सजता एक मकान
मीठी-मीठी प्यार की बोली,
और नेकी जिसकी जान,
हर गली, हर चौराहे पर उसका,
सजता एक मकान.
न कोई दौलत न कोई शौहरत,
न कोई चाहत न कोई हसरत,
दिल बड़ा और बड़प्पन से
भरता निज जीवन में शान,
हर गली, हर चौराहे पर उसका,
सजता एक मकान.
प्यार बाँटता प्यार ही पाता,
सबसे बुनता दिल का नाता,
डंख शब्द-जहर मिलते फिर भी,
चेहरे खिलती सुधा-सी मुस्कान,
हर गली, हर चौराहे पर उसका,
सजता एक मकान.
मधुर वाणी से घट भर प्यारे,
जीवन में होगा फिर-फिर विहान,
न होगा कोई अपना-पराया,
भला कहलाएगा हर इन्सान,
देखो ! हर गली, हर चौराहे पर,
मानवता की सजने लगी दूकान.
(१९ मार्च
२०१९)
रचनाकार
मच्छिंद्र भिसे (उपशिक्षक)
सदस्य, हिंदी
अध्यापक मंडल सातारा
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज,
तह.वाई,
जिला-सातारा 415 515
(महाराष्ट्र )
संपर्क सूत्र ;
9730491952 / 9545840063
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