मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

काव्य : पानी से याचना

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पानी से याचना
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मानव तुम्हें कभी समझ न पाया,
पल-पल तुम्हें बरबाद करता चला गया,
तुमने भी फिर खुद बहना ही छोड़ दिया,
फिर सूखी नदियाँ, सूखे तालाब,
और सूखे है मन के अधखिले ख्वाब.

पहाडी झील से नीचे उतरना,
कर्ण मधुर कल-कल संगीत सुनाना,
आज वही पहाडी और  झील का ताज
रो रहा निस्वर और खामोश है रूदन,
मानव के पापी करम छीने है उनके स्पंदन.

नदी जहाँ करती थी सभी को पवित्र,
आज गुहारती, करें पवित्र मेरा जलपात्र,
दम घूँट रहा है उसका और प्यासी बनी वो,
जो कभी औरों की थी प्यास बुझाती,
कैसे स्व-प्यास बुझाती या औरों को बचाती.

हे पानी, तू बिल्कुल सही कर रहा है,
बहना छोड़ आसमान में बस रहा है,
एक दिन आएगा जब मानव पछताएगा,
उस दिन लेना सारा हिसाब-किताब,
सजा देना उसको ऐसी देखे न गलत ख्वाब.

पेड़ बचेंगे दोस्त, तू भी बचेगा,
वसुंधरा में फिर से मोर नाचेगा,
झरना फिर गीत गाएगा, झूमेगी वनराई,
प्यास बुझेगी सबकी आशिष देगी भू माई,
सजाना सबका आँगन करता हूँ दुहाई.
🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹
रचना
नवकवि
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 
उपशिक्षक
मुकाम भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
(महाराष्ट्र)
चलित -
९७३०४९१९५२
९५४५८४००६३
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मन गुढीपाड़वा

मन गुढीपाड़वा

खुशियों का दिन आया,
नववर्ष त्यौहार सज-धज आया,
आँगन में रंगों के रंग निराले,
 मन भरने गुढीपाड़वा आया। 

गुढ़ी अब परवान चढ़ी,
मन में नई उमंगें बढ़ी,
जीवन स्तंभ बने कर्म,
गुढीपाड़वा गुनगुनाते आया। 

मन का कटु नीम मिटे,
प्रेम गुड़ से प्यार जुटे,
रिश्तों की माला बुने आज,
प्रेम-स्नेह का बंध ले आया। 


आस्था, विश्वास, प्रेम से,
नववर्ष रंग भरने आया,
रवी समान प्रकाशित हो जीवन,
पावनपर्व की कामनाएँ ले आया। 

सफलता के दीप उजाले से,
सुबह का दूत भी शरमाए,
दस-दिशाओं में फहरे पताका,
कामना ऐसी गुढीपाड़वा ले आया।  
रचना
नवकवि
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 

उपशिक्षक 
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी। 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
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मन की संवेदनाहीनता

मन की संवेदनाहीनता
दुनिया की खो रही मानवता देख,
खुद को उनकी गर्दिश में,
संवेदनाहीन पाया ।

हाथ में कटोरा,
कपड़े की चिथड़न ओढ़े,
एक रोटी गुहार की उसने,
चेहरे भाव मिलेगा कुछ-न-कुछ, पर
मैं खुद की रोटी की तलीश में,
दानत्व भाव को संवेदनाहीन पाया ।

राह दो राह रोटी पाने,
आया लोगों की भीड़ में,
टकराव तो होना ही था,
किसी को लाठी मिली तो,
सह रहा था कोई गाली,
ना कर पाया बोझ हलका उनका,
खुद दर्द न बाँट पा सका,
जैसे अपने हाथ को मैंने संवेदनाहीन पाया ।

अब दफ्तर हो या घर,
हो रहा बँटवारा पहर-दोपहर,
कैसे सँवारे जिंदगी आप -अपनों की,
चाहता यह दरार मिटे, पर
मन की दरारों को मिटाने,
अपने - आप को अपाहिज बना हुआ पाया ।
रचना
नवकवि
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 

