वचन सभ्यता
वचनों की मिठास से,
मिटे मन के संत्रास,
रिश्तों की मीटीं दुरियाँ,
खिंचे आते अपने पास.
मीठे वचन की कमी
खलती रहे सभ्य जन,
जीवन बाग में बहती रहे,
मधुर वचन की पवन.
कुदरत की देन हमें,
सोच प्यार मधुर वचन,
पशु नहीं मानुष बन,
करेंगे इसका जतन.
मीठे वचन की सभ्यता,
भारत-भारती की न्यारी,
पालना रहा इसका यहाँ,
वचन सुधा-सी लगती प्यारी.
बुद्ध-कबीर-सूर कईंने दी,
अशिष्ट स्वरों को शिष्ट साँस,
जीवन मोक्ष पा जाएगा मनुज,
बुनें वाणी का मधुर प्रवास.
-0-
१३ अप्रैल २०१९
वचनों की मिठास से,
मिटे मन के संत्रास,
रिश्तों की मीटीं दुरियाँ,
खिंचे आते अपने पास.
मीठे वचन की कमी
खलती रहे सभ्य जन,
जीवन बाग में बहती रहे,
मधुर वचन की पवन.
कुदरत की देन हमें,
सोच प्यार मधुर वचन,
पशु नहीं मानुष बन,
करेंगे इसका जतन.
मीठे वचन की सभ्यता,
भारत-भारती की न्यारी,
पालना रहा इसका यहाँ,
वचन सुधा-सी लगती प्यारी.
बुद्ध-कबीर-सूर कईंने दी,
अशिष्ट स्वरों को शिष्ट साँस,
जीवन मोक्ष पा जाएगा मनुज,
बुनें वाणी का मधुर प्रवास.
-0-
१३ अप्रैल २०१९
रचनाकार
मच्छिंद्र भिसे (अध्यापक)
सदस्य, हिंदी अध्यापक मंडल सातारा
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा 415 515 (महाराष्ट्र )
संपर्क सूत्र ; 9730491952 / 9545840063
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