हलधारी जवान
प्रतिपाल सारे जहान का,
हलधारी वह जवान है,
पनाह में आबाद जिसके,
वतन-ए-हिंदुस्थान है.
आसमान की छाँह में,
धूप-घनेरी बरसात में,
सिंचाई करें निज खून से,
फिर भी चेहरे मुस्कान है.
महँगाई की मार है,
घर-चूल्हा कंगाल है,
बेतरतीब मौसम से,
जीवन उसका तूफान है.
अकाल की चाल ने,
घर, बीमारी सवाल ने,
लुटेरे समय के तैश में,
खेती जिसकी जान है.
मौसम दुश्मनों के दल हैं,
सपनों के टूटे महल हैं
परिवार संग जीने की पहल से,
हर दिन नया विहान है.
देखा समय का इतराना,
सौ बार सहा शासन का ताना,
काल ने किए अनचाहे वार हैं,
सीना ताने देखो किसान है.
-0-
५ मार्च २०१९
प्रतिपाल सारे जहान का,
हलधारी वह जवान है,
पनाह में आबाद जिसके,
वतन-ए-हिंदुस्थान है.
आसमान की छाँह में,
धूप-घनेरी बरसात में,
सिंचाई करें निज खून से,
फिर भी चेहरे मुस्कान है.
महँगाई की मार है,
घर-चूल्हा कंगाल है,
बेतरतीब मौसम से,
जीवन उसका तूफान है.
अकाल की चाल ने,
घर, बीमारी सवाल ने,
लुटेरे समय के तैश में,
खेती जिसकी जान है.
मौसम दुश्मनों के दल हैं,
सपनों के टूटे महल हैं
परिवार संग जीने की पहल से,
हर दिन नया विहान है.
देखा समय का इतराना,
सौ बार सहा शासन का ताना,
काल ने किए अनचाहे वार हैं,
सीना ताने देखो किसान है.
-0-
५ मार्च २०१९
रचनाकार
मच्छिंद्र भिसे (अध्यापक)
सदस्य, हिंदी अध्यापक मंडल सातारा
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा 415 515 (महाराष्ट्र )
संपर्क सूत्र ; 9730491952 / 9545840063
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