मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

अपने-अपने सपने - डॉ. घनश्याम अग्रवाल

अपने-अपने सपने 
रचनाकार: डॉ. घनश्याम अग्रवाल 
समीक्षात्मक अभिमत : मच्छिंद्र भिसे 
                हिंदी साहित्य में हास्य व्यंग्य विधा लेखन के प्रसिदध कवी, लेखक तथा हास्य व्यंग्य मंच के
प्रभावी वक्ता डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी का परिचय तो पहले से ही पुरे भारतवर्ष को हैं। आपकी विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन लगभग सभी प्रचलित पत्र-पत्रिकाओं सहित किताब के रूप में हुआ हैं। साथ ही अपने हास्यव्यंग्य के मंचों को भी गौरवान्वित किया हैं। आपकी साहित्यिक सेवा का प्रमाण हैं - आपको मिला सन १९९६ का 'काका हाथरसी हास्य पुरस्कार'। आपसे परिचित होने का सौभाग्य हाल ही में प्राप्त हुआ साथ ही घनश्याम अग्रवाल जी का लघुकथा संग्रह 'अपने-अपने सपने' पढ़ने को मिला। इसे पढ़कर और पाकर इसपर अपने विचार लिखने से मन को को लालायित होने से रोक नहीं पाया। भारतवर्ष का एक नागरिक, एक अध्यापक और सुज्ञ सामाजिक घटक होने के कारन उस दृष्टि से 'अपने-अपने सपने' कृति को परखा और जाँचा तो हास्य व्यंग्य विधा का विशेष महत्त्व रखनेवाली बात को करीबी से जाना। 

आपको इस कृति के निर्माण हेतु ढेर सारी बधाइयाँ !!!!!!!!!!!

         दिशा प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित 'अपने-अपने सपने' लघुकथा संग्रह के रचनाकार एवं संपादक महोदय ने कितबीय रचना करते वक्त बहुत ही सोचकर लघुकथाओं का वर्गीकरण किया हैं। मुखपृष्ठ आकर्षक एवं सपनों को देखने वाली निरीह आँखे लघुकथा संग्रह के शीर्षक को सार्थ करती है तथा मालपृष्ठ पर रचनाकार द्वारा रचित एक पद आज के समाज का प्रतिनिधित्व करता हैं। किताब के अंतरंग की रचना पाठक की सोच को एक निश्चित दायरे में बाँधने का काम बखूबी किया है, जिससे प्रमुख शीर्षक को सचेत रखते हुए, एक के बाद एक लघुकथा पढ़ते वक्त हर कथा से मनोभावों को जोड़े रखने का सफल प्रयास किया हैं। कुल १६६ पृष्ठों पर रची सभी रचनाएँ पाठक के संवेदनशील अंतर्मन को झकझोर देने पर विवश कर देती हैं। 

            इस लघुकथा संग्रह की निर्देशित करने योग्य कुछ विशेषताएँ मैं रखना चाहता हूँ -
१. सहज, सरल एवं प्रभावी भाषा का प्रयोग किया है जो कि पाठक को सहजभाव से प्रवाहमान पढ़ सकता हैं। 
२. हर विभाग की प्रत्येक कथा अपने आप में अलग हैं जो पाठक के मन में नयापन लिए उभरती हैं। 
३. आज के सामाज का वास्तविक दर्शन करानेवाली है जिसके बारे में पाठक ने कभी सोचा भी नहीं होगा। 
४. मन में जिज्ञासा उत्पन्न करनेवाली है जो पाठक को जोड़े रखती हैं। 
५. हर लघुकथा को पढ़ते वक्त पाठक तो उपसंहार के बारे में अपना अनुमान लगाता हैं, परंतु कथा कुछ सोचनीय मोड़ ले लेती हैं जो पाठक के ह्रदय तक पहुँचती हैं।  

           प्रस्तुत लघुकथा संग्रह में विशेषरूप से अकिंचन बच्चे, निर्धन एवं बेसहारा-बेबस नारी का वास्तविक दर्शन, मजहब के नाम दंगे-धोपों के परिणाम तथा उलझी बातों को सहज सुलझाना, राजनीती, नेतागिरी, भ्रष्टाचारी वृत्ति, गरीबी में विवशताओं के साथ रोटी के सवाल, अपने देश के अंतर्द्वंद्व भाव, मानवी मनोभावों की प्रस्तुति आदि विभिन्न रंग लिए सामाजिक परिवर्तन लाने की कोशिश 'अपने-अपने सपने' के माध्यम से घनश्याम अग्रवाल जी ने की है। 

