सबसे सुंदर मेरा वतन
(बालकविता)अपनी धरती की माटी पर
चलते जाते शान से,
सबसे सुंदर मेरा वतन
प्यारा दिलों-जान से।
नदियाँ बहती गीत है गाती
सुधा बहाती मान से,
लहरें खेती मन को भाती
इतराती अभिमान से।
हिमालय के आँगन में गूँजे
गीत गीता-कुरान से,
धर्म देश है जाति मानव
बंधुता पलती इक प्राण से।
मीठा खाते पर्व मनाते
रंगते होली गुलाल से,
ईद मनाते दीप जलाते
सद्भावना सम्मान से।
कितनी सुंदर मधुर बोलियाँ
राष्ट्रगीत गाए एक तान से,
रहे तिरंगा ऊँचा जगत में
बोलो वंदे मातरम् जी-जान से।
मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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09 अगस्त 2021
पूर्व रात्रि 1.10
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