मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

'साहित्य समीर दस्तक' पत्रिका का मई २०१८ का अंक

प्रतिष्ठा में, 
संपादक महोदय / महोदया 
सादर नमन !!!

             'साहित्य समीर दस्तक' पत्रिका का मई २०१८ का अंक नियमित समय पर प्राप्त हुआ। सहृदय
धन्यवाद। मई की पत्रिका के मुखपृष्ठ मरुभूमि एवं पानी लेकर जा रही देहाती नारियों के चित्र सजाकर मई की गर्मी का परिचय देते हुए अंतरंग में साहित्यिक ठंडाई प्रदान करने वाली एक से बढ़कर एक रचनाओं को सचित्र स्थान दिया है। संपादकीय में 'अपनी बात' और 'मन की बात' के आलेख व्यक्तित्व निर्माण एवं मुस्कराने के महत्त्व को सुंदर शब्दबद्ध किया है जो सोचनीय हैं। बुढ़ापा बोझिल नहीं होता यदि उसे सही दिशा दे, इस बात को दर्शाने वाली प्रतिमा खनका जी की 'रिटायर्ड' और श्यामली पांडे जी की 'किसी से कहना मत' खोखली इज्जत की पोल खोल देने वाली कहानी शिक्षाप्रद एवं सराहनीय है। मातृ दिवस की एवं मातृ प्रेम के एहसास एवं आज की माँ के हालत बयान करने वाली मॉरीशस के गुदारी जी की 'बैठक' कहानी पाठक की पठन की बैठक रँगाती है तो माँ को कई सवाल पूछने वाली विशाल के.सी. जी की 'जोकर' कविता बहुत कुछ कह जाती है। 

            बालजगत की कहानियों में 'जीने का हक' पशु-पक्षी संवर्धन एवं संरक्षण का संदेश देनेवाली हैं तो वही डॉ. दर्शन सिंह 'आशट' जी 'फिर फैली मुस्कान' कहानी बच्चों को समझदारी इस जीवन मूल्य की सिखावन देती है। लघुकथाओं में कपिल शास्त्री जी की 'उदारता' नकली उदारता की पहचान करा देती हैं, इस श्रृंखला की सभी लघुकथाएँ पठनीय है। किशनलाल छिपा के 'नया ज्ञान' और 'अपना खेत' प्रेरणादायी प्रंसग हैं। काव्य कुंज की पठनीय कविताएँ सजावट के साथ प्रस्तुत करने से काव्य कुंज खिला है जिससे पत्रिका और स्तरीय बनती जा रही है। काव्य में प्रस्तुत रेनू शर्मा जी द्वारा 'शब्द' को 'जीने की वजह हो' कहकर शब्दों को काव्यात्मक सम्मान देकर गौरवान्वित किया है। देवी नागरानी जी की गजलें, नेपाल से और पूर्वोत्तर से शीर्षक में प्रस्तुत रचनाएँ मन को छू जाती हैं, विशेषकर सीताराम प्रकाश की 'बीज हूँ मैं' अधिक पसंद आईं। बालकविताएँ भी बाल मन सहित हर पाठक को प्रभावित करती हैं। 'यादों के झरोखों से' मेरा विशेष प्रिय स्तंभ है, इस बार मेरे प्रिय गजलकार 'दुष्यंतकुमार' जी को देखकर दिल खुश हुआ। किताबों की समीक्षाएँ एवं पत्रिकाओं का परिचय देकर यह पत्रिका साहित्य के प्रचार-प्रसार के मूल उद्देश्य को सफल करती दिखाई देती है वहीं साहित्यिक क्षेत्र की खबरें देकर संबंधित हलचल से परिचित कराती हैं। 

            संक्षेप में अंतराष्ट्रीय स्तर में स्तरीय पत्रिकाओं में अपना स्थान पानेवाली पत्रिका 'साहित्य समीर दस्तक' है। इस नियमित सफल प्रकाशन हेतु संपादक, प्रधान संपादक एवं उनके सहयोगियों को हार्दिक बधाईयाँ और मंगलकामनाएँ !!!

