(कविता)
कितनी ख़ुशी होती है मुझे
तनिक बता भी न पाता हूँ
जलता कितना खुद मगर
उजास सबको बटोरता हूँ।
अँधियारे का साथी तुम्हारा
सबको राह दिखाता हूँ
राही भूल न जाना कभी
कृतज्ञता का पाठ सिखाता हूँ।
तेल और बाती साथी मेरे
नाता कभी न छोड़ता हूँ
रिश्तों की अहमियत बहुत
निभाने की गुहार करता हूँ।
दुनिया आज चमाचम यहाँ
न कभी मन छोटा करता हूँ
अपनी चमक छोटी ही सही
अंधकार मिटाया करता हूँ।
खुशियाँ देने का अलग अंदाज
आज बयान यहाँ करता हूँ
दीप जलाओ आप मन के
जीवन अंधकार मिटे आपका
खिशियों की कामना करता हूँ।
-०-
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'●
सातारा (महाराष्ट्र)
संपादक
सृजन महोत्सव पत्रिका
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ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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