●बने हैं एकत्व को●
(कविता)
सृष्टि के निर्माता को वंदन हमारा
स्वीकार हो एक अनुनय प्यारा,
चाहत छोटी-सी है अपनी
बनें एक-दूजे का हम ही सहारा ।
बनें विशाल तन के कंकड़ हम,
हिमालयी चमकते ‘शूल’ बनों तुम।
बनें अथाह जलनिधि की बूंदें हम,
गरजती-इतराती ‘लहरें’ बनों तुम।
बनें उठती धूल के एक-एक रज हम,
अंगार बरसे तूफानी ‘बयार’ बनों तुम।
बनें मिट्टी में ख़ुद समेटे जड़ें हम,
खुशबू बिखराएँ वो ‘फूल’ बनों तुम।
बनें मंडराते हल्के बादल हम,
असीम पथ ‘आसमान’ बनों तुम।
बनें धूप की हल्की-तेज किरण हम,
दे दुनिया को चमक ‘सूरज’ बनों तुम।
बनें शमशानी उठती लौ-राख हम,
जिंदगी को जिए हर ‘साँस’ बनो तुम।
माँगा तो क्या माँगा!
खिल्ली उडाएँगे फिर सभी,
दीन अरज पर हँसोगे तुम
हम निराश न होंगे कभी।
बने हैं एकत्व को हम और तुम,
न्योच्छावर जीवन तुमपर सभी
समझकर देखो बात को
'श्वर' हैं हम और 'क्षर' हो तुम।
-०-
२३ फरवरी २०२०
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
-०-
(कविता)
सृष्टि के निर्माता को वंदन हमारा
स्वीकार हो एक अनुनय प्यारा,
चाहत छोटी-सी है अपनी
बनें एक-दूजे का हम ही सहारा ।
बनें विशाल तन के कंकड़ हम,
हिमालयी चमकते ‘शूल’ बनों तुम।
बनें अथाह जलनिधि की बूंदें हम,
गरजती-इतराती ‘लहरें’ बनों तुम।
बनें उठती धूल के एक-एक रज हम,
अंगार बरसे तूफानी ‘बयार’ बनों तुम।
बनें मिट्टी में ख़ुद समेटे जड़ें हम,
खुशबू बिखराएँ वो ‘फूल’ बनों तुम।
बनें मंडराते हल्के बादल हम,
असीम पथ ‘आसमान’ बनों तुम।
बनें धूप की हल्की-तेज किरण हम,
दे दुनिया को चमक ‘सूरज’ बनों तुम।
बनें शमशानी उठती लौ-राख हम,
जिंदगी को जिए हर ‘साँस’ बनो तुम।
माँगा तो क्या माँगा!
खिल्ली उडाएँगे फिर सभी,
दीन अरज पर हँसोगे तुम
हम निराश न होंगे कभी।
बने हैं एकत्व को हम और तुम,
न्योच्छावर जीवन तुमपर सभी
समझकर देखो बात को
'श्वर' हैं हम और 'क्षर' हो तुम।
-०-
२३ फरवरी २०२०
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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