■ नन्हीं कली की पुकार ■
(त्रिवेणी काव्य)
कलियों ने खिल-खिलाना छोड़ दिया है
सबब यह थी कि
माली ने खुद, उन्हें चुनना छोड़ दिया है।
खिलने से पहले ही सब कत्ल होने लगी
खबर यह है कि
भौंरों की लूट से, महकना छोड़ दिया है।
चाहा कभी खिलना तो सौ नजरें गढ़ गईं
शोर यह था कि
आबरू ने नजरों में, बसना छोड़ दिया है।
पौध पे खिली फिर बिखर गई और कहीं
जुर्म यह था कि
खिलने से पहले, दम तोड़ना छोड़ दिया है।
हम बिन आँगन सूना-सा, सूनी तेरी पूजा
यही माँगू दुहाई कि
खिलने दो, हमने स्वयं लूटाने छोड़ दिया है।
-०-
25 नवंबर 2021
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)
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