मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"
🌹संस्कार घरौंदा🌹

सोच के घरौंदे आज उजड़ रहे हैं,
जो विकारों की छत से सजे हैं,
आज छत विकारों से बीमार,
करना चाहते हैं संस्कारों का प्रचार,
खुद उड़ने लगे हैं,
ढूँढने सुसंस्कारों  के विकार।

क्या मिल पाएँगे वह संस्कार,
जो कभी घरों को सजाया करते थे,
जो आज घरों में तो हैं पर
बाहर निकलते ही उनका दम घोंटा जाता हैं,
वह भी तो आज खुद,
खून के आँसू बहाएँ,
अपने अस्तित्व को ढूँढ़ा करते हैं।

आज संस्कारों में भिड़ंत है,
दिखते कुछ और होते कुछ ओर,
पता ही नहीं चलता,
नजर के पिछे नजरिए का,
क्या शड़यंत्र है,
घायल संस्कार इसी सोच में,
आजाद मुल्क में जी रहा,
निरंतर पारतंत्र में है।

नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जहाँ संस्कार घरौंदे मिट जाएँ,
और दीवारें दमघौंटु आँसू बहाएँ,
चाहिए बस,
मानव बनकर मानवता के लिए जिए,
जहाँ हो सच्चे संस्कारों के साये,
वहाँ बनाऊँ वहीं घरौंदा,
जिसके छत कभी,
संस्कारों के थे गीत कभी गाए।
🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹
रचना
मच्छिंद्र भिसे
सातारा - महाराष्ट्र
9730491952
9545840063
🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻

वह यादें फिर आईं

बचपन में गाँव में बिताईं शामें जब याद आती हैं तो आज बनें हम शहरी कहाँ फुरसत है उन शामों में फिर से जीने में......
वह यादें फिर आईं 

हर दिन मैंने
सांज की बेला को,
देखा था तुझे 
देखते तिरछी नजर से,
और देखा था
तुम्हारा अरूण मुख,
हो गए थे घायल 
आपसी हृदय संवेदन क्षर से।

बिखरा दी थी जब भी 
एक मुस्कान अधरों पर,
न जाने कितने रंग छलकते थे
कितने ही चेहरों पर,
खिला दी थी अनगिनत
अंतरमन में रातरानी की कलियाँ,
मचाती थी शोर- ही- शोर
तुम्हारे हरदिन आने पर।

यकायक क्या हुआ तुझे
मुझे पता नहीं,
धीरे-धीरे छट गया
तेरा अरूण रंग,
और तेरे चेहरे छा गई
काली बदरी-सी जब भी,
देख लोगों ने कहा-
हो गई तू रंग से बेरंग।

पर मैं खुश था
मन-ही-मन,
जो चमकाएँ तारे
मेरे और तेरे मुख पर,
वो कैसे भूल पाऊँ
बता ऐ मेरी सखी,
जब से आया शहर में
तू वैसी कभी न दिखी।

शहर की पहली बिजली
जब जलती है,
लोगों की राहें 
घर वापसी की निकलती हैं,
गाँव बेला साँज में 
पंछियों की वापसी चहक गुँजती,
यहाँ दिन की थकान उपर 
भोंपु से दिल धड़कनें बढ़ती हैं।

ओ मेरी प्यारी निशा
आज तरसता मैं,
तू मुझमें और मैं तुझमें
आँखों जब भी निहारता हूँ,
छोड़ गाँव की साँज को
शहरी अंबर जो बना हूँ,
ओ गाँव की सांध्यबेला !
अब हर शाम आँसुओं के
तारों से सजाता हूँ।

 26.10.2018
रचना
नवकवि- मच्छिंद्र भिसे (सातारा)

उपशिक्षक 
सदस्य,   हिंदी अध्यापक मंडल सातारा 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
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९ वाँ राष्ट्रीय बालसाहित्यकार सम्मलेन, सलूम्बर (राजस्थान ) - वृत्तांत - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

९ वाँ   राष्ट्रीय बालसाहित्यकार सम्मलेन, सलूम्बर (राजस्थान ) के इस समारोह में शरीक होने का अहोभाग्य था।  इस समारोह में समूचे  भारत से  आए साहित्यकारों का प्रत्यक्ष परिचय हुआ। बहुत अच्छा अनुभव रहा । 
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साभार प्रस्तुति 
नवकवि- मच्छिंद्र भिसे (सातारा)

