मन की संवेदनाहीनता
दुनिया की खो रही मानवता देख,
खुद को उनकी गर्दिश में,
संवेदनाहीन पाया ।
हाथ में कटोरा,
कपड़े की चिथड़न ओढ़े,
एक रोटी गुहार की उसने,
चेहरे भाव मिलेगा कुछ-न-कुछ, पर
मैं खुद की रोटी की तलीश में,
दानत्व भाव को संवेदनाहीन पाया ।
राह दो राह रोटी पाने,
आया लोगों की भीड़ में,
टकराव तो होना ही था,
किसी को लाठी मिली तो,
सह रहा था कोई गाली,
ना कर पाया बोझ हलका उनका,
खुद दर्द न बाँट पा सका,
जैसे अपने हाथ को मैंने संवेदनाहीन पाया ।
अब दफ्तर हो या घर,
हो रहा बँटवारा पहर-दोपहर,
कैसे सँवारे जिंदगी आप -अपनों की,
चाहता यह दरार मिटे, पर
मन की दरारों को मिटाने,
अपने - आप को अपाहिज बना हुआ पाया ।
खुद को उनकी गर्दिश में,
संवेदनाहीन पाया ।
हाथ में कटोरा,
कपड़े की चिथड़न ओढ़े,
एक रोटी गुहार की उसने,
चेहरे भाव मिलेगा कुछ-न-कुछ, पर
मैं खुद की रोटी की तलीश में,
दानत्व भाव को संवेदनाहीन पाया ।
राह दो राह रोटी पाने,
आया लोगों की भीड़ में,
टकराव तो होना ही था,
किसी को लाठी मिली तो,
सह रहा था कोई गाली,
ना कर पाया बोझ हलका उनका,
खुद दर्द न बाँट पा सका,
जैसे अपने हाथ को मैंने संवेदनाहीन पाया ।
अब दफ्तर हो या घर,
हो रहा बँटवारा पहर-दोपहर,
कैसे सँवारे जिंदगी आप -अपनों की,
चाहता यह दरार मिटे, पर
मन की दरारों को मिटाने,
अपने - आप को अपाहिज बना हुआ पाया ।
रचना
नवकवि
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी।
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
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