मच्छिंद्र भिसे,
भुईंज-सातारा (महाराष्ट्र)

-०-
>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 
अध्यापक 
ग्राम भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<

बालसाहित्यकार एवं लघुकथाकार : गोविन्द शर्मा (समीक्षा) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

बालसाहित्यकार एवं लघुकथाकार 
गोविन्द शर्मा 
लेखक परिचय
जन्म तिथि : 04.06.1946
जन्म स्थान : संगरिया
शिक्षा : बी. ए., प्रभाकर, साहित्य रत्न, विद्या-वाचस्पति(मानद्)
पारिवरिक परिचय :
माता - स्वर्गीय श्रीमती जीवनी देवी।
पिता - स्वर्गीय श्री बजरंगदास।
पत्नी - श्रीमती लीला शर्मा।
संतान : पुत्री - श्रीमती सरिता माटोलिया।
पुत्र - श्री संदीप शर्मा ।
पौत्र - अंबुज, रितिक।        
साहित्यिक रचनाएँ 
बाल उपन्यास : दीपू और मोती, डोबू और रामकुमार
बाल कहानी संग्रह : दीपू और मोती, ऐसे थे स्वामी केशवानंद, चालाक चूहे और मूर्ख बिल्लियां, कहानी केशवानंद की, सबका देश एक है, सवाल का बवाल, मुझे तारे चाहिए, कालू कौआ, मुकदमा हवा पानी का, समझदारी से दोस्ती, हम बच्चों के प्यारे, विश्व के सात आश्चर्य, अपने अभयारण्य, चीची ने किया कमाल, हमें हमारा घर दो, मेहनत का मंत्र, सबसे बड़ा तिरंगा, दोस्ती का रंग, खैरू जीत गया, दोस्ती का दम, लोमड़ी का तोहफा, डोबू और राजकुमार, बबलू नाचा झूमकर, मटकू बोलता है
नाटक संग्रह : नया बाल दिवस
व्यंग्य संग्रह : कुछ नहीं बदला, जहाज के नए पंछी
जीवनी : ऐसे थे स्वामी केशवानंद, कहानी केशवानंद की, स्वामी केशवानंद, खूबराम सत्यनारायण सर्राफ
लघुकहानी संग्रह : रामदीन का चिराग

सम्मान / पुरस्कार
      शंभूदयाल सक्सेना बालसाहित्य पुरस्कार (राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर), भारतेंदु बाल साहित्य पुरस्कार, श्रीमती शकुंतला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार, साहित्य परिषद् सिरसा, स्वामी केशवानंद स्मृति ट्रस्ट (संगरिया),  ब्रजेश्वर स्वरूप स्मृति बालसाहित्य पुरस्कार (धरोहर स्मृति न्यास, बिजनौर द्वारा), बाल वाटिका सम्मान (भीलवाड़ा), स्व. कमल स्तोगी साहित्य शिरोमणि सम्मान (खटीमा) तथा अन्य।

