■ आपकी छाँव में ■
(कविता)
हम आपकी छाँव में जब भी बैठे रहे
धूप आती रही और हम मचलते रहे।
आपकी एक झलक के कायल हुए
जो नजरें मिली तो हम घायल हुए
यह खेल तकदीर का हम खेल रहे
इस इबादत में हर बार फिसलते रहे।
हम आपके थे और आप हमारे हुए
जो अपने थे कभी वो भी पराए हुए
क्या ऐसा था आपमें और हम ही में
जो हम दोनों मोम - से पिघलते रहे।
कभी पागल तो कभी मतवाले हुए
आप चाह में न चाहे जो किनारे हुए
खोजना न कंकर उन दर - किनारे
हम आँखों के मंजर यहीँ बिखरते रहे।
अब बहुत देर हुई हमें यहाँ आए हुए
चलो वापस वहीं जहाँ से लाए हुए
खो जाओगे तुम अपनी जिंदगी में
रहेंगे हम तुम्हारे जो प्राण निकलते रहे।
पता नहीं कि फिर से मुलाकातें होगी
जाओगे अब तो रातें फिर लंबी होंगी
तुम बिन अकेले कैसे कटेगा कारवाँ
जो यादों के जुगनू 'मंजीते' टिमकते रहे।
-०-
22 जनवरी 2022
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)
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