■ माँ शारदे! ■
(प्रार्थना)
माँ शारदे ! माँ शारदे!
इस जहाँ को तेरे ज्ञान का
प्रकाश दे!
माँ शारदे ! माँ शारदे!
कितना सुंदर यह जहाँ पर टूट रहा
मानव मन मनुजता से फूट रहा
तू आकर ममदया से टूटा
अनुबंध बाँध दे!
माँ शारदे...
कुदरत का मानव अनुपम उपहार रहा
पर प्रकृति का क्यों बन काल रहा
तू आकर त्रयनेत्र से निज
सन्मति तेज दे!
माँ शारदे!...
अंधकार में आज मनुज फिसल रहा
दिक्-दिगंत राहों पर भटक रहा
तू ममतामयी करुणा से सबकी
उँगली थाम दे!
माँ शारदे!...
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06 अक्तूबर 2021
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)