तेरी बद्दुआएँ
कवि: मच्छिंद्र भिसे,
(सातारा, महाराष्ट्र)
कवि: मच्छिंद्र भिसे,
(सातारा, महाराष्ट्र)
अरे सुन प्यारे पगले,
देख तेरी बद्दुआएँ काम कर गईं,
पटकाना था जमीं पर हमें
यूँ आसमाँ पर बिठा गईं.
देख तेरी बद्दुआएँ काम कर गईं,
पटकाना था जमीं पर हमें
यूँ आसमाँ पर बिठा गईं.
तेरी रंग बदलती सूरत ने
परेशान वारंवार किया,
यही रंगीन सूरत मुझे
हर बार सावधान कर गई.
परेशान वारंवार किया,
यही रंगीन सूरत मुझे
हर बार सावधान कर गई.
आप एहसास चाहा जब भी
नफरत ही नफरत मिलीं,
न जाने कैसे तेरी यह नफरत
खुद को संजोए प्रीत बन गई.
नफरत ही नफरत मिलीं,
न जाने कैसे तेरी यह नफरत
खुद को संजोए प्रीत बन गई.
छल-कपट की सौ बातें
इर्द-गिर्द घूमती रही,
तेरा बदनसीब ही समझू
जो उभरने का गीत बन गई.
इर्द-गिर्द घूमती रही,
तेरा बदनसीब ही समझू
जो उभरने का गीत बन गई.
तेरी हर एक बद्दुआ
मेरी ताकत बनती गई,
देनी चाही पीड़ा हमें
वह तो दर्द की दवा बन गई.
मेरी ताकत बनती गई,
देनी चाही पीड़ा हमें
वह तो दर्द की दवा बन गई.
सुन, अभिशापन से काम न चला
आशीर्वचन का चल एक दीप जला,
आएगा जीवन में एक नया विहान
दीप की ज्योति बार-बार कह गई.
-०-
०५ जुलाई २०१९
आशीर्वचन का चल एक दीप जला,
आएगा जीवन में एक नया विहान
दीप की ज्योति बार-बार कह गई.
-०-
०५ जुलाई २०१९
रचनाकार
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे
अध्यापक-कवि-सह संपादक
भिराडाचीवाडी,
डाक
भुईंज, तहसील वाई,
जिला सातारा – 415 515 (महाराष्ट्र)
संपर्क सूत्र: 9730491952 / 9545840063
ई-मेल: machhindra.3585@gmail.com
साहित्यिक
ब्लॉग: http://bhisesir3585.blogspot.com
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