● वह माली बन जाऊँ मैं !●
(कविता)
पौधे सारे बच्चे हमारे
ज्ञान मंदीर जब आएँगे
कलरव होगा, क्रंदन होगा
रोना-धोना समझाएँगे
स्नेह रिश्ता ऐसा जोडूँ
प्रीत से उपजाऊँ मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
सदाचार की टहनी और
कोंपल उगे विनयता के
प्यारी बोली के रोए आएँगे
प्रेम के गीत भौंरे गाएँगे
आत्मविश्वास की कैंची से
ईर्ष्या-द्वेष-दंभ छाँटूँ मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
एक दिन कलियाँ चटकेंगी
खुशबू चारों ओर फैलाएँगी
बगियाँ में फिर पौधे आएँगे
खुशियों के दामन भर जाएँगे
हर पौधे को आकार देकर
जीवन को साकार कर पाऊँ मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
-०-
२३ फरवरी २०२०
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
-०-
(कविता)
पौधे सारे बच्चे हमारे
ज्ञान मंदीर जब आएँगे
कलरव होगा, क्रंदन होगा
रोना-धोना समझाएँगे
स्नेह रिश्ता ऐसा जोडूँ
प्रीत से उपजाऊँ मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
सदाचार की टहनी और
कोंपल उगे विनयता के
प्यारी बोली के रोए आएँगे
प्रेम के गीत भौंरे गाएँगे
आत्मविश्वास की कैंची से
ईर्ष्या-द्वेष-दंभ छाँटूँ मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
एक दिन कलियाँ चटकेंगी
खुशबू चारों ओर फैलाएँगी
बगियाँ में फिर पौधे आएँगे
खुशियों के दामन भर जाएँगे
हर पौधे को आकार देकर
जीवन को साकार कर पाऊँ मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
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२३ फरवरी २०२०
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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भिसे सर जी बहुत ही प्यारी सुंदर रचना है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना शिक्षक को माली प्रस्तुत करना ज्यादा प्रभावित करता है।
ReplyDeleteसरजी आपकी रचना को सादर प्रणाम बहुत ही सुंदर कविता है।।ऐसी ही कई रचना आपके करकमलोंसे निर्माण हो यही अंतर मनसे सदिच्छा
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