उपशिक्षक 
सदस्य,   हिंदी अध्यापक मंडल सातारा
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९ वाँ   राष्ट्रीय बालसाहित्यकार सम्मलेन, सलूम्बर (राजस्थान )
७ अक्टूबर २०१८ 
स्थल : सलूंबर  राजस्थान 
                         7-8 अक्टूबर 2018 को राजस्थान की पावन, शौर्य एवं बलिदान के लिये प्रसिद्ध मेवाड़ की भूमि पर दो दिवसीय नवम् राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मेलन सलिला संस्था, सलूम्बर द्वारा आयोजित किया गया। इस वर्ष सलिला संस्था अपना रजत जयन्ती वर्ष मना रही है। जिसके अन्र्तगत पूरे आयोजन को दो चरणों में पूरा किया। पहले चरण में पांच दिवसीय ‘बच्चो की लेखन कार्यशाला’ सम्पन्न हुई। ग्रामीण क्षेत्र के 50 सरकारी स्कूल के बालको को इसका लाभ मिला। दूसरे चरण में दो दिवसीय राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मेलन का आयोजन हुआ। जिसमें राजस्थान सहित 10 राज्यो से आये 100 दिग्गज साहित्यकारों ने अपनी सक्रिय भागीदारी निभायी।
                 इस बार का बाल साहित्यकार सम्मेलन ‘बाल साहित्य में यात्रावृतांत विधा’ पर केन्द्रित किया गया। इसके लिये प्रतियोगिता आयेजित की गई और मार्च माह में प्रविष्टि के लिये विज्ञप्ति निकाली गई। 31 मई की अंतिम निर्धारित तिथि के बाद प्राप्त 45 रचनाकरों की 63 प्रविष्टि का मूल्यांकन कराया गया। सुधा जौहरी और उपेन्द्र ‘अणु’ ने अपना निर्णय दिया। चयनित यात्रावृतांत पर 16 साहित्यकारों को स्वतंत्रता सैनानी औंकारलाल शास्त्री स्मृति पुरस्कारों की घोषणा की गई। शास्त्री स्मृति पुरस्कार से जुड़े स्थानीय महाविद्यालय और विद्यालय के बालको को ‘बाल प्रतिभा प्रोत्साहन पुरस्कार’ के तहत 6 बालकों को पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया। साहित्यकारों के साहित्य और सामाजिक सरोकारें पर प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी विशेष अलंकरण मेवाड़ गौरव और सलूम्बरश्री अर्पित करने की घोषणा की गई। सलिला साहित्य सम्मान के तहत 11 साहित्यकारों को सम्मान अर्पित करने सूची जारी की गई। सलिला संस्था की स्मारिका ‘सलिल प्रवाह’ का इस वर्ष का अंक बाल साहित्यकार सावित्री चैधरी पर केन्द्रित किया गया। प्रविष्ट में प्राप्त बाल यात्रावृतांत में से चयनित आलेख को पुस्तक रूप में ‘देख लो जग सारा’ के नाम से प्रकाशन कराया गया। सम्मेलन में साहित्यकारों के लिए नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा कार्यशाला का आयोजन भी किया गया। बच्चो का देश मासिक बाल पत्रिका ने अपनी स्टाॅल भी लगाई।


पहला दिन:   बच्चों का सत्र:
                 दो दिवसीय राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मेलन की परम्परा अनुसार इस वर्ष भी शुभारंभ बच्चो के सत्र से ठीक 10.30 बजे प्रातः आरंभ किया गया। जिसमें सराड़ी, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में आयोजित कार्यशाला के बच्चों के समूह गान और नाट्य क्षणिकाएं का मंचन कर प्रस्तुति दी। कुल 14 बालकों ने इसमें हिस्सेदारी ली। बालको के द्वारा ही लिखा गया नाटक ‘मोबाइल टन टनाटन’ की रोचक प्रस्तुति की सभी ने सराहना की। बालको को संस्था की ओर से पुरस्कार में दिनेश मेवाड़ी से प्राप्त क्लिपबोर्ड प्रदान किये गये। उदय किरौला के सफल संचालन में यह सत्र पूरा हुआ।