उपशिक्षक 
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी। 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
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हाइकु : नारी विश्व

        आज विश्व की महिलाओं ने ऊँचे मक़ाम हासिल किए हैं. घर चलाने से लेकर देश चलनेवाली कई महिलाएँ अपना योगदान दे रही हैं. आज महिलाओं के लिए कोई क्षेत्र अछूता नहीं रहा. बस हमारी सोच बदलनी चाहिए. सिर्फ पुरुष वर्ग ही नहीं महिला वर्ग की भी सोच बदलनी होंगी. आज सिर्फ पुरुषप्रधान परिवार पद्धति न होकर महिला प्रधान की हो चुकी है. बस एक कदम आगे बढाए और महिलाओं को सम्मान एवं संबल देकर आसमान को छूने की प्रेरणा दीजिए. यह बात सिर्फ दूसरी नारियों के सम्मान की नहीं हैं अपने घर में होने वाली नारियों के साथ भी आत्मीयता का व्यवहार नियमित करेंगे तभी सही मायने में महिलाओं का सम्मान होगा. यह बात सिर्फ महिला दिवस के अवसर पर न होकर हर दिन हो तो समय बदलने में देर नहीं लगेगी.

 आदरणीय महिलाओं के लिए कुछ हाइकु की पंक्तियाँ 
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नारी सम्मान,
कीजिए सभी जन,
जी हो पावन। 
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जीवन धरा,
नारी बिन पुरूष,
रहे अधूरा। 
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माँ की ममता,
आँचल में निश्चिंत,
मधु घोलता। 
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प्यारी बहना,
राखी कलाई सजे,
पीड़न तजे। 
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पत्नी का साथ,
जीवन का रीवाज,
बनता साज। 
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भाभी चंचल,
सुख अपार जैसे,
माँ का आँचल। 
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सखी सहेली,
जीवन अठखेलिया,
गाँव की गली। 
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प्यारी भौजाई,
परिवार की प्यारी,
मेरी दुलारी। 
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आधार वो ही। 
ताई जी सरकार,
बाँटती प्यार। 
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मौसी का घर,
माँ-सा मिलता प्यार,
ना तकरार। 
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मामी का गाँव,
छुट्टियों में सबका,
रहता ठाँव। 
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बुआ दे मेवा,
आए बरसों बाद,
ना अवसाद। 
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नानी सुनाती,   
नित नई कहानी ,
लागे सुहानी। 
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दादी की गोदी,
सुख-दुख बाँटती,
मंद मुस्काती। 
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ननद मेरी,
सखी बनी नवेली,
मिश्री की डली। 
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हाइकु रचनाकार 
नवकवि 

श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 

उपशिक्षक 
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी। 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३

खामोश रिश्तों की उम्मीदें

खामोश रिश्तों की उम्मीदें

सपने क्यों सजाता है कोई बताए सरकार,
खामोशी के दिन कभी हुए न साकार,
सपना खामोशी की तरह निशब्द रह गया,
बेजुबान होकर बहुत कुछ कह गया,
आज मिलेंगे स्वर निशब्द लब्ज को,
खामोशी में उम्मीदें झप्पी दे गया कोई। 

क्यों हृद पीर ने किया न सोच विचार,
सोच-से आज मन मचलता बार-बार,
जिंदगी तो बस गुजर रही है खामोशी में,
जिंदगी जीने की चाह के तलाश में,
जी सकेंगे उन हसीन बीते पलों की याद में ,
निशब्द लब्जों को स्वर दे गया कोई। 

पता नहीं खामोशी को सूर मिलेंगे या नहीं,
हृदय पीर मिटेगी या छूटेगी साँस डोर सारी,
आस है आँख में ईश्वर मिटे न मिटे हृदय पीर,
दूरी रिश्तों की मीटे भले सुखे आँख नीर,
तलाश है अब रिश्तों की साँस बनें थे कभी,
साँस में जान फँक दे गया कोई। 

