🌹संस्कार घरौंदा🌹
सोच के घरौंदे आज उजड़ रहे हैं,
जो विकारों की छत से सजे हैं,
आज छत विकारों से बीमार,
करना चाहते हैं संस्कारों का प्रचार,
खुद उड़ने लगे हैं,
ढूँढने सुसंस्कारों के विकार।
क्या मिल पाएँगे वह संस्कार,
जो कभी घरों को सजाया करते थे,
जो आज घरों में तो हैं पर
बाहर निकलते ही उनका दम घोंटा जाता हैं,
वह भी तो आज खुद,
खून के आँसू बहाएँ,
अपने अस्तित्व को ढूँढ़ा करते हैं।
आज संस्कारों में भिड़ंत है,
दिखते कुछ और होते कुछ ओर,
पता ही नहीं चलता,
नजर के पिछे नजरिए का,
क्या शड़यंत्र है,
घायल संस्कार इसी सोच में,
आजाद मुल्क में जी रहा,
निरंतर पारतंत्र में है।
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जहाँ संस्कार घरौंदे मिट जाएँ,
और दीवारें दमघौंटु आँसू बहाएँ,
चाहिए बस,
मानव बनकर मानवता के लिए जिए,
जहाँ हो सच्चे संस्कारों के साये,
वहाँ बनाऊँ वहीं घरौंदा,
जिसके छत कभी,
संस्कारों के थे गीत कभी गाए।
🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹
रचना
मच्छिंद्र भिसे
सातारा - महाराष्ट्र
9730491952
9545840063
🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻
सोच के घरौंदे आज उजड़ रहे हैं,
जो विकारों की छत से सजे हैं,
आज छत विकारों से बीमार,
करना चाहते हैं संस्कारों का प्रचार,
खुद उड़ने लगे हैं,
ढूँढने सुसंस्कारों के विकार।
क्या मिल पाएँगे वह संस्कार,
जो कभी घरों को सजाया करते थे,
जो आज घरों में तो हैं पर
बाहर निकलते ही उनका दम घोंटा जाता हैं,
वह भी तो आज खुद,
खून के आँसू बहाएँ,
अपने अस्तित्व को ढूँढ़ा करते हैं।
आज संस्कारों में भिड़ंत है,
दिखते कुछ और होते कुछ ओर,
पता ही नहीं चलता,
नजर के पिछे नजरिए का,
क्या शड़यंत्र है,
घायल संस्कार इसी सोच में,
आजाद मुल्क में जी रहा,
निरंतर पारतंत्र में है।
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जहाँ संस्कार घरौंदे मिट जाएँ,
और दीवारें दमघौंटु आँसू बहाएँ,
चाहिए बस,
मानव बनकर मानवता के लिए जिए,
जहाँ हो सच्चे संस्कारों के साये,
वहाँ बनाऊँ वहीं घरौंदा,
जिसके छत कभी,
संस्कारों के थे गीत कभी गाए।
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रचना
मच्छिंद्र भिसे
सातारा - महाराष्ट्र
9730491952
9545840063
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