उद्घाटन-लोकार्पण सत्र:
             ठीक 11.00 बजे विधिवत रूप से दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन सत्र आरंभ हुआ। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि मेवाड़ इतिहास और संस्कृति के विशेषज्ञ डाॅ. राजशेखर व्यास, उदयपुर थे। अध्यक्षता विज्ञान समिति के संस्थापक एवं वैज्ञानिक डाॅ. कुन्दनलाल कोठारी, उदयपुर ने की। मंच पर नंदन बाल पत्रिका के संपादक मंडल से जुड़े अनिल जायसवाल, नई दिल्ली, वरिष्ठ बाल साहित्यकार सावित्री चैधरी, जयपुर, युगधारा के संस्थापक और वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ जयप्रकाश पंड्या ‘ज्योतिपुंज’ उदयपुर और प्राचार्य, सराड़ी विद्यालय के  अम्बालाल शर्मा बिराजित हुए। प्रो. रघुनाथसिंह मंत्री के सानिध्य में कार्यक्रम आरंभ हुआ। सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्जलन किया गया। कोटा से आये भगवती प्रसाद गौतम ने मीठे सुर में सरस्वती वंदना गायी। इसके पश्चात् अतिथियों एवं सभी साहित्यकारों का सलिला संस्था द्वारा माल्यर्पण और बैज लगाकर स्वागत किया गया।
                   सलिला संस्था की अध्यक्ष डाॅ. विमला भंडारी और सचिव मुकेश राव ने सलिला संस्था का संस्था गीत गाया। मेवाड़ के इतिहास को बखानता कवि माधव दरक द्वारा रचित ‘‘वो मा’राणा परताप कठै...’’ सलिला संस्था से जुड़े महाविद्यालय के छात्र जयेश खटीक ने कवि के अंदाज में दोहो के साथ प्रस्तुत करते हुए गायन किया। सभागार ने प्रताप के शौर्य का करतल ध्वनि से स्वगत किया। सलिला सदस्य मधु माहेश्वरी ने राजस्थानी भाषा में स्वागत गीत गाया। सलिला उपाध्यक्ष चन्द्र प्रकाश मंत्री ने स्वागत उद्बोधन दिया।
                          ‘‘बाल साहित्य में यात्रावृत्त: राष्ट्रीय एकता का बेहतरीन प्रकल्प’’ विषय पर डाॅ. विमला भंडारी ने बीज वक्तव्य दिया। तत्पश्चात् ठीक 12.10 बजे सावित्री चैधरी पर केन्द्रित सलिल प्रवाह, संस्था की स्मारिका, संपादक प्रकाश तातेड़ की उपस्थिति में मंचस्थ अतिथियों द्वारा लोकार्पण हुआ। प्रकाश तातेड़ ने स्मारिका की विषय वस्तु और महत्व पर मंच से अपनी बात रखी। इसके बाद बहु प्रतिक्षित बाल साहित्य विधा का प्रथम यात्रावृत्तांत संग्रह ‘‘देख लो जग सारा’’ संपादक डाॅ. विमला भंडारी के सानिध्य में मंचस्थ अतिथियो द्वारा लोकार्पण किया गया। अनिल जायसवाल ने इस पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए विभिन्न पहलुओं पर इस विधा में प्रथम प्रयास की सराहना की। सभागार में उपस्थित पत्रकार सुरेश कुमार टेलर, अतुल भावसार, नवीन लौहार को प्रतीक चिन्ह भेंटकर स्वागत किया गया। अनिल जायसवाल को सलिला सम्पादन सम्मान अर्पित किया गया।

