मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

■ दो वस्त्र ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'



■ दो वस्त्र 

(कविता)

मंदिर हो या मस्जिद में
सजदे सिर झुकते हैं
अजान-भजन के साज दो
एक ही ठौर पहुँचते हैं
पंडित-मौलवी दो वस्त्र मगर
एक-से ही दिल धड़कते हैं।

किसका है गुरूर हमें
हमरा क्या रखा है यहाँ
राम-अल्लाह की देन सारी
कौन जमीं और घर कहाँ
चैन-अमन की पावन भूमि
मैं-मेरा लेकर क्यों खड़कते हैं!

ईद-दिवाली नाम अलग पर
दोनों ही रखते भाईचारा है
जब तक न समझेंगे इसको
राम और अल्लाह भी हारा है
जीत-हार तुम चाहे किसकी
किसके लिए हम झगड़ते हैं!

सबमें अल्लाह-राम रहते हैं
क्यों कर न देख पाते हैं?
मेरा राम‌, मेरा मौला
नाम भेद क्यों फैलाते हैं?
क्या आकर कहा कान में
जो औरों पर भड़कते हैं।

इन्सान हो तुम इन्सान बनो
हर धरम का करम समझाते हैं
दिल में सच्ची ज्योति जले
गिता-कुराण सब बतलाते हैं,
भेदी रंग मिट जाए 'मंजिते'
सबमें तिरंगा लहू फड़कता है।
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03 मई 2022
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

संपर्क पता
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'  
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका
भिरडाचीवाडी, डाक- भुईंज,  
तहसील- वाई, जिला- सातारा महाराष्ट्र
पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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जन्मदिन पर हार्दिक धन्यवाद

जन्मदिन पर प्राप्त बधाई हेतु सादर धन्यवाद!

आप सभी सम, वयस्क, बाल साथियों को
मंजीत का सादर नमन! वंदन!
          न जाने किस मोड़ पर आप मिलें, दिल मिलें और कारवाँ बनता गया। बचपन से लेकर आज तक के सफ़र में न जाने कितने अपने मिलें, आप अपने हुए और जिंदगी सजती गई। अब तक के इस सुनहरे सफ़र में आप जैसे कुछ जल्दी मिलें, कुछ देर से मिलें; पर मिलें तथा और भी मिलते रहेंगे।
          मैं मानता हूँ कि मेरे जीवन को सँवारने में माता-पिता के से अधिक गुणी शिक्षक, मित्रगण और पुस्तकें सहायक सिद्ध हुई हैं। मुझे इस बात का खेद हमेशा रहा है कि आज तक आप सभी के ऋण से उऋण नहीं हो पाया हूँ। बस आपसे लेता ही आया हूँ; पर शायद ही एखाद प्रतिशत लौटा सका हूँ इसलिए मैं आपका क्षमाप्रार्थी हूँ। आप मुझे क्षमा अवश्य प्रदान करें। मैं आपके स्नेह, आशीर्वाद एवं दुलार का ऋणी रहना पसंद करूँगा। मेरी कोशिश यही रहेगी कि आपके पगचिह्नों पर अपना भविष्य खड़ा करूँ, आप-सा बनूँ।
          जब भी मैंने कुछ अच्छा करने का प्रयास किया है, आपने मुझे सराहा है; जिसके कारण आज यहाँ तक पहुँच पाया हूँ। समय-समय पर आपकी प्रेरणा और मार्गदर्शन बराबर मिलता रहा है। यथा समय आपने सभी प्रकार की सहायता निशंक मुझे प्रदान की है और भविष्य में भी मिलती रहेगी ऐसी आशा व्यक्त करता हूँ।
          आपके प्रति आभार व्यक्त करना मात्र औपचारिकता है, आप कभी मेरे लिए औपचारिक न थे और न रहेंगे। हमेशा आप सभी से मेरा घरेलु रिश्ता रहा है। चाहता हूँ कि इस घरेलुपन का बोझ जीवनभर वहन कर चलूँ, इसमें बढ़ौती हो, कमी नहीं।
          आपने मुझे ढ़ेरों आशीष देकर भविष्य सुंदर और समृद्ध बनाने की प्रेरणा देकर, आज का मेरा दिन मंगलमय किया है इसके प्रति कृतज्ञ हूँ। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आप जैसे साथियों का स्नेह हमेशा मिलता रहे ताकि जो शिक्षा सेवा और जनसेवा का व्रत लिया है वह अखंड पूर्ति की ओर बढ़े। आपके विश्वास का पात्र सिद्ध होऊँ।
          यदि कभी अनवधान से किसी को आहत किया हो तो अनुज, नासमझ समजकर, बड़प्पन दिखाते हुए क्षमा प्रदान करें।
          आप सभी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। आपका हृदय से आभार!!!
आपका हमसफ़र,
मच्छिंद्र बापू भिसे ‘मंजीत’
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952


■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती ■

  ■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती  ■ (पत्रलेखन) मेरे देशवासियों, सभी का अभिनंदन! सभी को अभिवादन!       आप सभी को मैं-  तू, तुम या आप कहूँ?...

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