बहती नित,
कल-कल गुहार
नदी की धार।
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जीवन गीत
समझाती मानव
बनाओ मीत।
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आगे बढ़ना
आगे बढ़ना
संघर्ष गीत गए
कभी न रुके।
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बाधाओं को ले
बाधाओं को ले
आत्मनिर्भर बने
जीवन गहे।
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दो है किनारे
सुख-दुःख सपने
साथ चले।
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साथ चले
एक बनकर ले
सपने बुनें।
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लहरें उठे
कहर बरसाएँ
छिपते सायें।
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मांझी है देखे
मांझी है देखे
नदी है मुस्काती
चले गा गाती।
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जीवन लक्ष्य
पाने के लिए चले
कभी न रुके।
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मिलेगा लक्ष्य
आत्मविश्वासी बने
बुनें सपने।
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रुकती गति
अस्तित्व मिट गया
ऐसी दुर्गति।
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पानी निर्मल
मन हो सभी जन
बनें पावन।
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गीत गाती वो
नदी मिले सागर
लक्ष्य पाने को।
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नदी जैसा हो
मानव में विश्वास
पाने को साँस।
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