■ कौन है वह? ■
(कविता)
अपनी राहें चल रे बंदे,
कौन तूझे है रोक पाएगा,
मीटने की ही ठानी तूने,
कौन तूझे है मिटाएगा।
न अपने पग को विराम हो,
बस चलने का पैगाम हो,
चूभें काँटे वे फूल भी होंगे,
कौन पथ तेरा रोक पाएगा।
अपनी मंजील नेकी हो
चाहे जहान विरोधी हो
था जो अँधेरा होगा उजाला
कौन रवी को रोक पाएगा।
आसमान पर परवान हो
आपनी नजरें जमीं में हो
निस्वार्थ से जो कर्म करोगे
कौन स्वार्थ तुझे हरा पाएगा।
जिंदगी कर-गुजरने का नाम हो
जीते जी कभी बदनाम न हो
नाम लिखना आसमानों पर
कौन तेरी हस्ती मिटाएगा।
-०-
25 नवंबर 2021
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)
बहुत बढ़िया कविता। आपकी कविता का जवाब नहीं। हार्दिक बधाई इस शानदार कविता के लिए।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
Deleteवाह! सुन्दर अति सुन्दर, ईश उत्कृष्ट सम्मान समारोह के लिये आप सहभागियो के लिये हार्दिक हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं है आदरणीय "राजकुमार जैन, राजन सर एवं भिसे सर!। आप सदैव उच्चतमको प्राप्त करे।
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