आनंद का सूर्योदय
(कविता)अब आनंद का
सूर्योदय होता है
मन के क्षितिज पर
और ढल जाता है
पल में
परिहास के गगन में
अपनों की चाल में
मुखौटे ओढ़े खाल में
कायरों के झुंड़ में
जीने की जंग में
और मैं
खोजता रहा
बस उसे!
पूरब और पश्चिम में!
पर नहीं दिखाई देता
वह खुशियों का सूरज
मेरे अंधे विश्वास
पास और पास
रिश्तों
की वजह से
और मैं बस!
आशा की लौ लिए
तकता रहता हूँ
विहान की ओर!
-०-
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)
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