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'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

आलेख: जीवन मूल्यों के घट रहे हैं मानी

एक पहल - सह संपादकीय आलेख 
जीवन मूल्यों के घट रहे हैं मानी
लेखक: मच्छिंद्र भिसे  

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पायं,
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय।।
संत कबीर जी का यह दोहा जब भी पढ़ता हूँ, तो अपने गुरुओं का स्मरण निश्चित हो आता है। जिनके कारण आज हम अपने पैरों पर खड़े हैं। लेकिन आज के तौर-तरीके, परिवेश, तेज गति के साथ हो रहा विकास और अभिभावकों की अभिलाषाओं के कारण ऐसे दोहों की सोच ही विपरीत हुई दिखाई दे रही हैं। आज गुरुओं स्थान गौण माना जाने लगा है, जिसके चलते वे भी आज सच्चे-अच्छे गुरु बनने की प्रतीक्षा में है। आजकल विद्यार्थियों की सोच ही कुछ अजीब है। आजकल कुछ घटनाएँ कान पर आ जाती हैं। तो मन अंतस्त हिल जाता है और दिल मान बैठता है कि जीवन मूल्यों के मानी घटते जा रहे हैं।

एक दिन अध्यापक कक्षा आठवीं में छात्रों को स्वयंशिस्त, आदर, समानता, बंधुता, प्रेम, परदुखकातरता आदी जीवन मूल्यों के बारे में जानकारी दे रहे थे। वह व्याख्यान सभी बच्चों ने ध्यान से सुना। कुछ समय पश्चात कालांश ख़त्म होने की घंटी बजी। उसके बाद जो देखा और सुना वह सोच के भी परे था। घंटी बजते ही एक बच्चा खड़ा हुआ और अध्यापक जी से ऊँची आवाज में कहा, “सर! हमारा पीटी का कालांश है और हमें जाना है।” इतना कहकर सभी छात्रों में हलचल मच गई और वे छात्र अध्यापक महोदय के  समक्ष बिना पूछे; अगली सूचना मिलने से पहले ही बाहर चले गए। अध्यापक ने उस कक्षा के सबसे होशियार छात्र को वापस बुलाया और छात्रों के इस बर्ताव के बारे में पूछा। तो उसने कहा, “सर, आपने जो कहा वह सब सिर्फ सुनने के लिए अच्छा लगता है इसलिए सभी ने सूना। इसपर सोचने के लिए किसी के पास समय नहीं है।” यह सुन मैं स्वयं दंग रह गया।

जहाँ जीवन मूल्यों के पाठ पढ़ाए जाते है ऐसे स्थान पर जीवन मूल्य धरे के धरे रह जाते है। ऐसे बच्चों का भविष्य क्या होगा? समाज में अपना अस्तित्व बना पाएँगे? इसके जिम्मेदार कौन है? अभिभावक, शिक्षक या समाज? क्या इन बच्चों को बड़े होने पर सही दिशा मिलेगी? क्या यह अपने जीवन में अपने पैरों पर खड़े हो पाएंगे? सवाल तो कई हैं परंतु जवाब मिलना मुश्किल हैं। यह हमारे लिए सावधान होने की घंटी है। यदि समय के रहते बदलाव नहीं किया तो आगे जाकर बामुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

  हम भी कभी इस उम्र में से ही आगे बढ़े हैं। एक वक्त था, जब गुरूजी के सामने आँख उठाकर भी बात रखना दुरूह हो जाता था। आज एक बात निश्चित हो जाती है कि कहीं न कहीं भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों का ह्रास और अमानवीयता के मूल्य कैक्टस की तरह फ़ैल रहे हैं। हम हमारी पीढ़ी को नई दिशा देना चाहते है, तो बगैर जीवन मूल्यों के कभी भी संभव नहीं होगा। आज बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक जीवन मूल्यों के घटने का औसतन आँकड़ा साठ प्रतिशत से भी बढ़कर है। बच्चे तो घर के बड़े लोगों के आदर्श अपनाते हैं, परंतु बड़े ही लोग अपने वर्तन को सही दिशा न दे पाए; तो बच्चे भी वही पाएँगे जो उनके सामने है।