           इक्कीसवीं सदी में हर मनुष्य जीवनयापन करते हुए तथा उच्चभ्रू समाज जैसा बनने की जिज्ञासा से बढ़ते उपभोक्तावाद को बढ़ावा तो दे रहा है परंतु दूसरी ओर समाज का वो छठा परिवार परदों के पीछे अपनी दयनीय अवस्था में भी किसी तरह से जिंदगी जीने की कोशिश कर रहा है। यह एक अकिंचन समाज वर्ग आज भी अपने देश में अपनी बाँह पसारे हैं। इस वर्ग की दयनीयता, अशिक्षा, असहकारी वृत्ति, अधिकारीयों की घिनौनी हरकते, उच्चभ्रू लोगों के द्वारा शोषण आदि कारणों की वजह से हो रही प्रताड़ना, ऐसे व्यवहारों से आज समाज अनभिज्ञ हैं। 'अपने-अपने सपने' इस लघुकथा संग्रह में ऐसे समाज का सजीव चित्र सुज्ञ पाठकों तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया हैं। 

        'बच्चे सारे अच्छे' इस बाल-विमर्श की लघुकथाओं में एक से एक सरस मन  संवेदनाओं को जगानेवाली लघुकथाएँ दी हैं। छोटी के सिर्फ रोटी के ही सपने देखना, दो रूपए के लिए जी तोड़ मेहनत करनेवाली तुलसा की स्वाभिमानी वृत्ति, रोटी और कपड़े की किल्लत से मास्टर द्वारा बेंत झेलने पर भी शिक्षा लेनेवाला लड़का हो, रोशनी ढोनेवाला बब्बू हो अथवा गणेश मंदिर के सामने वह भूखा गणेश ही क्यों न हो, यह सभी आज अपने देश की उन तमाम आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो रोटी-कपड़ा-मकान के लिए पेट के बल चलते हैं।

         आज समाज में नारी के सम्मान को लेकर बोलबाला हैं परंतु यह सिर्फ मध्यम वर्ग तथा उच्चशिक्षित नारियों को लेकर राजनेताओं से लेकर गाँव की पंचायत तक ही सिमित रह गया है। उससे निचे उतरने की कोशिश आज नहीं हो रही हैं। यह सभी ऐसे समाज से अनभिज्ञ हैं जहाँ साँस तो चलती हैं परंतु उसे चलाने के लिए किस हद तक नारी को जाना पड़ता हैं, क्या कष्ट एवं दुःख झेलने पड़ते हैं, इसके बारे में आज का शिक्षित समाज बिलकुल आँखों का अंधा बन पड़ा हैं। डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी ने अपनी लघुकथाओं के माध्यम से 'नारी-विमर्श' करते हुए उन नारियों के जीवन का परिचय और दशा सुज्ञ पाठकों एवं शिक्षित समाज तक पहुँचाने की कोशिश की हैं जो सफल भी हैं। 'हाय! तुम्हारी यही कहानी' शीर्षक की लघुकथाओं में दवा के लिए अपनी हया बेचनेवाली जमीला मन को अस्वस्थ कर देती हैं। 'किफ़ायत', 'मदद' और 'सुरक्षित स्थान' इन लघुकथाओं में साहूकार, साठ साल का बूढ़ा और राहत अधिकारी की हवस भरी नजरे जो आज भी सभी स्तर के उन पाशवी वृत्ति को दर्शाती हैं जिनकी वजह से आज के समाचारपत्र रंगे हैं। साथ ही नारी के प्रति नारी तथा समाज के तथाकथित लोगों के विचारों को भी 'नारी-विमर्श' लघुकथाओं में व्यक्त किया हैं। 

            'आदमी शर्मिदा है' इस कड़ी में दंगे-धोपों पर विमर्श किया हैं। जाती-मजहब को लेकर समाज के कुछ धर्मभीरु लोग दंगे भड़काते हैं जिससे सामान्य इंसान जो इनसे परे हैं वह आहत हो जाता हैं। 'मजहब की कीमत' लघुकथा में भिकारी के माध्यम से मजहब की कीमत चार आने लगाई जो पाने के लिए भी दोनों और से पीटा जाता है। इससे मनुष्य को बहुत बड़ी सीख दी है कि 'पेट के लिए मजहब की नहीं इंसानियत की जरुरत होती हैं।' धर्मांधता से मजहब नहीं हिंदुस्थान की लाचारी के दर्शन कराने वाली 'निश्कर्ष', दिनेश-मजीद जो मजहब को न माननेवाले अंदर ही अंदर मजहब पाले लोगों के प्रतिनिधित्व करने वाली 'भीतर का आदमी', मजहब के दंगे-धोपों से बचने का उपाय ना मर्द (तृतीयपंथी) होना खुशनसीबी माननेवाला वह जीव, जो हर धर्मभीरु को उसके मजहब होने का सवाल पूछने वाली 'शिनाख्त' शीर्षक में लिखी लघुकथाएँ मनुष्य की आँखें खोलती हैं। साथ ही मजहब के कारन मजहबी ईश्वर सुख-दर्द को भी उजागर किया हैं। 'तोता और तोती' मजहब के पुजारियों पर किया करारा हास्य व्यंग्य हैं। 