स्वीकार लो हमारा स्नेह और अपनापन,
मन ना करें छोटा दिखाओ बड़प्पन,
रिश्तें कुछ नहीं माँगा करते चाहते अपनापन,
अपनापन मिलें तो जिंदगी फिर बसेगी,
जीवन अरमान के चमन में कलियाँ खिलेगी,
रिश्तें औ' जीवन में अमृत घोल गया कोई।
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रचना
नवकवि
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 

उपशिक्षक 
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी। 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
प्रकाशनार्थ 
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हाइकु : ईमान बनाम बेईमानी - मच्छिंद्र बापू भिसे


           मनुष्य जीवन बहुत सुंदर हैं। जब तक उसके जीवन में सच्चाई, ईमानदारी, परिश्रमी वृत्ति, लगन, परदुख कातरता, मनन, आत्मनिर्भरता आदि गुण जब तक हैं, तब तक उसका जीवन खिले फूल की तरह खुशबू बिखरेगा। मनुष्य हमेशा ऐसा ही जीवन चाहेगा परंतु हर पल आपके मनचाहा समय नहीं आएगा। जीवन में कमी और अधिकता हमेशा सताएगी। ऐसे अवसर पर मनुष्य अपना आपा खो बैठ जाता हैं और गलत रास्ता इख्तियार कर लेता हैं। अपने जीवन का बंटाधार स्वयं अपने हाथों से कर लेता हैं। मनुष्य गुणों में ऐसे ही दो गुण हैं 'सच्चाई और ईमानदारी।' जब तक आपके साथ हैं आपको ऊँची कगार पर रखेगी और एक बार आप फिसल गए तो समुंदर की गहरी खाई में गिर पड़ेंगे, जहाँ से अपने आपको फिर पहले जैसा तैयार करना बहुत मुश्किल हैं।
                यदि मनुष्य के ऊपर बेईमानी और अविचार हावी हो जाता है, तो उसकी अच्छाई के सभी गुण लाचार हो जाते हैं। परंतु मनुष्य अपने अच्छे गुणों से बुराई पर जीत हासिल कर ही लेता हैं। यही बात आपके सामने हिंदी की प्रसिद्ध विधा हाइकु के माध्यम से रखने की कोशिश कर रहा हूँ। आशा हैं आपको पसंद आएगी।
हाइकु : ईमान बनाम बेईमानी 
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भ्रष्ट आचार,
मरें सच्चाई और,
सत्य विचार। 
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सत्य विचार,
सच्चाई औ' अच्छाई 
मारे विकार। 
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हो बेईमान,
क्या कमा पाएँगे वे,
मान-सम्मान ? 
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मान सम्मान,
वे ही कमा पाएंगे,
बने इंसान।  
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ईमानी हवा,
बेईमानी सामने,
माँगती दुवाँ। 
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माँगू मैं दुवाँ,
बेईमानी की हार,
हो निर्विकार।  
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ईमान देखे,
खुले आम बाजार,
खुल्ले में बीके।  
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बाजार बंद,
बेईमानी को आज,
सच्चाई गंध। 
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पाता लाचारी,
जब ईमान बनें,
भ्रष्ट विचारी। 
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एकता बल ,
देख बुराई काँपे,
मिलें संबल। 

