक काम का बोझ उठाने की मुसीबत मोड़ लेने जैसा है। तो दूसरी तरफ समय पर काम निपटाने का आनंद उठाने वाले लोग सकारात्मक ऊर्जा से भरे होते हैं। वे समय का बहुत लाभ उठाते हैं। वे अपनी बचत के समय का अच्छा सदुपयोग करते हैं। जैसे- व्यायाम, वाचन, लेखन, विभिन्न कलाओं के संवर्धन आदि में लगा देते हैं। परिणाम स्वरूप ऐसे लोगों का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य उत्तम रहता हैं। नए काम के लिए उत्साहित एवं उर्जावान महसूस होते है।
वही अभी का बाद में, बाद का कल..परसों कहने वाले हमेशा चिंताग्रस्त, शारीरिक एवं मानसिक थकान से भरें, हमेशा कुछ-न-कुछ बीमारी का बहाना बनाते नजर आएँगे। वैसे तो इन लोगों को समय से जी चुराने की आदत होती है। बाद में समय विपरीत प्रभाव दिखाते हुए उनपर हावी होने लगता है तो कहेंगे, बाप रे! कितना काम है और कैसे करेंगे; फिर यह लोग दूसरों से उनका समय मुफ्त में उधार माँगेंगे। यदि कोई मदद करके इनके लिए समय दे भी दे; यह कभी वापस नहीं करेंगे और दे भी नहीं सकते क्योंकि ‘हमारे पास समय कहाँ?’ यह पत्थर की लकीर का जवाब पहले से ही मौजूद होता है।
हमारी हँसी तो तब छूटती है जब कुछ लोग कहते हैं - मेरा समय (टाईम) ख़राब चल रहा है। ऐसे में कई बहाने बनाकर अथवा हानि का सारा दोष किसी और अथवा समय पर थोंप देते हैं। समय ख़राब करके समय को ख़राब कहने वाले कैसे समय के साथ चलेंगे? वे तो समयपीड़ा के कीड़े से ग्रस्त रहेंगे और हमेशा पीछे ही रहेंगे। इस पीड़ा की वेदना असहनीय होती है। समय की अच्छाई और खराबी हमारी कार्यशैली पर निर्भर है। समय अपना है, उसके संवाहक हम खुद है, तो समय का सदुपयोग अथवा दुरूपयोग के जिम्मेदार दूसरे कैसे हो सकते हैं? हमें अपने वक्त को सही काम, स्वहित के साथ समजहितार्थ व्यय करना ही सही समय का सदुपयोग है।
समय तो बंद मुट्ठी में लिए पानी और समुंदर की रेत की तरह होता है, जो कब हमारे हाथ से फिसल जाए पता ही नहीं चलता। जिस व्यक्ति ने समय की फिसलन होते हुए भी उसे अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया हो, वह मनुष्य जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति करने में सक्षम माना जाएगा। हमें तो अपने आपको समय के साथ इतना तैयार रहना चाहिए। हर पल हमारे कदम समय से आगे ही होने चाहिए। कर्मरत व्यक्ति को अपने समय की बर्बादी बराबर खलती है। यह कसक और अनुभूति ही आपको समय के साथ चलने और दुनिया के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है जो हमें और आगे ले जाती है। तो मित्रो!  देरी किस बात की। अभी का समय आपका है उसे अपनी मुट्ठी में थाम लो, हर सफलता तुम्हारा हाथ थामेगी।
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15 अक्तूबर 2020
मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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