              सावित्री चैधरी ने अपने पर केन्द्रित सलिल प्रवाह उद्गार व्यक्त करते हुए उसे अकल्पनीय, सद्प्रयास बताया। उद्बोधन की इस श्रृंखला में मुख्य अतिथि डाॅ. राजशेखर व्यास ने मेवाड़ के इतिहास पुरूष चूंडा, राणा लाखा, चूंडा वंशज सांईदास और हाड़ीरानी के इतिहास पर कई जानकारी प्रदान की। डाॅ. विमला भंडारी को उनके शोधकार्य को रेखाकिंत करते हुए प्रोफेसर की उपाधि से नवाजा और साहित्य में दिये अवदान के लिये पद्मश्री मिलने की कामना प्रकट की। डाॅ. ज्योतिपुंज और सलिला अध्यक्ष भंडारी ने उन्हें मेवाड़ गौरव अलंकरण अर्पित करते हुए शाॅल ओ़ढ़ाया और 2500 रूपये की नकद राशि भेंट की। इसके बाद प्रो. रघुनाथसिंह मंत्री को सलूम्बरश्री अलंकरण भेंट किया गया। शाॅल ओढ़ाकर सम्मान प्रकट किया और 1100 रूपये की नकद राशि भेंट की जिसे उन्होंने स्वीकार करने के तुरंत बाद पुनः संस्था को सहयोग हेतु प्रदान कर दी। इसके बाद उन्होंने सभागार को संबोधित कर अपने हृदय के उद्गार व्यक्त करते हुए चावण्ड में उनके द्वारा महाराण प्रताप की समाधि स्थल पर किये कार्यो को रेखाकिंत किया। संस्था के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।
                          मंचस्थ अतिथियों के उद्बोधन में अम्बालाल शर्मा ने अपना उद्बोधन देते हुए सलिला संस्था के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हएु सक्रिय सहयोग देने की इच्छा जाहिर की। डाॅ. जयप्रकाश पंड्या ने सलिला संस्था के गठन के 25 वर्ष की सतत साहित्य साधना की प्रशंसा की। ऐसी संस्थाओं की उपयोगिता और उपादेयता पर अपनी बात रखी। यात्रावृत्त पर प्रथम पुरस्कार पाने वाली बीकानेर की आशा शर्मा ने अपने लेखकीय उद्बोधन में सलिला संस्था से मिली ख्याति पर खुशी और संतोष जाहिर की। उन्होंने प्रतियोगिता को चुनौती की तरह लिया और प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने लक्ष्य भी पाया। इसके बाद उन्हें प्रथम पुरस्कार की राशि 3000 रूपये नकद, अभिनन्दन पत्र और शाॅल ओढ़ाकर सम्मान दिया गया। अध्यक्ष के. एल कोठारी ने अपना सारगर्भित उद्बोधन दिया। सलिला संस्था के कार्याे की प्रशंसा करते हुए खुशी और आस्था प्रकट की। प्रथम सत्र की समाप्ति की घोषणा की और भोजन का आमंत्रण इस सत्र की संचालक वरिष्ठ साहित्यकार शकुंतला सरूपरिया ने दिया। धन्यवाद की रस्म जगदीश भंडारी ने अदा की। मंचस्थ अतिथियों को समारोह के प्रतीक चिन्ह भेंट किये गये।

 द्वितीय सत्र - पुरस्कार सत्र:
                         ठीक 3.15 बजे प्रहलाद पारीक ने पुरस्कार सत्र के संचालन हेतु मंच संभाला। मंच पर मुख्य अतिथि डाॅ. प्रेमसिंह रावलोत, प्राचार्य बी.एन.गल्र्स काॅलेज, सलूम्बर थे और अध्यक्षता की जोधपुर से आये रीजनल डायेरेक्टर इग्नू के डाॅ. अजय वर्द्धन आचार्य ने। विशिष्ट अतिथि के तौर पर प्रतियोगिता निर्णायक और वरिष्ठ बाल साहित्यकार उपेन्द्र ‘अणु’। प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार विजेताओ को मंच पर बुलाया गया। बिठाया गया और क्रमानुसार उनके लेखकीय वक्तव्य हुए। इनमें द्वितीय पुरस्कार विजेता प्रबोध कुमार गोविल, जयपुर, और अनिल अग्रवाल, भोपाल, तृतीय पुरस्कार विजेता संगीता सेठी, जोधपुर और डाॅ. जमनालाल बजाज, भीलवाड़ा ने अपनी रचना प्रक्रिया पर सभी के समक्ष बात रखी। सभी को नियत पुरस्कार राशि 2000 और 1500 प्रत्येक को नकद सहित अभिनन्दन पत्र प्रदान किये गये। शाॅल ओढ़ाकर सम्मान दिया गया। इसके बाद श्रेष्ठ यात्रावृत्तांत पर 1000 नकद राशि का प्रत्येक को पुरस्कार राशि सहित अभिनन्दन पत्र प्रदान किये गये। शाॅल ओढ़ाकर सम्मान दिया गया। दिये गये। कुल 16 में से 14 पुरस्कार विजेताओं की उपस्थिति पर प्रदान किये गये। जो क्रमानुसार इस तरह है। संतोष कुमार सिंह, मथुरा। डाॅ. शील कौशिक, सिरसा। डाॅ. कृष्णलता यादव, गुरूग्राम। मानसी शर्मा, हनुमानगढ़। अनिल जयसवाल, नई दिल्ली। कविता वर्मा, इंदौर। किशोर श्रीवास्तव, नई दिल्ली। रजनीकांत शुक्ल, गाजियाबाद। डाॅ. अनिता जैन, उदयपुर। सभी को दो राउंड में बुलाकर मंचासीन किया गया और उन्हें एक-एक कर पुरस्कार दिया गया।
                 
उपेन्द्र ‘अणु’ ने यात्रावृत्तांत निर्णायक की भूमिका पर अपने अनुभव मंच से बांटे और राजस्थानी गीत सुनाया। छात्र जयेश खटीक ने डाॅ. ज्योतिपुंज की रचना का पाठ किया। उपस्थित बाल प्रतिभा राजकीय हाड़ारानी महाविद्यालय छात्र अभिषेक मेहता और सोनू नागदा को 1000 रूपये प्रत्येक को नकद राशि और अभिनन्दन पत्र प्रदान किया गया।