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झूठे हैं सब,
बेईमानी को देख,
झूके हैं रब। 
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ईश  हो मन,
न रब झुके ऐसा,
बहे पवन। 
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शिष्ट ईमान,
दबोच हैं ज़माने,
धन कमाने। 
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धन है मिटटी,
बिना सच्चाई पाए,
वक्त बताए। 
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ले बेईमानी,
वे मस्त-अलमस्त,
करें नादानी। 
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नादानी मन,
सच्चाई देख-देख,
पिघले तन। 
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ईमान जागे,
बेईमानी झपटी,
नौंचते भागे। 
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सच सुचाल,
देख के बेईमानी 
करें बवाल  
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ईमानी दिल,
भ्रष्ट्राचार के आगे,
कभी न खिल। 
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बनें निडर,
सच्चाई हो साथ में 
काहें का डर। 
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ईमान डरा,
बेईमान सामने,
मन भी हारा। 
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हारें क्यों मन,
जलाएँ बेईमानी,
ब्रह्म है तन। 
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इमानें रोटी,
बेईमानी के रास्ते,
मुँह से छूटी। 
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ईमान पले,
मनुष्य निवास की,
बुराई जले। 
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मुँह से नहीं,
एक न होगी बात,
न ही सौगात। 
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ईमान साथ,
अनगिनत काँटे,
देते सौगात।   

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हाइकु रचनाकार 
नवकवि 
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 

उपशिक्षक 
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी। 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३

