मेरे आदरणीय, वंदनीय, श्रद्धेय, मार्गदर्शक, प्रेरणास्त्रोत, पथप्रदर्शक गुरुजनों को शिक्षक दिवस की बहुत-बहुत
मंगलकामनाएँ
*तलाश उस परछाई की...*
गुरूजी कल फिर मैंने एक मनभावन सपना देखा
मुरझाएँ फूल को हँसते-हँसाते आपका चेहरा ही देखा।
पल्लू को कसके पकड़े, पिता की उंगली थामें,
था बैठा मैं, न डर था न किसी से नफरत थी हमें,
उम्र ने दी दस्तक, चल पाठशाला के आँगन में,
लिए हाथ कोरी पाटी और विश्वास भरे मन में,
न चाहते हुए भी पाटी पर शब्दों को उभरें देखा।
आपको फिर बच्चा बनाए आपसे गीत सुनवाएँ,
बचपने के आँगन में, दोस्तों के साथ गीत गाए,
उसकी पाटी, मेरी पेन्सिल, प्यारे झगड़े हमें भाए,
मन में गुस्सा पल का, अगले पल फिर गले मिल जाए,
हमारे गुस्से-प्यार में आपका मन-मुस्काता चेहरा देखा।
ना समझ से समझदार बाबू हम बन गए,
हमारी शरारतें भी अपनी आदत मानकर सह गए,
दिखाई जो श्रद्धा हमपर आप आगे चल दिए,
मुड़कर न देखना कहकर, हमें आगे बढ़ाते जो गए,
गुरूजी उन हाथों को और प्यार को सख्त होते जो देखा।
गिरकर उठना, उठकर चलना, आपने ही सिखाया,
भटके हुए थे कभी बचपने में, सही रास्ता भी दिखाया,
अहंकार ने जब भी छुआ, नम्रता का पाठ भी पढ़ाया,
खोए कभी उम्मीद अपनी, रोशनदान बन सबेरा उगाया,
यौवन की बेला पर हमें संभालते हुए फिर से आपको देखा।
गुरूजी, आज वह परछाई फिर से ढूंढ रहा हूँ,
शायद जिंदगी की तलाश में अपने तन की,
खोखली उम्मीदों के बीच खोई रूह ढूँढ रहा हूँ,
जो कभी बचपने से यौवन तक अपने सँभाली थी,
उसे आपकी परछाई के तले सुमनों-सा बिछता हुआ देखा।
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मेरी
यह
रचना
मेरे
सभी आदरणीय गुरुजनों
को
समर्पित
है !!!
आदरणीय मछिन्द्र भिसे जी / नमस्कार.
ReplyDeleteआप ने बहुत बढ़िया रचना संयोजन और सामग्री प्रस्तुतिकरण किया हैं. आप का यह संकलन छात्र, शिक्षक और अभिभावकों के काम का हैं. इस शानदार कार्य के लिए आप को हार्दिक बधाई.