छोटा ही सही
(कविता)माना कि खुदा बड़ा है तू
छोटा ही सही मैं तुझसे मगर
तुझसे कम तो नहीं लगता हूँ।
हो सकता है यह देह
और मूरत तूने बनाई
खुद साँस से आस तक
की है हर पल मैंने लड़ाई
सच कि साँस तेरी ही सही
साँस तू नहीं मैं ही भरता हूँ
छोटा ही सही.....
मन-मस्तिष्क तूने दिया
सँवारना तो मुझे ही है
उथल-पुथल मचती रही
स्तब्ध करना मुझे ही है
ब्रह्म तू है इस जगत का
अहं ब्रह्मास्मी को मैं गढ़ता हूँ
छोटा ही सही.....
तूने अकेला भेजा धरा पर
अकेला ही कहाँ मैं जीता हूँ
पल दो पल बढ़ाए कदम
नित नव रिश्ते बनाता हूँ
कायरता से लाता तू मृत्यु
मैं दिलों में धड़कन बढ़ाता हूँ
छोटा ही सही.....
-०-
24042021
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)
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