                     मंचस्थ अतिथियों के उद्बोधन और सम्मान स्वरूप प्रतीक चिन्ह भेंट किये गये। पुरस्कार प्रदान करने मुकेश मेवाड़ी ने शास्त्री परिवार का प्रतिनिधित्व किया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डा. अजयवर्द्धन आचार्य ने कहा कि वह इस सम्मेलन में भारतवर्ष से आये इतने विद्वानों के बीच सम्मिलित होकर अभिभूत है। बाल साहित्य के उन्नयन परिवर्तन के लिए वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय से सहयोग की कोशिश करेगे। बालको के बौद्धिक विकास के लिये उपयोगी साहित्य की आज बहुत जरूरत है। बाल साहित्य का रचाव करना कठिन कार्य है।

पुस्तक लोकार्पण:
                       इसके बाद उपस्थित रचनाकारों की बाल साहित्य की 10 पुस्तको का मंचस्थ अतिथियों के कर कमलों से लोकार्पण किया गया। जिसमें डाॅ. पंकज वीरवाल की ‘उपहार’ और ‘सोने का हार’, डाॅ. शील कौशिक की ‘धूप का जादू’, प्रबोध कुमार गोविल की ‘मंगल ग्रह के जुगनू’, प्रभा पारीक की ‘रंग बिरंगी’ और झिगली-बिगली’, दीन दयाल शर्मा की ‘अपनी दुनिया सबसे प्यारी’और ‘हम बगिया के फूल’, सुधा जौहरी की अनुदित ‘द वैली आॅफ कारगिल’ मूल लेखक डाॅ. विमला भंडारी, शशि ओझा की ‘गुलमोहर’, ज्योत्सना सक्सेना की ‘ठुमकते गीत’, अंजीव ‘अंजुम’ की ‘डाॅ. विमला भंडारी की चुनिन्दा बालकथाएं’, बच्चो का देश बाल पत्रिका का अक्टूबर अंक, संतोष कुमार सिंह की ‘स्मार्ट फोन और दादा जी’ आदि पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। 

              इसके बाद बीकानेर के युवा कवि रवि पुरोहित ने डाॅ. विमला भंडारी को चुन्दड़ी ओढ़ाकर अपनी पुस्तके भेंट में दी।

तृतीय सत्र - सलिला साहित्य सम्मान सत्र:
                           इसके साथ ही सलिला साहित्य रत्न सम्मान आरंभ हुआ। विशिष्ट अतिथि के तौर पर कोटा के जितेन्द्र ‘निर्माही’ को मंचासीन किया गया। सबसे पहले रवि पुरोहित को राजस्थानी भाषा की पत्रिका राजस्थली के सम्पादन हेतु सलिला साहित्यरत्न से सम्मानित किया गया। यह सम्मान कुल 10 रचनाकारों को विभिन्न वर्ग के अन्र्तगत उनकी उपलब्धियों पर अभिनन्दन पत्र के साथ शाॅल ओढ़ाकर अर्पित किया गया। जिनका विवरण इस तरह है- आनन्द स्वरूप श्रीवास्तव, रायबरेली को स्मारिका आचार्यपथ के संपादन के लिये। वीणा अग्रवाल, कोटा को कविता लेखन के लिये। रेखा लोढ़ा को हिन्दी गजल के लिये। प्रभा पारीक, मुम्बई को प्ररेक आलेख लेखन के लिए, देवदत्त शर्मा, अजमेर को मेवाड़ विषयक आलेख लेखन के लिये। उद्धव भयवाल, औरंगाबाद को अहिन्दी प्रदेश में हिन्दी साहित्य लेखन के लिये। श्याम प्रकाश देवपुरा, नाथद्वारा को हिन्दी भाषा और साहित्य संवर्द्धन में अग्रणी भूमिका निर्वहन के लिये। बलराम अग्रवाल, नई दिल्ली और इंद्रजीत कौशिक, बीकानेर को बाल साहित्य लेखन के लिये यह सम्मान अर्पित किया गया। अतिथियों को प्रीक चिन्ह देकर सम्मान दिया गया। सम्मानित होने वाले रचनाकारों ने मंच से विमला भंडारी के प्रति अपने सद्भाव प्रकट किये। रचनाकारों ने अपनी प्रकाशित पुस्तके तथा वस्तुएं उपहार में दी। मंचस्थ अतिथियों के उद्बोधन के बाद यह सत्र समाप्त हुआ।

