मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

तुम क्या जानोगे (सजल) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

तुम क्या जानोगे

(सजल)

खंडहरों में जीने का गम, तुम क्या जानोगे,
पूरब हूँ मैं, सूर्यास्त के बाद दिल की तड़प तुम क्या जानोगे?

अक्सर आपबीती पर, सभी मशवरे देते तो हैं,
मेरे दिल की बुझी चिंगारी का,भड़कना तुम क्या जानोगे?

कितने ही जुगनू लौ पर, जान अपनी लुटा देते‌ तो हैं,
दिल से निकली दर्द-दुआँ, बेजुबान दीपक तुम क्या जानोगे?

अँधेरा छाए शाम पर, सभी दीपक जला देते तो हैं,
दर्द से दिल हर पल बूझा, तीली जलाना तुम क्या जानोगे?

दुआँओं की कसमें यहाँ, हर किसी को देते तो हैं,
टूटा ही देखा उन्हें  हमेशा, खुद मिटना तुम क्या जानोगे?

मिटे कोई हस्ती, दफ़न करते या जला देते तो हैं,
तन मिट ही गया, यारो! यादों का सजाना तुम क्या जानोगे?

अपना हो या पराया, ‘मंजीतें' साथ निभा देते तो हैं,
कंधा देने होंगे सभी, अकेले जाने का दर्द तुम क्या जानोगे?
-०-

लेखन तिथि: १३ अगस्त २०२१

रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

संपर्क पता
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'  
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका
भिरडाचीवाडी, डाक- भुईंज,  
तहसील- वाई, जिला- सातारा महाराष्ट्र
पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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3 comments:

  1. मर्म को छूने वाली रचना

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  2. आपकी रचनाओं में प्रतिभा का प्रकटीकरण हो रहा है । बहुत-बहुत साधुवाद । योगेश सिंह

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