नववर्ष के स्वागत में
मुस्कराता रंगीन चेहरा लेकर,
नववर्ष का पहला पन्ना,
फिर से आया है,
मेरे जीवन के,
कितने ही सुनहरे पलों को,
भूतकाल में समेटने, वर्तमान बनकर,
क्या नववर्ष फिर से आया है?
बचपन से आज तक,
नववर्ष के पन्ने बदलता रहा,
पन्नो के बीच उम्मीदों के,
खोए दिनों को तलाशता रहा,
क्या पाया? क्या खोया?
हिसाब फिर भी न कर पाया मैं,
क्या नववर्ष फिर से आया है?
पन्नों के रंगीन टुकड़े,
टुकड़ों में बिखरते सपनों की,
याद जो दिलाते हैं,
जो कभी पिछले साल देखे थे,
आपाधापी में आगे जो बढ़े हैं,
कैलेंडर के मुखपृष्ठ पर दिखलाते हैं,
क्या नववर्ष मेरा विश्वास तोड़ने आया है ?
ऐ नववर्ष ! कितना भी कर ले हर्ष,
खोई उम्मीद को कभी,
भूतकाल में न खोजा मैंने,
सुनहरे जीवन के सपने और पलों को,
मिटने न दिया मन-मस्तिष्क से मैंने,
पर तू बता हे नववर्ष !
मैं तो वहीँ का वही हूँ,
क्या खुद को मिटाने,
क्या अपनी नाक कटाने फिर से आया है?
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नवकवि
मच्छिंद्र भिसे (उपशिक्षक)
सदस्य, हिंदी अध्यापक मंडल सातारा
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा 415 515 (महाराष्ट्र )
संपर्क सूत्र ; 9730491952 / 9545840063
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