सच कभी झूठ का सहारा नहीं माँगता,
यह तो समय के फेर का खेल है प्यारे,
झूठ मिटते ही सच का फूल खिलता है।
आफत में कभी झूठ न अपनाना है,
फिर भी दाँव पर है सच और ईमान,
बच जाए किसी की जिंदगी झूठ से,
तो एक झूठ सौ खून माफ़ लगता है।
झूठे नक़ाबि रिश्तें चेहरे न रंग खिलते,
यदि बिखेर रही हो मानव की मानवता,
बच जाए इंसानियत झूठ से भी तो,
कड़वा झूठ भी अमृत पान बन जाता हैं।
आखिर सच तो सच होता है,
कही है संतों-महंतों की मनुष्य को,
झूठ का रास्ता तो ले डुबेगा एक दिन,
छोड़ सच-झूठ खेल जा इंसान बनता।
झूठ भी एक कड़वा सच होता है,
यदि सच की बुनियाद खड़ा होता है,
सच भी कभी-कभी झूठ लगता है,
जब वह स्वांत सुखाय बन जाता है।
रचना
नवकवि
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी।
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
प्रकाशनार्थ
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