शिशु के प्रति सूझ-बुझ

    
            ''चाचा जी, पाठशाला की कविताओं का पठन न हुआ देखकर मुझे माँ ने बहुत डाँटा बल्कि एक कविता तो सुनाई भी। क्या आप सुनना चाहेंगे?" शिशुवर्ग में पढ़ रहे विशाल रुआँसा होकर अपनी माँ की शिकायत कर रहा था। उसकी झुँझलाहट समझ पाया और भाभी के प्रति गुस्सा भी आया। भाभी का डाँटना आज के समय एवं आधुनिकता के माहौल के अनुसार सही भी होगा। परंतु शिशुवर्ग में पढ़नेवाला विशाल इन बातों को से क्या लेना-देना वह अभी नहीं समझेगा? मनोविज्ञान एवं उसके बर्ताव से साबित हो रहा था कि उस अबोध बालक को समय एवं आधुनिकता की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वो खेलने में जूट गया। हाँ, कुछ समय के लिए मैं भी दुविधा में रहा कि किसके पक्ष में अपनी बात रखे, भाभी के या विशाल के। विशाल बड़ा प्यारा और तोतले बोल बोलनेवाला एवं आयु के अनुसार खेलकूद जैसी बचपना हरकतों में जीनेवाला मस्त परंतु समझदार बालक है, उससे दो मीठी बातें करेंगे तो फिर से भला-चंगा हो जाएगा। भाभी भी पढ़ी-लिखी और शिक्षित हैं, उन्हें भी समझा देंगे तो बात को स्वीकार भी लेगी। 
              यह कहानी सिर्फ विशाल और भाभी की ही नहीं है यह तो आज-कल हर घर में घटती हुई नजर आती है। ऐसी घटनाओं का अबोध बालक के दिल, दिमाग और स्वास्थ्य पर क्या असर होता होगा, इन बातों से बहुत-से अभिभावक अनभिज्ञ हैं। और होंगे भी क्यों नहीं ? दिनभर दोनों भी नौकरी या व्यवसाय की वजह से बच्चों से अलग होकर घर गृहस्ती चलाते है। शाम ढलते ही दिनभर की भागदौड़, थकान साथ ही दफ्तर की अतिरिक्त जिम्मेदारियों के बोझ लेकर घर आते हैं। फिर बच्चों से साथ सुसंवाद करने को समय ही कहाँ बचता हैं ? वे जो भी करते हैं अपने बच्चों के लिएकरते हैं, तो क्या बच्चों से थोड़ी-सी उम्मीद भी नहीं रख सकते ? बिल्कुल रख सकते है और बच्चों को भी अपने माता-पिता की ये छोटी-छोटी इच्छाएँ पूर्ण करने में हर्ज नहीं होना चाहिए। अभिभावक बच्चों को बार-बार न टोके और न अधिक उम्मीद रखें ताकि बच्चे बोझ समझे। ऐसा व्यवहार न ही करें तो अच्छा हैं। खिलखिलाते माहौल में बालकों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें। मिलनसार व्यवहार से तृटियों को छूते हुए उनके आदर्श, मार्गदर्शक एवं दिशादर्शक बने ना कि बारंबार उनकी गलतियाँ दर्शाएँ। बच्चों में आत्मविश्वास भरने का काम हम करें और उसे उड़ने दें। भागमभाग भरी जिंदगी में बच्चों की प्रिय परीकथाएँ, पशुपक्षियों की कहानियाँ समय के साथ लुप्तप्राय हो रही हैं, तो बच्चे कैसे सुनेंगे? अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाएँ। 
               शिक्षित एवं अशिक्षित अभिभावकों ने अपनी अभिलाषा पूर्ति के लिए जहाँ बच्चों के खेलने, स्व-विचार करने, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास के समय में ही पीठ पर बस्ते का बोझ लदकर बच्चों के मन को अपाहिज बनाने की होड़ ही लगाईं हैं ऐसी हालत में बढ़ती उम्र के साथ क्या वह बच्चा समायोजन कैसे कर पाएगा? जहाँ परिजन बच्चों में अपनी अपेक्षाओं की पूर्ति के स्वप्न देखते हैं वहाँ बच्चे मुक्त बचपन के सपने देखने की दृष्टि निर्माण होने से पहले ही खो रहे हैं। आज समाज का हर तीसरा बालक इस सोच का शिकार बनता जा रहा है। बच्चा जैसे ही तीन साल का हो जाता है तो आंगनवाड़ी में भेज दिया जाता हैं। आंगनवाड़ी का सही अर्थ और उद्देश्य ही हमारे अभिभावक और शिक्षा संस्थाएँ भूलते हुए नजर आ रहे हैं। आंगनवाड़ी एक ऐसा स्थल हैं जहाँ बच्चे बंधनमुक्त होकर मनचाहा खेलें-कूदें, गिरे-संभले, मिटटी से मटमैले बने, हँसे-गाएँ, स्व-अनुभव से सीखे आदि गातीधियाँ कर सकते हैं। परंतु इन्हीं आंगनवाड़ियों में इन क्रियाकलापों को नियम, बस्ते एवं अपेक्षाओं में कैद कर हर बच्चा इनका बोझ ढो रहा हैं। पता नहीं कब यह छूटेंगे,और जब छूटेंगे तब शायद देर हुई होंगी। 
               बचपन अलमस्त होता हैं। असमय उठना, खाना, खेलना, सीखना आदि क्रियाएँ मनमौजी की तरह करने की एक उम्र होती है। परंतु सुबह जब आठ-नौ बजे पाठशाला की गाड़ी आकर खड़ी होती हैं, तो बच्चे पर क्या बीतती होगी। खैर वो ईश्वर जाने। अधूरी नींद, जल्दी-जल्दी नहा-धोकर तैयार होना और नाश्ता किया तो किया नहीं तो वैसे ही शिशुवर्ग में पहुँचता है। कभी-कभी अधूरी नींद गाड़ी में या अपनी कक्षा में पूरी कर लेता है, ऐसी मनस्थिति में कैसे विकास हो पाएगा, यह भी एक सवाल ही है। भोजन की भी वहीँ अवस्था और व्यवस्था होती हैं। कुछ पाठशालाओं में शिशुवर्ग से लेकर प्राथमिक पाठशाला में मध्याह्न भोजन की व्यवस्था की जाती है। यह एक प्रशंसनीय उपक्रम चलाया जा रहा हैं। जिसकी पूरी जिम्मेदारी आंगनवाड़ी सेविकाएँ निष्ठा से निभा रही हैं। मेरी तो इसके संबंधी ऐसी सोच और राय भी है कि शिशुवर्ग के बच्चे पाठशाला में आते वक्त साथ में कुछ भी ना लाए। एक बात और है। शिशुवर्ग के बच्चों के लिए गृहकार्य एवं स्वाध्यायों की परिपाठी ना हो, यदि स्वाध्याय अथवा गृहकार्य देकर पाठशाला के समय में ही अच्छे माहौल में पूरा कराएँगे, तो बच्चे सभी बच्चों के साथ मिलकर ख़ुशी-ख़ुशी करेंगे और घर जाकर निश्चिंत रहेंगे। मैं तो चाहूँगा कि बच्चों के भोजन, खेल-कूद और अध्ययन, आदि अन्य गतिविधियों का प्रबंध पाठशाला में ही किया जाए तो, बच्चे हर्षोल्लास के साथ पाठशाला आपनाएँगे। बच्चों को डाँट-फटकार से तो परे ही रखें। बच्चे गलतियाँ करेंगे, उन गलतियों को बड़ी सावधानी और प्यार भरी बातों में समझाकर सही वर्तन परिवर्तन लाने की कोशिश करें , बदलाव कभी थोपें नहीं। 
            कुछ बच्चों को पाठशाला अच्छी लगती हैं, तो कुछ बच्चे पाठशाला से अच्छा घर में ही रहना पसंद करते हैं। इसका मतलब यही होगा कि पाठशाला और घर के माहौल में अंतर हैं। यह अंतर मिटाकर पाठशाला के अभिभावक (शिक्षक) और घर के अभिभावक (परिजन) अपने-अपने स्थानों के माहौल में सकारात्मक सोच से बदलाव लाने की कोशिश करें। बच्चों के सामने हो रही बातचीत एवं व्यवहार में भी सावधानी बरतना आवश्यक हैं, बच्चे आपका अनुकरण, अनुसरण करते हैं, इनकी और भी अनदेखा ना करें। 
               अंतिम बात बच्चे समय के अनुसार सबकुछ हासिल करेंगे। थोड़ा-सा धीरज बँधे और बच्चों के साथ हो सके तो बच्चों-सा ही बर्ताव करें, बच्चे ही बने रहें। अपना बचपन फिर से उनके साथ अनुभव करें, जो कभी हमने खोया था। संक्षेप में बस इतना ही कहूँगा कि बच्चों को अच्छी तरह से समझो और उनको संस्कारों के पंख, आत्मविश्वास की सकारात्मक दृष्टि और कर्मवादिता का लक्ष्य देखर जीवन समुंदर रूपी समुंदर में छोड़ दीजिए ताकि खुद अपनी जीवन नैया पार लगाए। उसकी चिंता ना करें। शुभंभवतु !!!!