         राजनीती विमर्श की लघुकथाओं में राजनीती में अंधों के प्रवेश, राजनेताओं की खोखली सेवाएँ, राजनैतिक कूटनीति का दर्शन, सत्ता के लालची नेता देश में अमन, शांति नहीं तो बस कुर्सी की चाहत में हैं जो 'गाँधी की भ्रूणहत्या' कर देते हैं, प्रजातंत्र में खूनचूसी वृत्ति, राजनितिकता के कारन आर्थिक विषमता, चुनावी भागदौड़ की इंडियन सर्कस का 'दि लास्ट शो' खोखली चुनावी वृत्ति के दर्शन तथा आज का समाजवाद सिर्फ दिखावा हैं आदि विचारों को इस कड़ी की लघुकथाओं में जोड़ दिया हैं। 

           रामराज्य का धोबी, सीमेंट के पुल का बहा जाना तथा बाँस के पुल बचने का राज, दारुबंदी कार्यक्रम, बाँध टूट जाने का फायदा, अल्पसंख्यांक को सुविधा देने की गलिच्छ निति, अँगूठेबाज शिक्षा मंत्री की शिक्षा क्रांति, आदि राजनेताओं का पर्दापाश करनेवाली लघुकथाएँ नेता-विमर्श में लिखी रोचक हैं। 

         भ्रष्टाचार पर लिखा हास्य व्यंग्य आधुनिक युग के रामायण की भ्रष्ट निति को उजागर करने वाली 'आजादी की दुम' बहुत ही रोचक लघुकथा है। 'ईमानदारी की खोज' में भ्रष्ट व्यवहार के वास्तविक दर्शन होते हैं। 'गवाही' तो आज के समय में सरकारी कामकाजों की असमयिकता को दर्शाती है। 'गति का गणित' लघुकथा तो आज के शासकीय दफ्तरों की भयावह स्थिति को दर्शाती हैं जिसमें एक नारी विधवा होने से पहले ही 'विधवा पेंशन' फार्म भरवाती हैं और कहती हैं कि मुझे विश्वास है कि जब तक मैं विधवा बनूँगी तब मुझे पेंशन जरूर मिलेगी इसलिए एडवांस फार्म भर रही हूँ। यह कटु वास्तविकता है। 'सरकारी गणित' आज की विभिन्न राहत कार्य में दी जाने यथार्थ मदद का दयनीय परिचय करने वाले अति संक्षिप्त लघुकथा हैं। 'हम सब चोर है' शीर्षक में रची अन्य लघुकथाएँ भी पठनीय हैं।

        'लहू के आँसू' शीर्षक में लिखी विवशता व गरीबी की लघुकथाएँ गरीब मजदूरों के जीवन का परिचय करा देती हैं।  मिल बंद होने के बाद मजदूरों की विवशता देख भोंपू का स्वयं बजना ही मजदूरों की दयनीयता का सजीव वर्णन करने वाली लघुकथा हैं 'मिल का भोंपू'। बूढ़े द्वारा जानबूझ कर थप्पड़ के सीन का रीटेक इसलिए करवाना कि हर रीटेक पर मिलनेवाले थप्पड़ के पैसे से वह अपने बच्चे की परीक्षा फ़ीस भरना चाहता था। उस बूढ़े के कार्य से पिता के ह्रदय एवं गरीबी से पाठक अवगत हो जाता है। बेरोजगारी  की समस्या और पेट भरने की विवंचना में मच्छरों को दुश्मन नहीं तो दोस्त कहना कारन मच्छर भगाने की फैक्ट्री में नौकरी पाना, वहाँ से अपनी झोपड़ी के मच्छर भगाने की अगरबत्ती जलाना, परंतु ऐसा करते वक्त मन में यह सवाल उठना कि सारे मच्छर मरेंगे तो नौकरी भी चली जाएगी। यह सोच अपने बच्चे के शरीर पर बैठे मच्छरों को मारने के बजाए भगा देने पर मजबुर कर देती है। गरीब की झोंपड़ी का सजीव चित्रण किया हैं। कोई भी इंसान गरीब नहीं होता है उसकी सोच एवं कर्म ही उसे गरीब बना देते हैं, यह सिख देनेवाली 'गरीबी' शीर्षक की लघुकथा बोधयुक्त है। 'सिलेक्शन' - भिकारी की पोस्ट पर, 'मजे की कीमत'-रिक्शा खींचनेवाले की विवशता को दर्शाती हैं। 'मुक्ति' लघुकथा में अपने पिता के दाहसंस्कार की विवशता को दर्शाते हुए बेटे ही मज़बूरी में अपने पिता को लावारिश लाश बताते हुए सार्वजानिक दाहसंस्कार करते हैं। मेहनत की कमाई अदरक के पंजे पर हैं बाकी तो खर्चा ही है,ऐसी वास्तविकता बतानेवाला रसवाला जीवन की सच्चाई बयान करता है। 

