मानवता मजहब एक
भारत भू के
अधरों पर,
फूल खिले हैं
अनेक,
जाति-धरम बहुत
यहाँ,
मानवता मजहब
एक।
खान-पान-परिवेश अलग पर,
भावों में है महक,
रंग-रूप निराले यहाँ,
मानवता मजहब एक।
प्रांत जैसी
बोली बहुत पर,
दिल की सोच
है नेक,
हिंदी जन-मन
गीत यहाँ,
मानवता मजहब
एक।
रामायण पढ़े या पढ़े कुराण,
इसमें एक ही लेख,
प्यार से प्यारी झोली भर जहाँ,
मानवता मजहब एक।
भारत भू के
नादान परिंदे हम,
तिरंगे परछाई
चहक,
राखण करने बलि-बलि
जाऊँ,
मानवता मजहब
एक।
रचना
नवकवि- मच्छिंद्र
भिसे (सातारा)
उपशिक्षक
सदस्य, हिंदी अध्यापक मंडल सातारा
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा 415 515 (महाराष्ट्र )
संपर्क सूत्र ; 9730491952
9545840063
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