मेरे मन की बात
           ४ जून १९४६ के दिन संगरिया, जिला हनुमानगढ़, राजस्थान में जन्मे हमारे परम मित्र तथा हितचिंतक गोविन्द शर्मा जी आधुनिक हिंदी साहित्य क्षेत्र के बालकथाकार, लघुकथाकार एवं संपादक के रूप में ज भारतवर्ष की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आपका परिचय सभी को है। महाराष्ट्र राज्य में नागपूर से प्रकाशित नागपुर समाचार पत्र (हिंदी) में आपकी लघुकथा रचनाएँ नियमित रूप से प्रकाशित होती हैं। आप की कई रचनाएँ देश के विभिन्न राज्यों के शिक्षा पाठ्यक्रम में अध्ययन-अध्यापन हेतु लगी हैं। इस वर्ष महाराष्ट्र की कक्षा १० वीं के लोकवाणी पाठ्यपुस्तक में आपकी एकांकी 'मुक़दमा : हवा-पानी का' लगी है। राजस्थान शिक्षा विभाग की ओर से प्रकाशित 'बगिया के फूल' किताब का संपादन आपने किया है. आपको देश का प्रतिष्ठित भरतेंदु पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा शम्भूदयाल सक्सेना बालसाहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया हैं साथ ही अन्य दर्जनों पुरस्कार आपके कार्य को लेकर प्रदान किए गए हैं। सम्प्रति आप बालसाहित्य के साथ मौलिक प्रौढ़ लघुकथाओं के लेखन के साथ जुड़े हुए हैं। आपके कार्य को सादर वंदन तथा आपको दीर्घायु की मंगलकामनाएँ देते हुए आपके मौलिक कार्य हेतु समस्त महाराष्ट्र राज्य हिंदी अध्यापक, विद्यार्थी एवं साहित्यप्रेमियों की ओर से हार्दिक-हार्दिक बधाईयाँ देते हैं। 
*************************
(बालकथा-संग्रह)
काचू की टोपी 
गोविन्द शर्मा 
समीक्षक : मच्छिंद्र भिसे
         हिंदी बालसाहित्यकार आदरणीय गोविन्द शर्मा जी का बालकथा-संग्रह 'काचू की टोपी' भेंट के रूप में ९ मई २०१८ के दिन मिला। किताब का आकार, जिल्द, पन्ने एवं कहानी से संबंधित सुयोग्य चित्रकारिता को देखकर ही यह अनोखी कृति आकर्षित करती है। इससे ही पता चलता हैं कि इसके पीछे लेखक एवं प्रकाशक की मेहनत
अधिक हुई है। A4 आकार में बनी मजबूत जिल्द पर मुखपृष्ठ ही इस कृति की आत्मा की पहचान करा देता है। रंगीन मुखपृष्ठ पर शीर्षस्थ कहानी का नायक कोचू बाग में लगी कुर्सी पर लेटा हुआ बालकों सहित रसिक साहित्यप्रेमी को आकर्षित करता है। मलपृष्ठ पर रचनाकार का पूरा परिचय सचित्र दिया गया हैं जिसके कारन रचनाकार की साहित्यिक आभा के दर्शन एक नजर में होते हैं। इस कृति में स्तरीय उन्नीस बालकहानियों का सचित्र संग्रह अड़सठ पृष्ठों में बंधा हुआ है।
           बालसाहित्य क्षेत्र में काम करनेवाले हर साहित्यिक की दृष्टि तो एक ही होती हैं कि अपने साहित्य के माध्यम से बाल जीवन में आयु के अनुसार व्यक्तित्व विकास हो। गोविन्द शर्मा जी की कृति 'काचू की टोपी'  बालकों के व्यक्तित्व के साथ ही प्रौढ़ व्यक्तित्व को निखारने में सहायक सिद्ध होगा और है। इस किताब की हर रचना मानवी जीवन मूल्यों को बढ़ावा देती हुई उसे अपनाने के लिए प्रेरित करने वाली है। बालक इन कथाओं को सुनकर अथवा पढ़कर इसके जीवन मूल्यों को स्वीकारेंगे इसमें कोई दो राय नहीं होगी। इस किताब की रचनाओं में सच्चाई, ईमानदारी (काचू की टोपी), सहायक वृत्ति, मौज-मस्ती के साथ प्रेम (ईश्वर), दोस्ती और अपनत्व भाव (दोस्ती का पूल), होशियारी, निडरता, भूतदया, शिक्षा में अभिरुचि (मोबाईल कबूतर), सहकारिता, निस्वार्थ वृत्ति  दर्शन), समझदारी, सूझबूझ (अब नादानी नहीं), अहंकार का त्याग, कर्तव्यधर्म (तारक की वफ़ादारी), स्व की पहचान, चतुराई (चूहों की  घंटी), श्रमप्रतिष्ठा (नींद की गोली), वृत्ति, सहकारिता (नाव से आगे), वचनपूर्ति, विश्वसनीयता (दोस्ती तेजु और सुस्तू की), दयालुता, जैसी करनी वैसी भरनी का स्वभाव (सीख सुहानी बचपन से), कपोल कल्पना फ़ोल तो वास्तवता का परिचय (सुपर साइकिल), आत्मनिर्भरता, विनयशीलता, सकारात्मक सोच (किताबों के पैर), कठिनाई में सावधानी तथा चालाकी  के लाभ (शेर की आजादी), न्यायप्रियता, ममता (घोड़ी का बच्चा), चोरी से परे रहने की प्रेरणा (बेरी का भूत), सामान्य स्वभाव वृत्ति, ताकद से बढ़कर दिमागी शक्ति बड़ी होने की सीख (शेर- चिड़िया की दोस्ती), बुराई का फल बुरा तो सच्चाई के फल मीठे होते हैं (रस्सी बोली) आदि जीवन मूल्य एवं बोधप्रद कहानियों का यह सर्वोत्तम संग्रह हैं। 
          'काचू की टोपी' की कथाएँ बालकों को नई ऊर्जा, सोच एवं दिशा प्रदान करनेवाली हैं। बालकों सहित सभी वर्ग के  पाठकों को यह रचना पसंद आएगी। यह साहित्यिक कृति हर बच्चे, हर पाठशाला एवं हर अभिभावक के पास अपने बालको को प्रेरित एवं जीवन विकास हेतु होना ही चाहिए।  
          गोविन्द शर्मा जी को इस कृति हेतु बहुत-बहुत बधाईयाँ। साहित्यिक सेवा आपकी ओर से दिनोंदिन वृद्धिंगत हो यही हमारी ओर से हार्दिक-हार्दिक मंगलकामनाएँ !!!!!

