■ खोज ■
(कविता)
कभी अंतस्थ गहराई में
गोते लगाता है मन;
और होता है चिंतन-मंथन
कि कौन हूँ मैं, और क्यों हूँ?
जवाब ढूँढ़ता रहता और
खाली ही लौट आता;
भाग-दौड़ भरी जिंदगी में,
उठा बोझ और थैला लिए
निकला हूँ फिर से
किसी और की खोज में!
और क्या! वे 'दो दाने' ही तो हैं;
बस! जिलाते है;
पल-पल मारने के लिए!
-०-
29 जनवरी 2025 सुबह: ०8.32 बजे
रचनाकार
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'● ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
सेवार्थ निवास : शिक्षण सेवक, जिला परिषद हिंदी वरिष्ठ प्राथमिक पाठशाला, विचारपुर, जिला गोंदिया (महाराष्ट्र)
9730491952
-०-
बेहतरीन सृजन। हार्दिक बधाई
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