चतुर्थ सत्र - हाड़ीरानी प्रतिमा पुष्पाजंलि समारोह:
                        ठीक सवा छः बजे संध्याकाल में सभी संभागी ढ़ोल की अगवानी में नगर पथ पर जुलूस रूप में अग्रसर हुए। सलूम्बर तालाब के रास्ते से पाल दरवाजे से प्रवेश करते हुए एक साथ सलूम्बर स्थित राजमहलो के लिये प्रवेश किया। रावली महलों के द्वार पर सलूम्बर नगर पालिका अध्यक्ष राजेश्वरी शर्मा ने सबका स्वागत अभिनन्दन किया। वह इस समारोह की मुख्य अतिथि थी। साहित्यकारों ने प्रतिमा के समक्ष ढ़ोल की ध्वनि पर नृत्य कर अपने मन का उल्लास प्रकट किया। इस सत्र का संचालन चित्तौड़गढ़ के नन्दकिशोर ‘निर्झर’ ने किया। उन्होंने हाड़ीरानी पर कविता सुनाई और उनकी इतिहास गाथा सुनायी। इस समय रवि पुरोहित का जन्मदिन भी मनाया गया। जगदीश भंडारी ने रवि पुरोहित के जन्मदिन हेतु केक काटने की व्यवस्था रखी। उल्लास पूर्वक सभी ने केक खाया और उन्हें बधाईयां, शुभकामनाएं दी। इसके बाद साहित्यकरों ने हाड़ीरानी पुष्पाजंलि अर्पित की। महलो में स्थ्ज्ञित संग्राहलय का अवलोकन किया। यह सत्र इसके साथ समाप्त हुआ।

पंचम सत्र - अखिल भारतीय कवि सम्मेलन:
                 रात्रि सत्र में भर से पधारे रचनाकारों ने अपने श्रेष्ठ गीत, गजल, कविताएं आदि सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। देर रात तक चली काव्य गोष्ठी का संचालन शंकुतला सरूपरिया ने किया। 

                    काव्य पाठ करने वाले कवियों में डाॅ. शील कौशिक, जितेन्द्र ‘निर्मोही’, डाॅ. मीरा रामनिवास, उदय किरौला, डाॅ. चन्द्रा सायता, प्रकाश तातेड़, राजकुमार जैन ‘राजन’, डाॅ. अनिता जैन, संगीता सेठी, रजनीकांत शुक्ल, मेजर शक्तिराजसिंह, रवि पुरोहित, डाॅ. अनुश्री राठौड़, उमेश त्रिवेदी, ड़ाॅ कृष्णलता यादव आदि की रचनाओं ने श्रोताओं को देर तक बांधे रखा। इस अवसर पर मुख्य अतिथि धर्मेश शर्मा थे एवं अध्यक्षता वकील परमानन्द मेहता ने की। विशिष्ट अतिथि के तौर पर मंच पर राजकुमार जैन, जितेन्द्र चैहान, शंकरलाल पाण्डे, गुलाबचन्द पटेल, मछिन्द्र भिसे, भरत वैष्णव  थे।

  दूसरा दिन:
षष्ठम सत्र - खुला सत्र
                 यह दूसरे दिन का पहला सत्र था। उल्लासित मन से करीब करीब सभी साहित्यकार सुबह 9.30 बजे सभागार में पहुंच गये। ठीक 9.40 बजे यह सत्र प्रारंभ हो गया। इस सत्र का संचालन राजकुमार जैन ‘राजन’ ने किया। उन्होंने ‘बाल साहित्य अनुवाद: प्रगाढ़ होते मैत्री संम्बन्ध’ पर आलेख पढ़ा और खुले सत्र में चर्चा करवायी।  



सप्तम सत्र - नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया की लेखक कार्यशाला
               ठीक 10.30 बजे प्रातः इस सत्र का संचालन नेशनल बुक ट्रस्ट के कार्यशाला समन्वयक द्विजेमन्द्र कुमार ने प्रारंभ किया। विषय था- ‘कैसे लिखे बाल साहित्य में यात्रा वृत्तांत?’ मंच पर वार्ता प्रस्तुत करने हेतु सम्मेलन की संयोजिका डाॅ. विमला भंडारी, नंदन की संपादकीय मंडल, नई दिल्ली के अनिल जायसवाल और मो. सुखाड़िया विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभागाध्यक्ष, उदयपुर के डा़ कुंजन आचार्य को बुलाया गया। इसके बाद अतिथियों ने सरस्वती प्रतिमा के वहां दीप प्रज्जवलन किया। छात्र छात्राओं द्वारा नेशनल बुक ट्रस्ट के संयोजक द्विजेंद्र कुमार, डॉ कुंजन आचार्य और मंच आसीन अतिथियों का बैच लगाकर स्मृति चिन्ह प्रदान कर स्वागत किया गया। सलिला परिवार ने अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया। नन्दकिशोर ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की और शंकुतला सरूपरिया ने राजस्थानी स्वागत गीत गाया।


