(कविता)
पौध सारे बच्चे हमारे
ज्ञानमंदीर जब आएँगे
कलरव होगा, कृन्दन होगा
रोना-धोना समझाएँगे
स्नेह रिश्ता ऐसा जोडू
प्रीत से उपजाऊ मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
सदाचार की टहनी और
कोंपल उगें विनायता के
प्यारी बोली के रोए आएँगे
प्रेम के गीत भौरे गाएँगे
आत्मविश्वास की कैची से
इर्ष्या-द्वेष-दंभ छाटू मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
एक दिन कलियाँ चटकेगी
खुशबू चारों और फैलाएगी
बगियाँ में फिर पौध आएँगे
खुशियों का दामन भर जाएँगे
हर पौध को आकर देकर
जीवन को साकार कर पाऊँ मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
-०-
-०-
२३ फरवरी २०२०
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
-०-
(कविता)
सृष्टि के निर्माता को वंदन हमारा
स्वीकार हो एक अनुनय प्यारा,
चाहत छोटी-सी है अपनी
बनें एक-दूजे का हम ही सहारा ।
बनें विशाल तन के कंकड़ हम,
हिमालयी चमकते ‘शूल’ बनों तुम।
बनें अथाह जलनिधि की बूंदें हम,
गरजती-इतराती ‘लहरें’ बनों तुम।
बनें उठती धूल के एक-एक रज हम,
अंगार बरसे तूफानी ‘बयार’ बनों तुम।
बनें मिट्टी में ख़ुद समेटे जड़ें हम,
खुशबू बिखराए वो ‘फूल’ बनों तुम।
बनें मंडराते हल्के बादल हम,
असीम पथ ‘आसमान’ बनों तुम।
बनें धूप की हल्की-तेज किरण हम,
दे दुनिया को चमक ‘सूरज’ बनों तुम।
बनें शमशानी उठती लौ-राख हम,
जिंदगी को जिए हर ‘साँस’ बनो तुम।
माँगा तो क्या माँगा!
खिल्ली उडाएँगे फिर सभी,
दीन अरज पर हँसोगे तुम
हम निराश न होंगे कभी।
बने हैं एकत्व को हम और तुम,
न्योच्छावर जीवन तुमपर सभी ।
समझकर देखो बात को,
'श्वर' हैं हम और 'क्षर' हो तुम।
-०-
२३ फरवरी २०२०
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
-०-

-०-

●गगन को हम नापा करें ●
(कविता)
चाहत हो बन पथिक
मील के पत्थर बन बैठा करें,
बुलंद हो हौसले और
भुजाओं में बल इतना भरे
गगन को भी हम नापा करें।
रोकेगा कौन तुम्हें
जब श्वास-विश्वास ले पंख पसारे,
होंगे ऊँचे पहाड़ नत हर पल
मेहनत से जीवन में रंग भरे
हिम्मत अपनी कभी न हारे।
चल पड़े मंजिल की ओर
होंगे काँटे ही काँटों की तारें,
रुकें न कदम तेरे कभी
सभी जय-जयकार करे
तुझपर कभी जो जलाते थे सारे ।
पथ न छूटे कभी अपना
मिलें छल-कपट के बाड़े,
मिलेंगे रोकने वाले भी रोड़े
पर शूल भी फूल बनेंगे सारे
बिछेगी पथ पर तेरे प्रसून बहारें।
साथ अपनों का भी छूटेगा
फिर भी मन कष्ट न करे,
वक्त-पाँसा जब भी गिरे उल्टा
इतने बुलंद हौसले करें
वक्त भी हमारे यहाँ झूक पानी भरे।
हो भुजाओं में बल इतना
गगन को भी हम नापा करें।
-०-
२३ फरवरी २०२०
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
-०-
●महँगाई आ गई●
(कविता)
जब भी कोई सस्ती चीज
चढ़े भाव में बिकती है
महँगाई आ गई देखो
सारी दुनिया यह कहती है।
चीजें जब थीं सस्ती मिलतीं
कोई न था उनका संगी-साथी
हल्के भाव जब थीं बिकती
किसी की नजरें न थीं तकती
बेचारी, किसी कोने में थीं सड़ती
कभी आहे भरती खुद थीं मिटती
चीजों ने जब अपना दम तोड़ा है
महँगाई ने उनसे रिश्ता जोड़ा है
सस्ताई ने जब चीजों को मारा
वक्त ने दिया महँगाई का नारा
वहीं हल्के भाव की चीजें
जब भी महँगी बिकती हैं
महंगाई आ गई देखो
सारी दुनिया यह कहती है।
सस्ती चीजे देख के
मन में लाए खोट है
बिक जाए वह महँगी
देती सबको चोट है
कैसे खुद को बेचे
हर चीज मन में सोचे
दाम बड़े तो महँगी कहते
गिर जाए तो बुराई करते
लोगों की सोच जब-जब गिरी
दुनिया दिखी महँगाई से भरी
आखिर महँगाई किसकी है भाई!