ऐसा भी नहीं है कि पूरी तरह से जीवन मूल्य घट चुके हैं। जो कुछ समाज एवं देश हित में हो रहा है वह भी जीवन मूल्यों के अनुष्ठान का ही एक हिस्सा है। परंतु तुलना में अत्यल्प है। भारत वर्ष की धरती, वह धरती है जहाँ राम-कृष्ण से आदर्श, महामानव गौतम बुद्ध-सा शांतिदूत, मुहम्मद पैगंबर साहब-सा सच्चा मौलवी, सत्य के लिए सूली पर चढ़े ईसामसीह, छत्रपति शिवाजी महाराज-सा  न्यायी, संत कबीर-सा समाजोन्मुख, महाराणा प्रताप-सा महापराक्रमी, महात्मा गाँधीजी जैसा  समाजनिष्ठ, आदि के आदर्श की गंध इस देश की मिट्ठी महकती है। जिनके आदर्श के अनुयायी बनकर कई सुरमें पैदा हुए और अपने पगचिह्न पीछे रखकर हमें भी आदर्श का पढ़ा गए हैं। आज उन्हीं आदर्शों को मिट्ठी में मिलकर अनैतिकता को उपजाऊ बनाया जा रहा है। लेकिन क्या इक्कीसवीं सदी का समाज इन महानुभावों के जीवन, आदर्श, कृतित्व एवं व्यक्तित्व के अनुसार कृतियों में दिखाई देते हैं? क्या उनके आदर्श ही आज अपनी अंतिम साँसे गिनते नजर नहीं आ रहे हैं? क्या समयानुसार मानव बदल गया है? या समय ने मनुष्य को बदलने के लिए मजबूर किया है? ऐसे न जाने कितने ही सवाल मन, मस्तिष्क और दिल में कौंध जाते हैं और संवेदनशील व्यक्ति वेदना से तर-बतर हो जाता है। ऐसे सवालों के जवाब पाने की कोशिश तो हर कोई करता है; परंतु बदलते परिवेश के साथ सुझाए उपाय सिर्फ बोलने-लिखने तक चलते है। वास्तविक परिस्थिति जैसे थे!

आज मानव समूह याने समाज तो है परंतु सामाजिकता के आभाव के साथ। मनुष्य, मनुष्य तो है परंतु मनुष्य के लिए नहीं, स्वयं की आत्ममुग्धता के लिए। इसका परिणाम यह हुआ है कि मनुष्य ने आत्मतृप्ति के लिए जीवन मूल्यों को पैरों तले कुचलना शुरू कर दिया। इसके चलते सच्चे-अच्छे इन्सान की परिभाषा ही बदल चुकी है। जिसके पास चापलूसी, बातुनी (यहाँ बातें बनाने वाला), हाँ में हाँ भरने वाला, धनवान जैसी गुणवत्ता धारक व्यक्ति सच्चा, अच्छा और महान बन जाता है और मेहनत, सच्चाई, लगन, ईमानदारी, आत्मीयता, सहकारिता, आदि जीवन के आदर्श मूल्यों पर चलने वाला इन महान लोगों के द्वारा प्रताड़ित जीवन व्यथित कर रहे हैं।

जीवन मूल्यों को आदर्श मानने वाले व्यक्ति को समाज में पिछड़ा, अनपढ़, गँवार, बेकाम और बेगार समझा जाने लगा है। आज ऐसा ही स्वनामधन्य समाज समूह आने वाली पीढ़ी के लिए आदर्श बनता जा रहा है जो मूल्यरहित है। जिसके कारण कुछ लोग ऐसी गलत राह पकड़े दिखाई देते है जहाँ से वापसी संभव नहीं है। उनकी जिंदगी ऐसी जगह जा पटक रही है जहाँ न कोई अपना है न ही कोई आदर्श।  कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि ऐसे ही चलता रहा तो भारतीय संस्कृति के आदर्श जीवन मूल्यों का क्या होगा; जिसे दुनिया अपना आदर्श मान रही है।
आज जीवन मूल्यों की गिरावट के परिणाम सामने आ रहे हैं। स्नेह का अभाव, आत्ममुग्धता, स्वार्थ, भय, हिंसा, भ्रष्टाचार, भेदभाव, आतंकवाद, पारिवारिक रिश्तों में दरारे, असुरक्षितता, आलस, कुटिलता, ठागिष्ट, बलात्कार, धर्मांधता, आदि विकृतियाँ तेजी से बढ़ती हुई नजर आती हैं। जो समाज का हित कभी साध ही न सकेगी।

