पथहीन की आवाज
(कविता)
बेईमानी छोड़ सच्चाई के राह चला,
बना खुदगर्ज के जीवन पथ भूल चला,
अब राह नहीं न कोई अभिलाषा रखता भला ,
बस जिंदगी के तलाश में जिंदगी खोता चला।
कितना अच्छा था बसेरा मेरा,
होता रहता हर दिन एक सवेरा,
सवेरे को देख उम्मीद से जीता मैं चला ,
रात की गोद में बस तनहाई पाता चला।
पाता था माँता -पिता के आँचल छाँव,
बिन छाँव हो रहे मन पर घाव-ही-घाव,
जिंदा माता-पिता के मैं अनाथ होता चला ,
पाया दाग खुद ने अब बर्बादी ही पाता चला।
मनहूस दिन मैंने चाहत बड़ी जतायी,
बेबस माता-पिता ने असहायता बतायी,
आव देखा न ताव किसी की न सुनता चला,
समय कैसे वापस लाऊँ जो बर्बाद हो चला ।
आज फिर बसेरा और सवेरा चाहता हूँ,
फिर से अब नई जिंदगी चाहता हूँ, पर
माफ़ी हो ईश्वर, अपनों को बेगाने बनाता चला,
मिटे भूतकाल ऐसे भविष्य की दुआँ मांगता चला।
रचना
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे
उप अध्यापक
ग्राम भिराडाचीवाडी
पोस्ट भुईंज, तहसील वाई,
जिला सातारा - 415 515 (महाराष्ट्र)
9730491952 / 9545840063
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