एक ही गाँव
(कविता)राह अलग है चाह अलग
कितने अलग ठाँव हैं
जीते सभी पसंद अपनी
जाते सब एक ही गाँव है।
कोई आगे तो पीछे कोई
सँवारता जीवन नाँव है
हार कभी तो जीत पाए
मिलती धूप कभी छाँव है।
बढ़ता रहा पथ पर सदा
रूका न थका पाँव है
जीए जंग खुशी-खुशी
चाहे लगे जान दाँव है।
मिलता कम छूटता ज्यादा
रिश्तों में क्या नाव है
तू-तू कभी मैं-मैं होवे
देते न एक-दूजे भाव है।
जन्म-मृत्यु न उसने देखा
देखें जिंदगी बहाव हैं
कर्म करेगा कर्म रहेगा
दिखाता न दिल के घाव है।
-०-
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)
No comments:
Post a Comment