■ बस! गुरू चरणन में ■
(कविता)
गुरू चरण हैं सदा-सर्वदा
अपने तन-मन-धन में,
ऊँची उड़ान भर ले जहाँ में
सुखस्वर्ग, बस! गुरू चरणन में।
गुरु की चाह शिष्य भला
डग-मग पाँव सँवारे हैं,
राह भूले शिष्य कभी जो
संगी बन राह दिखाए हैं।
नवजीवन मिले यहाँ पर
आ जाओ, बस! गुरु चरणन में।
गुरू की थाती समुंदर जैसी
जो चाहे हम डुबकी लगाए,
नवज्ञान के मोती भरे इनमें
जी चाहे जो-जो वो पाए।
नवरत्नों की खान पाओ
आए जा, बस! गुरु चरणन में।
जो क्षम है गुरुधाम में मेरे
औरों पर ही लुटाते हैं,
गुरू नित है सुधानिर्झर
सबके हित में बहते हैं
अमरत्व कहाँ खोजे रे, बंदे!
पाएगा तू, बस! गुरू चरणन में।
गुरु बिन कैसे होवे विहान
बिन गुरू के कहाँ वितान,
शास्त्र-पुराण भी यही बताते
गुरू से ही हैं राम और श्याम।
गुरुमहिमा तू जान 'मंजीते'
लीन रहे, बस! गुरू चरणन में।
-०-
21072024
रचनाकार
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'● ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
सेवार्थ निवास : शिक्षण सेवक, जिला परिषद हिंदी वरिष्ठ प्राथमिक पाठशाला, विचारपुर, जिला गोंदिया (महाराष्ट्र)
9730491952
-०-
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