‘सोच की या चीजों की’
चद्दर देखकर ही पाँव पसारे
न हो अपने नाप की
अपना दिल कभी न हारे
याद रखना
कितनी भी ही सस्ताई या महँगाई
दोनों भी पसीना बहलाती है
पर कभी किसीने देखा है
यह किसीको भूखे पेट सुलाती है?
-०-
१३ दिसंबर २०१९
● मच्छिंद्र भिसे● ©®
पौध सारे बच्चे हमारे
ज्ञानमंदीर जब आएँगे
कलरव होगा, कृन्दन होगा
रोना-धोना समझाएँगे
स्नेह रिश्ता ऐसा जोडू
प्रीत से उपजाऊ मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
सदाचार की टहनी और
कोंपल उगें विनायता के
प्यारी बोली के रोए आएँगे
प्रेम के गीत भौरे गाएँगे
आत्मविश्वास की कैची से
इर्ष्या-द्वेष-दंभ छाटू मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
एक दिन कलियाँ चटकेगी
खुशबू चारों और फैलाएगी
बगियाँ में फिर पौध आएँगे
खुशियों का दामन भर जाएँगे
हर पौध को आकर देकर
जीवन को साकार कर पाऊँ मैं
वह माली बन जाऊँ मैं!
-०-
-०-
२३ फरवरी २०२०
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
-०-
-०-
सृष्टि के निर्माता को वंदन हमारा
स्वीकार हो एक अनुनय प्यारा,
चाहत छोटी-सी है अपनी
बनें एक-दूजे का हम ही सहारा ।
बनें विशाल तन के कंकड़ हम,
हिमालयी चमकते ‘शूल’ बनों तुम।
बनें अथाह जलनिधि की बूंदें हम,
गरजती-इतराती ‘लहरें’ बनों तुम।
बनें उठती धूल के एक-एक रज हम,
अंगार बरसे तूफानी ‘बयार’ बनों तुम।
बनें मिट्टी में ख़ुद समेटे जड़ें हम,
खुशबू बिखराए वो ‘फूल’ बनों तुम।
बनें मंडराते हल्के बादल हम,
असीम पथ ‘आसमान’ बनों तुम।
बनें धूप की हल्की-तेज किरण हम,
दे दुनिया को चमक ‘सूरज’ बनों तुम।
बनें शमशानी उठती लौ-राख हम,
जिंदगी को जिए हर ‘साँस’ बनो तुम।
माँगा तो क्या माँगा!
खिल्ली उडाएँगे फिर सभी,
दीन अरज पर हँसोगे तुम
हम निराश न होंगे कभी।
बने हैं एकत्व को हम और तुम,
न्योच्छावर जीवन तुमपर सभी ।
समझकर देखो बात को,
'श्वर' हैं हम और 'क्षर' हो तुम।
-०-
२३ फरवरी २०२०
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
-०-

-०-

●गगन को हम नापा करें ●
(कविता)
चाहत हो बन पथिक
मील के पत्थर बन बैठा करें,
बुलंद हो हौसले और
भुजाओं में बल इतना भरे
गगन को भी हम नापा करें।
रोकेगा कौन तुम्हें
जब श्वास-विश्वास ले पंख पसारे,
होंगे ऊँचे पहाड़ नत हर पल
मेहनत से जीवन में रंग भरे
हिम्मत अपनी कभी न हारे।
चल पड़े मंजिल की ओर
होंगे काँटे ही काँटों की तारें,
रुकें न कदम तेरे कभी
सभी जय-जयकार करे
तुझपर कभी जो जलाते थे सारे ।
पथ न छूटे कभी अपना
मिलें छल-कपट के बाड़े,
मिलेंगे रोकने वाले भी रोड़े
पर शूल भी फूल बनेंगे सारे
बिछेगी पथ पर तेरे प्रसून बहारें।
साथ अपनों का भी छूटेगा
फिर भी मन कष्ट न करे,
वक्त-पाँसा जब भी गिरे उल्टा
इतने बुलंद हौसले करें
वक्त भी हमारे यहाँ झूक पानी भरे।
हो भुजाओं में बल इतना
गगन को भी हम नापा करें।
-०-
२३ फरवरी २०२०
● मच्छिंद्र भिसे ●
(अध्यापक-कवि-संपादक)
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
-०-
●महँगाई आ गई●
(कविता)
जब भी कोई सस्ती चीज
चढ़े भाव में बिकती है
महँगाई आ गई देखो
सारी दुनिया यह कहती है।
चीजें जब थीं सस्ती मिलतीं
कोई न था उनका संगी-साथी
हल्के भाव जब थीं बिकती
किसी की नजरें न थीं तकती
बेचारी, किसी कोने में थीं सड़ती
कभी आहे भरती खुद थीं मिटती
चीजों ने जब अपना दम तोड़ा है
महँगाई ने उनसे रिश्ता जोड़ा है
सस्ताई ने जब चीजों को मारा
वक्त ने दिया महँगाई का नारा
वहीं हल्के भाव की चीजें
जब भी महँगी बिकती हैं
महंगाई आ गई देखो
सारी दुनिया यह कहती है।
सस्ती चीजे देख के
मन में लाए खोट है
बिक जाए वह महँगी
देती सबको चोट है
कैसे खुद को बेचे
हर चीज मन में सोचे
दाम बड़े तो महँगी कहते
गिर जाए तो बुराई करते
लोगों की सोच जब-जब गिरी
दुनिया दिखी महँगाई से भरी
आखिर महँगाई किसकी है भाई!
