■ हिंदी हिंदोस्ताँ की जान ■
(कविता)
सुनो विश्व के हिंद-स्नेहियों
हिंदी हमारी पहचान रे,
मधुर मधु-सी अपनी हिंदी
हिंदोस्ताँ की जान रे!
संस्कार भारती के इसपर
भारतीयता के निशान है,
जो भी आया इसके आँगन
करता रहा अभिमान है,
हिंदी सबको मित बनाती
गाओ मिलकर गुणगान रे!
भाषा कोई वाद न करती
करती रहती सुसंवाद है,
क्यों लड़ते हो भाषावाद पर
हिंदी विश्व क्रांतिवाद है,
आओ हाथ मिला लें अपने
करें मातृभाषा के सम्मान रे!
जलबिन मछली जो है तड़पें
राष्ट्रभाषा बिन हिंदुस्तान रे,
क्या हमारा धर्म नहीं कि
फुंके राष्ट्रभाषा के प्राण रे,
हिंदी न कोई प्रांतिय बोली
जोड़ती है इन्सान रे!
-०-
10 जनवरी 2022
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)
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