'गुरुजन मेरे ईश जगत में'
विधा: प्रार्थना गीत
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05 सितंबर 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
-0-

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गुरुजन मेरे ईश जगत में
ज्ञान गंगा के दीप जलाते।
हाथ हमारे हाथों में लेकर
स्वच्छंद अक्षरों के मोती सजाते
रंग भरने स्वर्णिम युग में
संस्कार तूलिका से रंग भरते
बेरंग पटल यह जगत अपना
सुख-दुख का मेल कराते।
बाल बच्चों का बाग बगीचा
माली बन राखण है करते
द्वेष-मत्सर जब घास बड़े
मृदु बानी से साफ करते
सच्चरित्र के कली-फूल खिलाने
आदर-अनुशासन बाड़ा है रचते।
पाठशाला बने ज्ञान के मंदिर
तन-मन अपनई जान डालते
निस्वार्थ भाव साफ चरित्र ले
बालक जगत में गीत गाते
ऋण कभी उतरे ना उनका
घने अंधियारे में साथ निभाते।
पग-पग करें गुरु स्मरण
ईश पहले धरे गुरु चरण
माँ के बिन जगत भिकारी
गुरु के बिन मन विकारी
माता बन सब गुरुजन प्यारे
ज्ञान अमृत की धार पिलाते।
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ज्ञान गंगा के दीप जलाते।
हाथ हमारे हाथों में लेकर
स्वच्छंद अक्षरों के मोती सजाते
रंग भरने स्वर्णिम युग में
संस्कार तूलिका से रंग भरते
बेरंग पटल यह जगत अपना
सुख-दुख का मेल कराते।
बाल बच्चों का बाग बगीचा
माली बन राखण है करते
द्वेष-मत्सर जब घास बड़े
मृदु बानी से साफ करते
सच्चरित्र के कली-फूल खिलाने
आदर-अनुशासन बाड़ा है रचते।
पाठशाला बने ज्ञान के मंदिर
तन-मन अपनई जान डालते
निस्वार्थ भाव साफ चरित्र ले
बालक जगत में गीत गाते
ऋण कभी उतरे ना उनका
घने अंधियारे में साथ निभाते।
पग-पग करें गुरु स्मरण
ईश पहले धरे गुरु चरण
माँ के बिन जगत भिकारी
गुरु के बिन मन विकारी
माता बन सब गुरुजन प्यारे
ज्ञान अमृत की धार पिलाते।
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मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
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