- मच्छिंद्र भिसे 
अध्यापक,
सदस्य, हिंदी अध्यापक मंडल, सातारा (महाराष्ट्र)
-०-
>>>>>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<<<<<

समीक्षक 
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 
अध्यापक 
ग्राम भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
>>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<<<<

मेरे साहित्यिक मित्र डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी

मेरे साहित्यिक मित्र
डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी 

               हिंदी साहित्य की हास्य व्यंग्य विधा आज सिर्फ मनोविनोद, मनोरंजन, आत्मिक आनंद न रहकर
सामाजिक चेतना, जन-जागृति, मानवी संवेदनाओं का परिचय देनेवाली सशक्त विधा बन रही हैं। और ऐसे साहित्य का निर्माण होना भी बेहद जरुरी हैं। आज समाज वाचन परंपरा से दूर होकर आधुनिक तकनिकी का मुलाजिम बनकर अपने-आपको बौना बना रहा हैं। ऐसी अवस्था में समाज के संवेदनशील एवं मानवीय विचारों को कुंठित बनने से बचाने का एक मात्र उपाय यह है कि इस दिशा में साहित्यकारों की कलम चले और एक सुज्ञ पाठक वर्ग तक पहुंचे ताकि समाज में परिवर्तन ला सके। जब-जब देश की बुनियाद हिलने लगती हैं, तब-तब साहित्य ने ही उसे सँवारा हैं - यह वचन हैं हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यिक रामधारी सिंह 'दिनकर' जी के। सचमुच आज बदलते परिवेश में इसकी नितांत आवश्यकता हैं। और इस दिशा में अपनी कलम चलाने का काम हिंदी साहित्य के विद्वजन कर रहे हैं इसका अनुभव हाल ही में हुआ। इस श्रृंखला की मजबूत कड़ी हैं, हिंदी साहित्य की हास्यव्यंग्य विधा के सशक्त लघुकथाकार एवं सन १९९६ में माननीय राष्ट्रपति महोदय के करकमलों द्वारा 'काका हाथरसी व्यंग्य पुरस्कार' से सम्मानित साहित्यमहर्षि डॉ.घनश्याम अग्रवाल जी । 
               
              आदरणीय डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी का परिचय हाल ही में हुआ। बुधवार दिनांक ११ अप्रैल २०१८ सुबह १० बजे का समय था। मैं महाराष्ट्र राज्य शिक्षा विभाग की ओर से लाए पुनर्रचित पाठ्यक्रम प्रशिक्षण समारोह के लिए 'द्रविड़ हाईस्कूल, वाई, जिला सातारा' में पाठ्यपुस्तक का परिचय कराने हेतु परामर्शदाता के नाते उपस्थित था।  कक्षा १० वीं के नविन पाठ्यपुस्तक को पढ़ते समय डॉ. घनश्याम अग्रवाल द्वारा रचित 'वाह रे ! हमदर्द' हास्यव्यंग्य विधा की रचना पढ़ने को मिली। यह रचना पढ़कर आपसे बातचीत करने की जिज्ञासा  हुई। मैंने फेसबुक पर आपके नाम की खोज की और सौभाग्य से आपके बारे में कुछ जानकारी पता चली। वहाँ आपके कुछ ग्रीटिंग पढ़ने को मिलें। आपने मानवी संवेदनाओं को लेकर कई ग्रीटिंग लिखें हैं और आप लिखते भी हो। उन्हीं ग्रीटिंग के नीचे आपका मोबाईल नंबर मिला। मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। 

