एक पहल - सह संपादकीय आलेख
बच्चों की सोच बदल रही है
मच्छिंद्र भिसे
आजकल के अभिभावक अपनी व्यस्तता में अपनी जिम्मेदारियों से मूँह फेरे दिखाई देते हैं। जिन बच्चों के लिए वह पसीना बहाते हैं, अपनी जान दाँव पर लगाते हैं, उनकी ओर उन्हें ध्यान देने के लिए अभिभावकों के पास पर्याप्त समय नहीं है। अभिभावक बच्चे को अच्छा स्कूल, ऊँचे कपड़े, महँगे बूट, स्वादिष्ट भोजन, ट्यूशन लगाना आदि की पूर्ति को ही जिम्मेदारी समझते हैं, तो यह बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं। समय निकाल कर बच्चों की शैक्षिक प्रगति, संस्कार और अनुशासन का जायजा लेना, अभिभावकों का प्रथम कर्तव्य है। क्या यह महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं हैं? मैंने कई बार अनुभव किया है कि कुछ अभिभावक अपने बच्चे का पाठशाला में प्रवेश लेने के बाद साल में सिर्फ अंतिम परिणामों को देखने अथवा फीस भरने को ही आते हैं। बच्चा प्रगति में पीछे है, अनुशासन में नहीं है, तो वे कहते हैं, ‘हमने सभी प्रकार की फीस भर दी है, वह नियमित पाठशाला में भी आता है, फिर इसे कम अंक कैसे मिले?’ आप ही बताए कि ऐसे अभिभावकों के सवालों के जवाब देना उचित है या नहीं, यह बात मैं आप पर छोड़ देता हूँ। खैर....!
कुछ दिन पूर्व कक्षा पाँचवीं के छात्र की चित्रकला की कापी अचानक सामने आई और जिज्ञासा से देखी और हैरान रह गया। निसर्ग चित्र, मुक्त चित्र, प्राणियों के चित्र, सूर्योदय का चित्र, संकल्प चित्र आदि चित्रों की जगह बंदूकें, तलवारें, डरावने मुखौटे, गोलियों के चित्र, विशिष्ट मार्ग, ख़ून के चीथड़ों के चित्र आदि देखकर सिर चकरा गया। जब उस बच्चे से पूछा तो वह चुप रहा। उसके साथी मित्र ने कहा,“सर, वह पबजी वीडियो गेम के हथियार है।” बाप रे! क्या यह बात उसके अभिभावकों को पता होगी? आखिर उसने ऐसे चित्र क्यों निकाले? उसके पास यह सोच कहा से आई? हाल ही में पूना की एक घटना समाचार पत्र में पढ़ी। दादी माँ के द्वारा एक लड़के को विडियो गेम खेलने से मना करने पर उस लड़के ने आत्महत्या की। इसमें किसकी गलती कहेंगे?
किसी को पूछेंगे तो जवाब मिलेगा – अभिभावक क्या सो गए थे? मैं मानता हूँ कि पुरे परिवार की जिम्मेदारियों के संभालते-संभालते हरवक्त उन्हें बच्चों की और ध्यान देना मुश्किल हो जाता है परंतु कुछ तो समय निकल सकते है। महीने में तीन-चार बार अचानक बच्चों कापियों की जाँच करना, पाठशाला जाकर उसकी शैक्षिक गति और अनुशासन का हाल पूछना, उसके मित्रों की जानकारी लेना, यदि वह मोबाईल का इस्तेमाल करता हो तो कौन-से कामों के लिए करता है वह प्रत्यक्ष देखना, बस इतना भी सही तरीके से और नियमित करेंगे तो बच्चों के अनुचित कार्य पर प्रतिबंध लग जाएगा। सिर्फ यह करने से भी कुछ नहीं होगा। यदि इसमें कुछ त्रुटियाँ पाई जाए तो प्यार से समझाना भी आवश्यक है और उचित परिवर्तन न आने पर उसके साथ सख्त पेश आना भी आवश्यक है। जिस बात से हमारी पीढ़ी बर्बादी की ओर बढ़ रही है, उसका विरोध दर्शाना हम सभी का कर्तव्य है, जिसकी हम सभी को सामूहिक जिम्मेदारी भी थातनी होगी।
कभी-कभी अभिभावक बेतुकी बात करते है कि हमारा बच्चा हमारी कोई बात नहीं सुनता। आपको जो दंड देना है दीजिए लेकिन उसे सही रस्ते पर ले आइए। अब आप ही बताइए कि जो बच्चा अपने अभिभावकों की ही बात नहीं सुनता, उसके सामने अभिभावकों ने ही घुटने टेक दिए है, ऐसे बच्चों से भविष्य में कौन सी इच्छाएँ रख सकते है? उनके इस स्वभाव के कौन जिम्मेदार है? बचपन से ही आवश्यकता से अधिक बच्चों को छूट देना, जरूरतों का महत्त्व न समझकर बच्चों की जरूरतें पूरी करना, आवश्यक जमा-खर्च न सिखाना, उनके बर्ताव को नजरंदाज करना आदि कारणों वजह से बच्चे जिद्दी बन जाते है और बड़े होने पर उनकी यही आदतें अभिभावकों की परेशानी का कारण बन जाती हैं और बच्चों में अहंकारी, बेढब वृत्ति पनपने लगती है। उनके मन के अनुसार नहीं हुआ तो वे गलत रास्ता आजमाते है। यहाँ तक कि उनकी मानसिकता संयमी न होकर चंचल बन जाती है। कभी-कभी तो अपनी जान देने की धमकियाँ तक अभिभावकों को देते हैं, तो कभी आत्मुग्धता में अपने जान और परिवार का भी ख्याल नहीं करते हैं।
आज साठ प्रतिशत से भी अधिक बच्चे और अभिभावक इस समस्या के शिकार हैं। यदि हमने खतरे की घंटी को देखते हुए सही कदम नहीं उठाया तो बहुत मुश्किलें झेलनी पड़ेगी। समय पर ही बच्चों की गलत हरकतों पर प्रतिबंध लग जाए तो वे सही राह पकड़ेंगे। इसमें देरी हो गई और बच्चों को उन गलत हरकतों की आदत लग गई तो फिर उसे पटरी पर लाना बहुत ही मुश्किल है। अभिभावक बचपन से ही उन्हें सही और गलत के अंतर को बार-बार समझाए ताकि आगे जाकर गलतियों को सुधारने की नौबत न आ जाए। बच्चों को सही राह दिखने के दो ही संस्कार केंद्र हैं-परिवार और पाठशाला। परंतु आजकल अभिभावक एवं पाठशाला के बिच बच्चों को लेकर सामंजस्य कम होने लगा है और इसका फायदा बच्चे उठा रहे है। जरा सोचिए, यदि बच्चों को हम देश का उज्ज्वल भविष्य समझते है और बच्चों में सही दिशा, संस्कार, ज्ञान ही न हो तो देश का भविष्य क्या होगा। वक्त अभी गुजरा नहीं। आर्थिक धन से भी बढ़कर बालक धन बड़ा है। पैसा तो कल भी मिलेगा, परंतु गलत रास्ते पर चल पड़ा जीता-जागता धन हाथ से निकल गया तो पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।
***१२ अक्तूबर २०१९
लेखक
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
-०-