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आलेख लेखन 

श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 

उपशिक्षक 
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी। 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३

होली के सप्तरंग

💐🌹होली के सप्तरंग 🌹💐

खुशी के इंद्रधनुष के,
सप्तरंग ले आईं होली,
बसंत में भी रंगारंग,
सजे मनरंग दिवाली। 

रंग जामुनी सपने सजे,
खिले तन-मन कली,
रंग लै केसरिया मनभावन,
उँडेल दे मन की गली। 

शालिनता लाए रंग नारंगी,
प्यार भर-भर लाए झोली,
पीले के हैं रूप निराले,
मधुर आम-सी मधुरता लाई। 

समृद्धि का प्रतिक रंग हरा,
जीवन में फैले नीत हरियाली,
धीरता-वीरता लाए नील रंग,
बुने सबसे प्रीत निराली।

सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की,
बैंगनी दे रहा मीठी-मीठी गोली.
भारत भू की धरा में,
खिली आज परंपरा की कली। 

इंद्रधनुष के सप्तरंग से,
बने सब पावन जले ऐसी होली। 
🌹💐🌹💐🌹💐
🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹
रचना 
नवकवि
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 

उपशिक्षक 
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी। 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
प्रकाशनार्थ 
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होली के पावन पर्व की मेरे सभी जेष्ठ, कनिष्ठ, हमउम्र- स्नेही, हितैषि, प्रियजन, परिजनों को ढेर सारी मंगलकामनाएँ
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■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती ■

  ■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती  ■ (पत्रलेखन) मेरे देशवासियों, सभी का अभिनंदन! सभी को अभिवादन!       आप सभी को मैं-  तू, तुम या आप कहूँ?...

आपकी भेट संख्या