नल की टोटी पर
(कविता)
नल की टोटी पर
चिड़िया ने दी गुहार
दो बूँद पानी की...
कि प्यास बुझा लूँ
तो पंख पसारूँ
सैर करूँ जहान की।
खुल गई टोटी
और खुल गई चोंच,
बार-बार उड़ी फिर मुड़ी
देखती रही खरोंच...
पर कहाँ मिलीं उसे
दो बूँद पानी की
पानी ने क्या ठाना था
लेनी जान नन्हीं की...
सब्र का बाँध अब टूट रहा
जी से नाता छूट रहा
साँसें भी अब फूल रही
आँखें भी अब मूँद रहीं
पानी, पानी की हर पुकार
हो गई थी अब बेकार...
पता चला के भूल हुई
गाँव छोड़ शहर चली
चकाचौंध के दिन थे चार
फिर घुमती रही लाचार
अब पछताए होत क्या
शहर जो चुग गया खेत
गाँव जबसे शहरी बना
कौन है यहाँ किसके हेत....
अब दाना है न पानी है
समाप्ति की बस कहानी है
पानी, पानी और पानी
साँस फूली जो नन्हीं की
नर का नरक अब छूट गया
राह पकड़ ली सरग संसार की।
-०-
दिनांक: 25 दिसंबर 2021
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)
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