            सबसे पहले अनिल जायसवाल ने यात्रा आलेखो के महत्वपूर्ण घटक पर अपनी बात रखी। डाॅ. कुंजन ने बात को आगे बढ़ाते बालमन के अनुरूप बाल लेखन करने पर चर्चा की। डाॅ. विमला भंडारी ने समग्र रूप से आलेख के विषय वस्तु, शीर्षक, आमुख, संवाद, पात्र, भाषा, शैली और कथोपकथन को वर्तमान के परिपेक्ष्य में बालमन के अनुरूप बालको के लिये लेखन करने का आग्रह किया। इस सत्र के संयोजक द्विजेन्द्र कुमार ने सभी लेखको से यात्रावृत्तांत लिखने का आग्रह किया। अच्छे आलेखो को एन.बी.टी. की पत्रिका पाठक मंच में प्रकाशित करने की बात रखी। स्वतंत्रता सैनानी औंकारलाल शास्त्री स्मृति बाल प्रतिभा के बालको को अतिथियों के हाथों पुरस्कार दिया गया। पुरस्कार लेने वालों में 12 वीं के दर्श शाह, मनीषा कुमारी मीणा, 10 वीं के कृतिका मेहता और चिराग पाण्डे थे। प्रत्येक को 500 रूपये की नकद राशि और अभिनन्दन प्रतीक दिया गया। रजनीकांत शुक्ल ने इस कार्यशाला को उपयोगी बताते हुए धन्यवाद की रस्म अदा की। इसके साथ ही यह सत्र समाप्त हुआ।
  
अष्ठम सत्र - कविता की साख
                ठीक 12.00 बजे साहित्यकार और युवा पाठक केन्द्रित यह अनूठा सत्र आरंभ हुआ। इसके संचालक डाॅ. पंकज वीरवाल ने मंच संभाला और इस सत्र में सम्मिलित होने के लिये कवियों को मंत्र पर आमंत्रित किया। मंच पर कुल 7 कवि रचनाकार पहुंचे। जिनमें डाॅ. ज्योत्सना सक्सेना, रवि पुरोहित, टीकम बोहरा ‘अनजाना’, रेखा लोढ़ा, डाॅ. मीरा रामनिवास, उद्धव भयवाल, मछिन्द्र भिसे मंचासीन हुए।  
                   7 मंचासीन रचनाकारो की कविता का पाठ महाविद्यालय विद्यालय के विद्यार्थीयो ने उनकी अनुमति लेकर प्रस्तुतियां दी। सर्व प्रथम पुलकित भंडारी ने मच्छिन्द्र भिसे की कविता ‘निज भाषा के गीत गायेंगे...’ पढ़ी। भिसे ने बालक को प्रोत्साहन स्वरूप 500 रूपये की नकद राशि प्रदान की। महाविद्यालय के छात्र अभिषेक मेहता ने रवि पुरोहित की कविता ‘सपनो के सौदागर...’ सस्वर पाठ किया। रवि पुरोहित ने छात्र को अपनी पुस्तके युवा छात्र को पुरस्कार में प्रदान की। ‘भारत माता की जयगान हो....’ टीकम बोहरा की लिखी हुई इस कविता का ओजस्वी पाठ किया नरसा राठौड़ ने। ऋतु सुथार ने वीणा अग्रवाल की अनुपस्थिति में उनके लिखे मुक्तक का पाठ किया। 
                     वीणा की अनुपस्थिति में रेखा लोढ़ा ने बालिका को आयोजन का प्रतीक चिन्ह दिया। उद्धव भयवाल की बाल कविता ‘मेरा छाता’ का पाठ बालक स्पन्दन ने किया और 500 रूपयें का लेखक से पुरस्कार पाया। महाविद्यालय छात्रा सोनू नागदा ने डाॅ. ज्योत्सना सक्सेना के लिखे दोहे, मुक्तक और गीतिकाओं का सस्वर पाठ किया और लेखिका से 500 रूपये का पुरस्कार पाया। जयेश खटीक ने प्रमोद सनाढ़्य की अनुपस्थिति में उनकी रचना ‘झंडा ले लो बाबूजी...’ का पाठ किया। सभागार के लोग इस भावुक हो उठे। आंखो में अश्रु आ गये। मेजर शक्तिसिंह ने जयेश को 500 रूपये और लोढ़ा ने 200 रूपये पुरस्कार प्रकार किया। हर्षिता तेली ने रेखा लोढ़ा की रचना पाठ किया और रचनाकार ने उसे 200 की राशि देकर प्रोत्साहित किया। ऋतु चैबीसा ने डाॅ. मीरा रामविास की कविता ‘मां’ की प्रस्तुति देकर एक बार फिर सभागार की आंखों को भिगो दिया। लेखिका से युवा छात्रा ने 500 रूपये की राशि का पुरस्कार पाया। अतिथि बालिका रमोला जैन ने अपनी स्वरचित कविता का पाठ कर ज्योत्सना सक्सेना से 500 रूपये का पुरस्कार पाया। घड़ी एक बजा चुकी थी। यह सत्र यही नियत समय पर समाप्त हुआ।

