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■ ग्रंथप्रेमी : महामानव डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ■ मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

(फोटो साभार इंटरनेट से प्राप्त)

 ■ ग्रंथप्रेमी : महामानव डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर 

(आलेख)

        भारतीय संविधान के संस्कारक निर्माता श्रीमान भीमराव रामजी आंबेडकर अर्थात डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी को और उनके ग्रंथप्रेम को कौन नहीं जानता! उनका पुस्तक प्रेम सर्वविदित है। उनके जीवन में किताबों का अनोखा महत्व था। हम बाबासाहेब को जानते हैं, जिन्होंने अपने जीवन में समय बर्बाद न करने के लिए पुस्तकालय में पाव लाकर और वहाँ  खाकर अधिक से अधिक किताबें पढ़ने की कोशिश की। उनके जीवन की कई घटनाएँ उनके जीवन में पुस्तकों के महत्व को उजागर करती हैं।

        डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारत में अपने समय के सबसे विद्वान व्यक्ति थे। उन्होंने मुंबई के एल्फिस्टन कॉलेज से बी.ए. की डिग्री ली। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। शुरू से ही एक उत्साही पाठक होने के कारण, उनके पास पुस्तकों का एक गहरा संग्रह था। 'इनसाइड एशिया' पुस्तक के लेखक जॉन गुंथर लिखते हैं, जब मैं 1938 में बाबासाहेब से मिला तो उनके पास आठ हजार किताबें थीं, उनकी मृत्यु के समय तक यह संख्या पैंतीस हजार तक पहुँच गई थी।

      डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर एक महान व्यक्ति हैं जिन्होंने पुस्तकालय के लिए एक बंगला बनवाया और उसमें बाईस हजार से अधिक पुस्तकें एकत्र कीं। जब बाबा साहब छोटे थे तो उनके पिता रामजी बाबा बाबासाहेब पर विशेष ध्यान देते थे। बाबासाहेब को बचपन से ही पढ़ने का शौक था। बाबा साहब को जो किताबें चाहिए होती थीं, वे लाते थे। जब पर्याप्त पैसे नहीं होते थे तो वे अपनी बेटियों के पास जाकर पैसे और किताबें लाते थे, लेकिन उन्होंने बाबासाहेब की पढ़ाई में कभी बाधा नहीं आने दी। बाबासाहेब के घर में यह जागरूकता उस समय की सामाजिक व्यवस्था में क्रांतिकारी थी जब अछूत परिवार में शिक्षा से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता था।

       बाबासाहेब ने एक बार कहा था, 'यदि आपके पास दो रुपये हैं, तो एक रुपये की रोटी और एक रुपये की किताबें खरीदें क्योंकि रोटी आपको जीने में मदद करेगी, किताबें आपको जीना सिखाएँगी।' बाबासाहेब का पुस्तकों से प्रेम अत्यधिक था। किताबों के प्रति उनका प्रेम उनकी कभी न ख़त्म होने वाली लालसा बन गया और उनके साथ एक अनोखा रिश्ता पैदा हो गया था, मानो यह उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया और जीवन भर उनका साथी बना रहा। इससे उनकी याददाश्त जबरदस्त हो गयी थी।

         बाबासाहेब अपने निजी सहायक के साथ अपना अंतिम ग्रंथ 'भगवान बुद्ध और उनका धम्म' लिख रहे थे। एक रात बाबा साहब ने उन्हें देर हो जाने के कारण घर जाने को कहा। उनके जाने के बाद भी बाबासाहेब लिखते रहे। सुबह जब निजी सहायक घर लौटा तो उसने देखा कि बाबासाहेब अभी भी बैठे हुए लिख रहे हैं। बाबासाहेब को अपनी पढ़ाई में कोई रुकावट पसंद नहीं थी। दुनिया के कई देशों की घटनाओं का अध्ययन करने के लिए बाबा साहब ने खुद को 14 दिनों के लिए बाहर से ताला लगाकर कमरे में बंद कर लिया था। उस समय एक छोटी सी खिड़की से उनके लिए चाय और भोजन की व्यवस्था की जाती थी। इस घटना से यह ज्ञात होता है कि उनके लिखने-पढ़ने की एकाग्रता कितनी चरम थी। बेशक, यह सारी मेहनत मानव मुक्ति की लड़ाई में न्याय और अधिकारों के लिए थी।

       एक बार उन्होंने एक नाव में कई किताबें विदेश से भेजी थीं, लेकिन दुर्भाग्य से वह नाव डूब गई। जब बाबासाहेब को यह बात पता चली तो वे पुस्तकों के अभाव में दो दिन तक रोते रहे। बाबासाहेब को अपनी पुस्तकों से अत्यधिक प्रेम था। वह कहते हैं, ‘लोग मेरा तिरस्कार करते थे लेकिन इन किताबों ने मुझे ज्ञान दिया। यही कारण है कि मैं किताबों के प्रति इतना सचेत हूँ।‘ वह आगे कहते हैं- अगर मेरा घर जब्त कर लिया जाए और मेरी सारी चीज छीन ली जाए तो मैं चुप रहूँगा लेकिन अगर कोई मेरी किताबों को छूएगा तो मैं इसे कभी बर्दाश्त नहीं करूँगा। बाबासाहेब ने बचपन से ही दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों का अध्ययन किया और विश्व प्रसिद्ध महान व्यक्ति बने। उन्होंने लगातार लोगों से कहा कि शिक्षा के बिना कोई इलाज नहीं है। बाबा साहब ने राजनीति के क्षेत्र में कई किताबें और लेख लिखे, जो आज भी देश के निर्माण में मार्गदर्शन कर रहे हैं।

        मनुष्य अपने व्यक्तित्व निर्माण के लिए पुस्तकों का महत्त्व अपनी कृतित्व एवं पुस्तक प्रेम से हमारे सामने रखकर एक मिसाल कायम की है। उन्होंने भी स्वयं लिखी कई किताबें आज विभिन्न विश्वविद्यालयों की शोभा के साथ अध्ययन का विषय बन चुकी है। अतः ऐसे महामानव का अनुकरण करके अपने जीवन को समृद्ध एवं सुखमय बनाने के लिए पुस्तकों का सहारा लेना चाहिए। हर दिन कुछ-न-कुछ नया पढ़ने सीखने का यत्न करना चाहिए। बाबासाहेब के पुस्तक प्रेम से हमें प्रेरणा लेकर पुस्तकों को अपना साथी बनाकर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।
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२८ नवंबर २०२४ सुबह ८ बजे
संकलन एवं संपादन
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'● ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
सेवार्थ निवास : शिक्षण सेवक, जिला परिषद हिंदी वरिष्ठ प्राथमिक पाठशाला, विचारपुर, जिला गोंदिया (महाराष्ट्र)
9730491952
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