पक्की सड़क को देख-देख के
गया है मानव पगडंडी को भूल,
वो भी कितना भुलक्कड है,
जो इसी पगडंडी राह पर चलते उसने,
कितने खिलाएँ काटों के भी शूल,
आज भूला है वह सब और पगडंडी भी,
शायद सड़क की तरह,
काला बना हो उसका मन भी।
सड़क तो काली होकर भी राह है दिखाती,
इन्हीं सड़को पर आज,
दिखती हैं विरासत है बिकती,
शूल से भी फूल है खिलते,
संस्कृति की पगडंडी है कहती,
मत भूल उस पगडंडी को,
जो जीवन संस्कार बतियाती।
भूलेगा जिस दिन इस पगडंडी को,
खुशियाँ न होंगी न होंगी कोई सौगात,
पल- पल मिट जाएगा होगा बरबाद,
अभी देर कहाँ हुई है,
बात सुन मानव प्यारे,
चल फिर एक पगडंडी का निर्माण कर,
जीवन में फिर कई रंग निराले ले भर।
रचना
नवकवि
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी।
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
प्रकाशनार्थ
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