‘सोच की या चीजों की’
चद्दर देखकर ही पाँव पसारे
न हो अपने नाप की
अपना दिल कभी न हारे
याद रखना
कितनी भी ही सस्ताई या महँगाई
दोनों भी पसीना बहलाती है
पर कभी किसीने देखा है
यह किसीको भूखे पेट सुलाती है?
-०-
१३ दिसंबर २०१९
● मच्छिंद्र भिसे● ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
-------////// --------
भिराडाचीवाडी, तहसील वाई,
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415515
मोबाइल: 9730491952
●कविता ●
बच्चे हमारे जान से प्यारे
बन जाए वे आँखों के तारे
नाम करें न रोशन अपना
बस! न उजाड़े घरौंदा सपना
इतने तो उसमें संस्कार भरे।
बदल रही है दुनिया
बदल रहा है परिवेश,
चकाचौंध रंग देख बच्चे
खो रहे सभ्यता के वेश
उनमें उद्वेग नहीं स्नेह संवेग भरे
आत्मियता की उनसे चार बातें करें।
कटुता आए वाणी में उसके
वाणी के व्यापार के बाण चलाए
बदलाव देखें चाल-चलन में
सत्य-असत्य का भेद बताए
नासमझी की जब वे बात करें
समझदारी की उनसे चार बातें करें।
जिनके लिए जी लेते हो
बहाते हो दिन-रात पसीना
कहे गर वह कौन हो तुम?
छलनी-छलनी हो जाएगा सीना
कान ऐंठे समय पर उसके
आप एहसास की उनसे चार बाते करें।
नाम करें न रोशन अपना
बस! न उजाड़े घरौंदा सपना
इतने तो उसमें संस्कार भरे।
बदल रही है दुनिया
बदल रहा है परिवेश,
चकाचौंध रंग देख बच्चे
खो रहे सभ्यता के वेश
उनमें उद्वेग नहीं स्नेह संवेग भरे
आत्मियता की उनसे चार बातें करें।
कटुता आए वाणी में उसके
वाणी के व्यापार के बाण चलाए
बदलाव देखें चाल-चलन में
सत्य-असत्य का भेद बताए
नासमझी की जब वे बात करें
समझदारी की उनसे चार बातें करें।
जिनके लिए जी लेते हो
बहाते हो दिन-रात पसीना
कहे गर वह कौन हो तुम?
छलनी-छलनी हो जाएगा सीना
कान ऐंठे समय पर उसके
आप एहसास की उनसे चार बाते करें।
-0-
10 दिसंबर 2019
● मच्छिंद्र भिसे● ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
-------////// --------
भिराडाचीवाडी, तहसील वाई,
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415515
मोबाइल: 9730491952
बाल ग़ज़ल
●सम्मान●
जीवन अपना सरल हो बच्चों, देते रहना सभी को सम्मान,
मान रखिए छोटे–बड़ों का, इसमें आप का भी हो सम्मान।
माता-पिता ने जनम दिया हमें, करना न कभी व्यर्थ अभिमान,
अच्छे कर्म करते रहना, नित जन्मदाता का भी हो सम्मान।
पसीना बहा अनाज उगाते, व्यर्थ गँवा बनो न नादान,
हर निवाला करना स्वीकार, अन्नदाता का भी हो सम्मान।
दिन-रात का हिसाब न रखें, हथेली पर रखते देते जान,
वतन ही जिन्हें जान से प्यारा, उन वीरों का भी हो सम्मान।
प्यारी अपनी भारत माता, जिसकी गोद में देखा जहान,
हम भारतीय धर्म हो अपना, संविधान का भी हो सम्मान।
निज जीवन हौसला भरें, चाहे कितने भी आए तूफान,
कर्म राह पर आगे बढ़ना, सबके कर्मों का भी हो सम्मान।
प्यारे बच्चों इन्सान हैं हम, जोड़ते रहे इन्सान से इन्सान,
सोच हमेशा साफ़ रखना, दिल से एकता का भी हो सम्मान।
-०-
* इस ग़ज़ल के हर मिस्रा (पंक्ति) में 33 मात्राएँ हैं.
27 नवंबर 2019
ग़ज़ल रचनाकार
● मच्छिंद्र भिसे● ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
-------////// --------
भिराडाचीवाडी, तहसील वाई,
सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415515
मोबाइल: 9730491952
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