               मैंने तुरंत नंबर मिलाया। अपना परिचय देते हुए डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी की रचना पाठ्यपुस्तक में अध्ययन-अध्यापन को लगने की बधाईयाँ दी। बधाईयों का स्वीकार करते हुए आपने धन्यवाद अदा किया। मैंने आपके सामने एक निवेदन किया कि आप हमारे अध्यापकों के साथ बातचीत करेंगे तो हमें बहुत ख़ुशी मिलेगी। आपने हँसते हुए कहा कि यह  सौभाग्य की बात हैं क्योंकि मैं स्वयं भी अवकाशप्राप्त अध्यापक हूँ।  अन्य बातें भी हुई और दोपहर सवा दो बजे अध्यापकों के साथ वार्तालाप करने के वादे के साथ हमारी पहली बातचीत करीब बीस मिनट तक चली। हमारा नियत प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न हो रहा था। मैंने अध्यापकों को इस बात को लेकर सूचित किया। वे सभी आनंदित थे क्योंकि जिनकी रचना का अध्यापन करना हैं उनसे ऑडिओ के माध्यम से बातचीत करने का मौका जो मिलनेवाला था। दोपहर का वह समय भी आ गया। मैंने आपसे बातचीत करने की पूरी तैयारी की थी। समय पर मोबाईल नंबर मिलाया और अगले पल आदरणीय डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी हमारे साथ जुड़ गए। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। अपने परिचय से लेकर साहित्यिक लेखन तथा आज की जीवनशैली पर भी अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही अपनी रचना 'वाह रे ! हमदर्द' के लेखन के पीछे की घटना से अवगत कराया। बातचीत में अध्यापक और अग्रवाल जी इतने खो गए कि करीब आधे घंटे की लंबी बातचीत चली। और प्रत्यक्ष मिलने की अभिलाषा दोनों ओर से रखते हुए बातचीत को न चाहते हुए भी विराम देना पड़ा। 

              मैंने शाम के वक्त आज के कार्यक्रम हेतु धन्यवाद अदा करने हेतु फिर एक बार फोन किया। डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी ने अपनी ओर से ख़ुशी व्यक्त करते हुए मेरा पोस्टल एड्रेस मँगवाया और कहा कि मेरी एक रचना और कुछ ग्रीटिंग भिजवा देता हूँ। मेरे लिए यह बात अत्यधिक सुखद थी। मैंने उसी श्याम मेरा पोस्टल एड्रेस व्हाट्सअप पर लिख भेजा। 
              कुछ आठ-दस दिन बीते ही थे। मैं पाठशाला से घर पहुँचा तो माँ ने कहा कि कोई पार्सल आया है। देखा तो मेरी खुशियों का ठिकाना न रहा वह तिथि थी - २१ अप्रैल २०१८ (शनिवार)। डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी ने अपनी कृति 'अपने-अपने सपने' तथा चार ग्रीटिंग भेजे थे और एक ग्रीटिंग पर मेरे लिए 'शुभसंदेश के साथ अभिष्टचिंतन' भेजे थे। मेरे जीवन के अनमोल क्षणों में से वह एक क्षण था। सभी ग्रीटिंग पढ़े तथा लघुकथा संग्रह में से कुछ रचनाएँ पढ़ी। सोमवार दिनांक २३ अप्रैल के  दिन १० वीं कक्षा में मैं यह ग्रीटिंग और किताब लेकर गया। छात्रों को ग्रीटिंग पढ़कर सुनवाएँ तथा लघुकथा संग्रह में से कुछ रचनाएँ मैंने पढ़ी थी उनकी प्रस्तुति की। विद्यार्थियों ने ग्रीटिंग की फोटोकापी लेने की मनषा व्यक्त की तो उन्हें मैंने ग्रीटिंग दे दिए और फोटोकापी लेने को कहा और विद्यार्थियों से वादा किया कि लघुकथा संग्रह की रोचक कहानियाँ भी सुनाऊंगा। विद्यार्थियों ने भी आपसे वार्तालाप करने की इच्छा व्यक्त की हैं। वह भी शुभ दिन आएगा।

             अब समय-समय मोबाईल पर अपनी बातचीत होती हैं। जब भी आपसे वार्तालाप करता हूँ मन को एक सकून-सा मिल जाता हैं। 

         आपका सरल एवं सीधा-साधा स्वभाव भा जाता हैं। ईश्वर आपको दीर्घायु के साथ स्वास्थ्य शरीरसंपदा प्रदान करें। माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे, पारिवारिक सुख मुलेन तथा आपकी हर अभिलाषा निश्चित समय पर पूरी हो। इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ -

आपका एवं आपके साहित्य का प्रेमी एवं हितचिंतक 
मच्छिंद्र भिसे 
अध्यापक 
-०-
>>>>>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<<<<<
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 
अध्यापक 
ग्राम भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
>>>>>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<<<<<

■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती ■

  ■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती  ■ (पत्रलेखन) मेरे देशवासियों, सभी का अभिनंदन! सभी को अभिवादन!       आप सभी को मैं-  तू, तुम या आप कहूँ?...

आपकी भेट संख्या