          'अपने-अपने सपने' लघुकथा संग्रह में हास्य लघुकथाओं में 'धमकी और धमाका', 'कवी की तपस्या' आर्टिफिशियल आदि हास्य व्यंग्य रचनाएँ गुदगुदा देनेवाली हैं।  इसमें सबसे अधिक पसंद आई रचनाएँ हैं - 'अपना-अपना तरीका' और 'परिवर्तन'।

        'मेरा भारत महान' शीर्षक में आज की ऊपरी सहानुभूति, जंगलों की कटाई पर प्राणियों के द्वारा आंदोलन चलना, कवी के हालात आदि बाते व्यक्त की हैं। 'संस्कृति' बहुत ही सुंदर हास्य व्यंग्य रचना हैं। 'सबसे सस्ता हिंदुस्थान' में आज की आर्थिक स्थिति पर लिखा हैं। 'इंटरव्यू' इस रचना में गरीबी में तन ढकने का कपड़ा ही सबसे बड़ा परिधान है। इस शीर्षक की अन्य रचनाएँ भी अच्छी हैं। 

          अंतिम लघुकथाओं में विभिन्न रंग भरते हुए प्रेम, ख़ुशी के लिए पैसा, श्रद्धा-अविश्वास, चोरी के उद्देश्य, कलाकार की जिंदगी की छलांग आदि बातें पाठक के सामने रखी है। 'प्यार का एक पल' पाठक को सुखद धर्म से परे सुखद स्नेह का एहसास दिलाती है तो अभिनेता धर्म का अभिनय करने की चाहत रखने की बात मन को हिला देती है। 'राम-लक्षण' इस लघुकथा में राम-लक्ष्मण का प्रसंग और फिर प्रमुख पात्र के सपने के राम और लक्ष्मण के विचार सुचारु ढंग से व्यक्त किए हैं जो उन दोनों के प्रति श्रद्धा बढ़ाने का काम करते हैं। 'एक बार फिर' यह लघुकथा तो स्वाभाविक विचारों से चलकर आज की स्वार्थी वृत्ति दर्शाती है। 
'गुब्बारे का खेल' लघुकथा संग्रह की अंतिम रचना, जो आज के मनुष्य स्वभाव को व्यक्त करते हुए उस गरीब बालक के मन में उठे प्रश्नों से पाठक तथा ऐसा व्यवहार करने वाले लोगों पर व्यंग कैसा हैं। 

         'अपने-अपने सपने' लघुकथा संग्रह की समग्रता को संक्षेप में कहा जाए तो यू ही कहना होगा कि गरीबी से लेकर अमीरों तक, रोटी से लेकर महलों तक, अतीत से लेकर भविष्य तक, प्रजा से लेकर राजा तक और आम इंसान से लेकर राजनितिक नेताओं की शासन की लाठी तक सभी को सचेत करने, हर व्यक्ति को अपने अंदर झाँकने, समाज में घटित हर घटना को दूरदृष्टि से परखने तथा धर्म से परे मानवधर्म के रास्ते पर चलने का संदेश देनेवाला यह लघुकथा संग्रह हैं। 

         आपकी इस कृति को तथा आपकी साहित्य सेवा को शत-शत नमन। 
       आपके दीर्घायु एवं स्वास्थ्यप्रकृति की मंगल कामनाओं के साथ आपके व्यक्तिगत एवं साहित्यिक जीवन की मगलकामना करते हुए, आपको भावी जीवन के लिए असंख्य शुभकामनाओं के साथ - 

आपका 
मच्छिंद्र भिसे 
अध्यापक

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समीक्षक 
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 
अध्यापक 
ग्राम भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
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1 comment:

  1. आपकी समीक्षा पढकर किताब पढने की तीव्र इच्छा मन मे उभरी है। बड़ी सुक्ष्मता से हर कथा की आलोचना की है।
    बधाई हो सर।

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■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती ■

  ■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती  ■ (पत्रलेखन) मेरे देशवासियों, सभी का अभिनंदन! सभी को अभिवादन!       आप सभी को मैं-  तू, तुम या आप कहूँ?...

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