धागा-धागा
(सजल)
हर धड़कन बेहाल यहाँ
मिलतीं साँसे बेहाल यहाँ।
सूरज नित उगता तो है
रोटी का चाँद बेहाल यहाँ।
राहें निकलीं घुप्प अँधेरी
मंजिल को छूना बेहाल यहाँ।
मुस्कान लिए चलते सभी
हँसी-गुलाल बेहाल यहाँ।
झूठी ताली शोर मचाती
सच्चाई झोली बेहाल यहाँ।
चाटुकारी विलासिता भोगे
मेहनती पसीना बेहाल यहाँ।
जबानी वादे करते सभी
निभाए भी तो बेहाल यहाँ।
आना-जाना लगा है रेला
जीने की उम्र बेहाल यहाँ।
रिश्तों से लिपटा सदा रहा
धागा-धागा 'मंजीते' बेहाल यहाँ।
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03 अक्तूबर 2021
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)
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● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ●
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका
भिरडाचीवाडी, डाक- भुईंज,
तहसील- वाई, जिला- सातारा महाराष्ट्र
पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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