 नवम् सत्र - समापन सत्र:
                        सलिला संस्था सलूंबर के सात दिवसीय रजत जयंती महोत्सव का दूसरा पड़ाव दो दिवसीय राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मेलन के समापन सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि भरतचंद्र शर्मा थे और अध्यक्षता बलराम अग्रवाल, नई दिल्ली ने की रजनीकांत शुक्ल, डॉ. टीकम बोहरा, प्रकाश तातेड़ इस सत्र के विशिष्ट अतिथि थे । प्रभा पारीक के सानिध्य में डॉ पंकज वीरवाल के संचालन में यह सत्र प्रारंभ हुआ । संयोजिका डॉ विमला भंडारी ने सात दिवसीय कार्यक्रम का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।  बाल प्रहरी के संपादक और बच्चों की लेखन कार्यशाला को प्रशिक्षण प्रदान करने वाले उदय किरोला को सलिला संस्था की ओर से 5000 की नकद राशि स्मृति चिन्ह अर्पित किया गया।
             समारोह के अध्यक्ष बलराम अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि सलूंबर राजमहलों में घूमते हुए, दरवाजों में प्रवेश के लिए सिर झुकाते हुए उन्होंने महसूस किया कि सलूंबर में हम पहली बार नहीं आए हैं गत 350 वर्षों में बार बार जन्म ते मरते और आते रहे हैं । मेरा विश्वास है कि इस सभागार में बैठा हर स्त्री पुरुष महाराणा के संग्राम के समय का सिपाही रहा है। तब हम तलवार से लड़े थे अब कलम हमारा हथियार है।   राजस्थान प्रशासनिक सेवा से जुडे वरिष्ठ अधिकारी कवि टीकम बोहरा अनजाना ने कहा कि मां, मातृभाषा और मातृभूमि से जो संस्कार मिले हैं वह हमारी थाती है । हमें मानव कल्याण के लिए सांस्कृतिक धरोहर को बचाए रखना होगा और यह तभी संभव होगा जब हम बच्चों को मूल्यवान वस्तुओं के बजाय मूल्यों की शिक्षा दें। हमारे बच्चों को अर्थ प्रदान की बजाय भाव प्रधान बनाते हुए जीवन में आत्मिक संतोष प्राप्त करने की क्षमता और शिक्षाबप्रदान करें।
                      मुख्य अतिथि भरतचंद्र शर्मा ने सलूंबर को बाल साहित्य के विकास एवं उन्नयन की धरती बनाया और कहा कि वर्तमान का बाल साहित्य का इतिहास सलूंबर से लिखा जा रहा है। शकुंतला सरूपरिया ने राजस्थानी गीत में अपनी भावभीनी अभिव्यक्ति दी।  सहभागी साहित्यकारों में रवि पुरोहित, प्रभा पारीक, प्रकाश तातेड़, रजनीकांत शुक्ल ने अपने अपने ढंग से कार्यक्रम की सराहना करते हुए आभार प्रकट किया। सभी प्रतिभागियों को स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए।
                धन्यवाद की रस्म उसने स्नेहलता भंडारी और मुकेश मेवाड़ी ने अदा की। अंत में राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
  


*वृत्तांत लेखन *
डाॅ. विमला भंडारी
अध्यक्ष, सलिला संस्था, सलूम्बर-राज.
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साभार प्रस्तुति 
नवकवि- मच्छिंद्र भिसे (सातारा)

उपशिक्षक 
सदस्य,   हिंदी अध्यापक मंडल सातारा 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३

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