मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

मन के दीप (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

मन के दीप
(कविता)
इस मिट्टी के तन ने आज
मिट्टी का दीप जला दिया
आँगन में उजास फैल गया
मन के तम को भूल गया।

आँगन में जब रंगोली सजी
सबके मन को मोह लिया
मन की लकीरें बेरंग कबसे
रंगीन बनाना भूल गया।

मीठे पकवान भोज से
तन की भूख बुझा गया
मन के कितने खाने खाली
ज्ञान से भरना भूल गया।

पुराने छोड़कर नए वसन से
रौब नवाबी दिखा गया
मन पड़ा है मटमैला-सा
धूल झाड़ना भूल गया।

अपने मन को जाने जो
मन के दीप जलाता गया
प्रतिदिन वह मनाता दिवाली
दो दिनवाली को भूल गया।

तन पर उजाला मन है काला
सफेद करना क्यों भूल गया
सच्ची चमक सद्चरित्र की
चरित्र निर्माण को भूल गया।
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● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'●
सातारा (महाराष्ट्र)
संपादक
सृजन महोत्सव पत्रिका
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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4 comments:

  1. मंजीत सचमुच मन जीत लिया आपने हार्दिक बधाई हो|

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  2. सच्ची चमक सद्चरित्र की।। बहुत खूबसूरत कविता। हार्दिक बधाई।। आपका सृजन नितनये सफलता के आयाम छुए । मंगलकामनाये

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  3. बहुत बढिया लेखन एवं कविता बधाई एवं शुभकामनाएं

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