समाज में एक वर्ग ऐसा भी है, जो श्रेष्ठ महानुभावों के स्वयं को अनुयायी समझते और दिखाते भी हैं। वे आज उन्हीं महानुभावों के जीवन तत्त्व, मूल्य तथा आदर्शों का भांडवल बनाकर स्वार्थ तथा सत्तालोलुप बनते जा रहे हैं। इनकी सोच और नीती इतनी निचे गीर गई है कि महानुभावों के आदर्श बताने वाले जब अपनी असलियत पर आ जाते हैं तो संवेदनशील इन्सान की संवेदनाएं काम करना बंद कर देती हैं। समाज में मूल्याधारित कर्मवीरों की भी कमी नहीं है। वास्तव में जीवन मूल्यों को अपनाने वाले हमेशा पीछे छुटते नजर आते हैं।

        आज लोगों के कथन और कर्म में एक वक्यता बहुत-ही कम दिखाई देती है। कबीर जी कहते है-
कथनी थोथी जगत में, करनी उत्तम सार,
कह कबीर करनी, उतारै सबल भवजल पार।  
हम सिर्फ बोलने बजाए; जो बोलते है वह कर्म में दिखाए तो जीवन के सभी दुखों से पार हो जाओगे। यह बात तो शतप्रतिशत सच है। परंतु जहाँ जीवन मूल्यों में गिरावट हो वहाँ कर्म के मर्म को कैसे याद रखेंगे ये । सबसे ऊँचे स्थान पर होने वाला जीवन मूल्य ‘सच’ की तो हत्या की जाती है और झूठ की आरती उतारी जाती है। सच बोलना अशिष्ट कहलाता है और झूठ बोलकर कुछ लोग शिष्ट और श्रेष्ठ बन जाते है। उनके लिए तो कर्मरत रहना अखरता है।

पारिवारिक रिश्तों में तो इतनी तब्दिली आई है कि क्या बताए! आखिर ऐसा क्या हुआ कि जहाँ रामराज्य की भाषा की जाती थी वहाँ राव और रावनों का राज्य बन पड़ा है। जहाँ पर ‘राम’ तो हैं परंतु वह ‘मरा’ (राम के उल्टा) पड़ा है। आज का राम माता-पिता की सेवार्थ वनवास नहीं करता; वनवासी (दूर रहना) बनकर माता-पिता के बोझ से छुटकारा पाता दिखाई देता है। वैसे ही आज के दशरथ अपने राम को अपनी अभिलाषा हेतु अपने से दूर करते दिखाई देता है। आज कुछ सवित्रियाँ तो दिखाई देती है परंतु जब सावित्री के जन्म की बात उठती है तो एक सावित्री ही दूसरी सावित्री की कोख में ही हत्या करती दिखाई देती है। सच में अपना देश विकास के पथ की ओर बढ़ रहा है?

फिर भी इन्हीं के बीच भी कुछ संवेदनशील समाज और समाजी अपने देश की सभ्यता, जीवन तत्त्व एवं महानुभावों के आदर्श और विचारों का प्रचार-प्रसार करते हुए आगे बढ़ाते हुए दिखाई देते हैं तो लगता है, हाँ! जीवन मूल्य अभी भी जीवित है।

आज हम सभी को गहनता से सोचना होगा। जीवन मूल्यों का बीजारोपण सबसे पहले अभिभावक होने के नाते बच्चों में करना होगा। अध्यापक होने के नाते समय-समय पर छात्रों को जीवन मूल्यों के अनुपालन एवं संवर्धन के लिए प्रेरित करना होगा। समाज का अहम घटक होने के नाते हर व्यक्ति को जहाँ जीवन मूल्यों के विपरीत वर्तन या घटनाएँ हो रही हो, वहाँ जीवन मुल्याधारित विरोध दर्शाना आवश्यक है, नहीं तो फिर एक बार घिनौना रावण राज आएगा। जिसमें विभीषण जैसे लोग कभी दिखाई नहीं देंगे। सभी अपने आपको रावण समझने लगेंगे। आखिर इसके पीछे जो हैं उन्हें समझना आवश्यक हैं। ‘आज की उपभोक्तावादी जीवन शैली’ का सबसे बड़ा प्रभाव भारतीय संस्कृति पर गिर रहा है। वह जीवन मूल्यों की जड़ों पर ही कुल्हाड़ी चला रही है। सुज्ञ समाज के लिए यह बात विनाशकारी साबित हो सकती है। आज हर कोई अपने शाश्वत जीवन मूल्यों को खोकर इस चकाचौंध दुनिया के पीछे भाग रहा। अब आगे आने वाली पीढ़ी की बारी हैं .......

सोचकर देखो! सोच से, सोच बदलती है।
-०-***
१० दिसंबर २०१९
लेखक 
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ब्लॉग:
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